कांग्रेस पार्टी के लिए हमेशा से सबसे बड़ी दिक्कत ये रही है कि गांधी परिवार से लॉन्च हुए राहुल गांधी को अपरिपक्वता के कारण राजनीति में ज्यादा महत्व नहीं मिला। राहुल के नेतृत्व में 2014 से लेकर अब तक पार्टी दो लोकसभा चुनाव और अनेकों विधानसभा चुनाव में अपनी भद्द पिटवा चुकी है। यही कारण है कि राहुल गांधी को पीछे कर उत्तर प्रदेश की राजनीति में गांधी परिवार ने प्रियंका गांधी वाड्रा को मैदान में उतारा है। प्रियंका गांधी वाड्रा पिछले तीन सालों से उत्तर प्रदेश में राजनीतिक भ्रमण कर रही हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा को उम्मीद है कि वो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली बीजेपी को हराकर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन सकती हैं, जिसके लिए अब उन्होंने प्रशांत किशोर से भी चर्चा करनी शुरू कर दी है।
राहुल गांधी की अपार असफलताओं के बाद कांग्रेस ने उन्हें उत्तर प्रदेश की राजनीति में बैकफुट पर डाल दिया है। पार्टी ने पहले प्रियंका को कांग्रेस महासिचव बनाकर साल 2019 में पूर्वांचल का प्रभार दिया, और फिर लोकसभा में हारने के बावजूद प्रमोशन करते हुए उन्हें पूरे यूपी का प्रभार दे दिया। ऐसे में प्रियंका पिछले तीन सालों से उत्तर प्रदेश में राजनीतिक नौटंकियां कर रही हैं। वहीं, हालिया खबरों की मानें तो वो 16 जुलाई को लखनऊ के दौरे पर जाने वाली हैं। संभावनाएं हैं कि इस दौरे से ही वो अपने चुनावी अभियान की शुरुआत कर सकतीं हैं।
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कांग्रेस महासिचव प्रियंका गांधी वाड्रा के दौरे से पहले लखनऊ में तैयारियों का दौर जारी है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं को लगता है कि प्रियंका गांधी के नेतृत्व में 2022 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पार्टी जीत लेगी, लेकिन हकीकत इससे परे है। प्रियंका गांधी वाड्रा के रहते उत्तर प्रदेश की पुश्तैनी अमेठी लोकसभा सीट राहुल गांधी हार गए। पिछले 5 सालों के दौरान हुए नगर निकाय, ग्राम, जिला, ब्लाक, लेवल तक के चुनावों में कांग्रेस कहीं नहीं थी। कांग्रेस उत्तर प्रदेश की राजनीति में न तीन में है न तेरह में… इसके बावजूद प्रियंका को कायाकल्प करने वाली नेत्री के रूप में पेश किया जा रहा है।
प्रियंका गांधी वाड्रा खुद को विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर भी पेश कर सकती हैं, क्योंकि वो सारे दांव अपनी छवि के आधार पर खेलना चाहती हैं। इसके विपरीत उनके मन में डर भी है कि यूपी की राजनीति में वो कहीं नहीं टिकेंगी; इसलिए वो राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर को अपने पाले में लाने की कोशिशें करने लगीं हैं। प्रियंका की सोच है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तरह ही उत्तर प्रदेश में प्रशांत किशोर उनकी नैया पार लगा देंगे। यही कारण है कि लखनऊ दौरे से पहले ही प्रियंका और राहुल ने निजी तौर पर प्रशांत किशोर से मुलाकात की है।
प्रशांत किशोर को कांग्रेस में लाने के लिए पार्टी इतनी अधिक आतुर है कि सोनिया गांधी भी इस पूरे मामले में दिलचस्पी ले रही हैं। ख़बरें हैं कि उन्होंने भी पीके से पार्टी ज्वाइन करने का आग्रह किया है। साफ है कि प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश चुनावों से पहले पीके को अपनी तरफ करके एक सांकेतिक जीत का माहौल बनाना चाहती हैं, लेकिन क्या इससे कोई लाभ होगा ? शायद नहीं… क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव में पहले प्रशांत किशोर के कहे अनुसार राहुल गांधी गांव-गांव खाट सभाएं करते रहे, और फिर अखिलेश यादव की सपा के साथ कांग्रेस के मिलने पर ‘यूपी को ये साथ पसंद है’ का नारा लेकर आए। वहीं, जब नतीजे आए तो सपा के साथ के बावजूद कांग्रेस को केवल सात सीटें मिलीं।
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2017 में प्रशांत किशोर के होने के बावजूद कांग्रेस के नेताओं ने उनकी चलने नहीं दी, और राहुल गांधी का राजनीतिक सूर्य अस्त हो गया। अब प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश में खुद को प्रबल नेत्री बता मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में खुद को पेश करने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन उनके तीन साल के राजनीतिक सफर को देखें तो उन्होंने यूपी के लोगों को भ्रमित करने के लिए फेक न्यूज फैलाने से लेकर दंगा भड़काने की नीयत से ही राजनीतिक दौरे किए हैं। हिंदुओं को साधने की कोशिश में प्रियंका ने मंदिरों के दर्शन तो किए, लेकिन उनकी पार्टी के नेताओं को ये रुख रास नहीं आया है।
पिछले तीन सालों से प्रियंका गांधी वाड्रा कथित तौर पर उत्तर प्रदेश में सक्रिय हैं, लेकिन उनके हाथ कुछ खास नहीं लगा है। हाल ही में हुए ज़िला पंचायत और ब्लॉक स्तर (Block Level) के चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया है। ऐसे में यदि प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रही हैं तो इस पर केवल हंसा ही जा सकता है, क्योंकि इस सपने का यथार्थ से कोई सरोकार नहीं है।