‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ और ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ में अंतर है
पिछले कुछ सप्ताह से उत्तर प्रदेश का जनसंख्या नियंत्रण ड्राफ्ट चर्चा का विषय बना हुआ है। उत्तर-प्रदेश में बढ़ती जनसंख्या और सीमित संसाधनों को देखते हुए योगी सरकार ने इस कानून को लाने का विचार किया है। कानून लाने से पहले सरकार एक ड्राफ्ट लेकर आई है, जिसे लोगों के बीच में रखा गया है। हालांकि, ये ड्राफ्ट फ़ाइनल नहीं है। टू चाइल्ड पॉलिसी ड्राफ्ट पर लोगों से सुझाव मांगे गए हैं।जनसंख्या नियंत्रण ड्राफ्ट के आते ही तमाम तरह के सवाल भी खड़े हो गए। कई लोग और वामपंथी विचारक टू चाइल्ड पॉलिसी की तुलना चीन की वन चाइल्ड पॉलिसी (One Child Policy) के साथ कर रहे हैं। तुलना करने के साथ-साथ इन लोगों का कहना है कि जैसे चीन की वन चाइल्ड पॉलिसी फेल हो गई, उसी तरह से ये नीति भी फेल हो जाएगी।
कहा जा रहा है कि चीन में इस नीति की वजह से गुणवत्ता और ज्यादा ख़राब हो गई फिर ये यूपी की कैसे मदद करेगा। इन सभी सवालों के जवाब पाने के लिए हमें विस्तार से चीन की वन चाइल्ड पॉलिसी और यूपी के टू चाइल्ड पॉलिसी की तुलना करनी पड़ेगी।
एक तरह जहां चीन ने सिर्फ और सिर्फ जनसंख्या के ग्राफ को नीचे लाने की नीति पर काम किया तो वहीँ दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश सरकार की टू चाइल्ड पॉलिसी लोगों के जीवन की गुणवता को बढ़ाने के लिए लाई जा रही है।
One Child Policy का पालन न करने वाले को कठोर दंड का प्रावधान था
चीन ने सिर्फ वन चाइल्ड पॉलिसी यानी एक ही बच्चे की अनुमति दी तथा इस नियम को पालन नहीं करने वालों पर कड़ा दंड लगाया, जबकि यूपी में 2 बच्चों के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। उन्हें इस नीति का पालन करने पर कई तरह की सुविधाएँ और प्रोत्साहन पुरस्कार दिया जा रहा है।
एक तरफ चीन ने अपने देश में वन चाइल्ड पॉलिसी लागू कर पूरी तरह से Blanket ban लगा दिया था। वहां नियम तोड़ने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई की जाती थी। वहीँ, उत्तर प्रदेश के नए टू चाइल्ड पॉलिसी ड्राफ्ट में केवल एक ‘सॉफ्ट बैन’ है। चीन में एक से अधिक बच्चे पैदा करने की अनुमति ही नहीं थी लेकिन यूपी के मामले में ऐसा नहीं है।
चीन में वन चाइल्ड पॉलिसी का उल्लंघन करने वालों को दंडित किया जाता था और कानूनी परिणाम भुगतने पड़ सकते थे, लेकिन यूपी में 2 बच्चे होने पर माता-पिता को कई तरह की सुविधाएं और विकल्प मिलेंगे। वहीं, अगर वे नियमों को नहीं मानते हैं और यदि वे 2 से अधिक बच्चों को पैदा करते हैं तो इस नीति के तहत मिलने वाली सुविधा से वंचित रहेंगे और कुछ नहीं।
बता दें कि 1970 के दशक की शुरुआत तक अधिकांश चीनी महिलाओं के कम से कम पांच बच्चे होते थे। 1949 में चीन की जनसंख्या 542 मिलियन थी, 1979 तक चीन की जनसंख्या लगभग 1 बिलियन तक पहुंच गई थी। उसके बाद चीन की वन चाइल्ड पॉलिसी 1980 में Deng Xiaoping ने लागू की थी और इसे सख्ती से implement किया गया था।
वन चाइल्ड पॉलिसी ने चीन में 400 मिलियन बच्चों के जन्म को रोका
चीन की Deng Xiaoping एक विशाल सोशल इंजीनियरिंग परियोजना थी जिसे तेजी से जनसंख्या वृद्धि को धीमा करने और आर्थिक विकास के प्रयासों में सहायता के लिए शुरू किया गया था। चीनी सरकार ने दावा किया कि वन चाइल्ड पॉलिसी ने चीन में 400 मिलियन बच्चों के जन्म को रोका हालांकि यह गणना अतिशयोक्ति के रूप में विवादित रही है।
एक बच्चे से अधिक होने पर नियम ऐसे थे कि कोई एक बच्चे का भी चांस न ले। विश्वविद्यालयों सहित सरकारी संगठनों के सिविल सेवकों और कर्मचारियों को एक से अधिक बच्चे होने पर अपनी नौकरी खोने का डर था। इसे National Health and Family Planning Commission द्वारा लागू किया जाता था और उल्लंघनकर्ताओं को जुर्माने के साथ-साथ जबरन गर्भपात करवाया जाता था।
यदि माता-पिता ने जुर्माना नहीं दिया तो दूसरे बच्चे को राष्ट्रीय घरेलू प्रणाली में पंजीकृत नहीं किया जाता, जिसका अर्थ है कि दूसरे बच्चे का कानूनी रूप से कोई वजूद ही नहीं है और इसलिए स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी सामाजिक सेवाओं से वे वंचित कर दिए जाते थे।
उदहारण के लिए वर्ष 2013 के अंत तक, फिल्म निर्माता झांग यिमौ और उनकी पत्नी चेन टिंग पर तीन बच्चे पैदा करने के लिए 7.48 मिलियन युआन का जुर्माना लगाया गया था।
उत्तर प्रदेश की टू चाइल्ड पॉलिसी चीन की निति से बिलकुल अलग है
उत्तर प्रदेश के टू चाइल्ड पॉलिसी में ऐसा कुछ भी नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार के जनसंख्या नियंत्रण कानून में प्रावधान है कि दो से अधिक बच्चों के होने पर परिवार को सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का लाभ नहीं मिलेगा। राशन कार्ड पर भी 4 लोगों के बाद पांचवे व्यक्ति का नाम नहीं चढ़ेगा। साथ ही तीसरा बच्चा होने पर माता पिता को सरकारी नौकरी पाने से वंचित किया जाएगा।
जो पहले से सरकारी नौकरी में हैं उन्हें तीसरा बच्चा होने पर प्रमोशन नहीं दिया जाएगा। साथ ही ऐसे लोगों को स्थानीय निकाय चुनाव में खड़े होने के अधिकार से भी वंचित किया जाएगा।
कुछ मीडिया रिपोर्ट इसे अभी से ही मुसलमानों के विरुद्ध बताने लगी हैं। उनका मानना है कि एक विशेष समुदाय को निशाना बनाने के लिए ही कानून बनाया जा रहा है। प्रत्युत्तर में यह प्रश्न भी उठता है कि क्या केवल एक समुदाय ही जनसंख्या बढ़ा रहा है? अगर ऐसा नहीं है तो कानून किसी एक समुदाय का विरोधी नहीं हो सकता।
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उद्देश्यों में अंतर: चीन का मकसद Han समुदाय की नस्लों को बढ़ाना है, लेकिन भारत में दूसरे संप्रदाय ही हिंदुओं की आबादी से भी तेज गति से बढ़ रहे हैं। अगर हम डेटा की तुलना करें तो 2011 के आंकड़ों में हिन्दू देश की जनसंख्या के 79 प्रतिशत के आसपास थे तथा 2001 से उनकी वृद्धि दर 16 प्रतिशत थी। वहीँ मुस्लिम देश की जनसँख्या में 14 प्रतिशत हैं, लेकिन उनकी वृद्धि दर 24.5 प्रतिशत है। ईसाईयों की भी वृद्धि दर 15.5 प्रतिशत है।
टू चाइल्ड पॉलिसी गरीबों के हित के लिए है
साथ ही चीन की वन चाइल्ड पॉलिसी का मकसद चीन में कुल आबादी को कम करना था जिसमें वह सफल भी रहा था। चीन ने 2020 में घरेलू पंजीकरण प्रणाली में 10.035 मिलियन नए पंजीकृत जन्म रिकॉर्ड किये, जो 2019 में 11.79 मिलियन से कम है। वहीँ 2020 में, चीन की प्रजनन दर प्रति महिला 1.3 बच्चे थी, हालाँकि बता दें कि यह आंकड़ा स्थिर जनसंख्या के लिए आवश्यक 2.1 के रिप्लेसमेंट रेट से भी नीचे है जो चीन के लिए घातक साबित हो रहा है। यही कारण है कि चीन ने आधिकारिक तौर पर 1 जनवरी, 2016 को अपनी एक बच्चे की नीति को समाप्त कर दिया था और सभी विवाहित जोड़ों को दूसरा बच्चा पैदा करने की इजाजत दी गई थी।
यूपी में अगर हम हिंदू या मुस्लिम और अन्य समूहों की बात करें तो जनसँख्या कई वर्गों में वर्गीकृत है और सभी के लिए अलग-अलग आंकडे भी हैं। इसे ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश प्रशासन ने टू चाइल्ड पॉलिसी ड्राफ्ट में कई ऐसे प्रावधान रखे हैं जो विशेष तौर पर ऐसे परिवारों के लिए हैं जो गरीबी रेखा से नीचे हैं। अगर ऐसे परिवार में कम बच्चे होते हैं तो उनका विकास भी तेजी से होगा और बच्चे सहित परिवार के जीवन की गुणवत्ता बढ़ेगी। यानी यूपी में फोकस क्वालिटी पर है क्वांटिटी पर नहीं।
नीति आयोग 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश का कुल प्रजनन दर 3.1 है जो भारत के 2.3 के टीएफआर से अधिक है।
अगर हम जनसंख्या और उनके विकास की तुलना करें तो सरकार द्वारा प्रोत्साहन गरीब लोगों को शिक्षा प्राप्त करने और अन्य योजना प्राप्त करने में मदद करेगा। 2004-05 में यूपी में लगभग आधी मुस्लिम आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी। हालांकि पिछले 15-16 वर्षों में यह संख्या घटी है लेकिन अब भी हिंदुओं के मुकाबले ज्यादा मुस्लिम जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे है।
यूपी में मुस्लिम आबादी 17-19% है, लेकिन कल्याणकारी योजनाओं के लाभ में उनका हिस्सा 30-35% है। इसका अर्थ यह है कि BPL परिवार को मिलने वाली इस योजना का भी अधिक लाभ वे ही उठाएंगे। वहीं, अगर आंकड़ों की बात की जाए तो National Family Health Survey 2015-16 के अनुसार उत्तर प्रदेश में हिंदुओं में Total Fertility Rate 2.7 है तो वहीँ मुस्लिमों में यह 3.1 है। 2011-12 में, 25.4% मुस्लिम और 21.9% हिंदू गरीबी रेखा से नीचे थे।
Two Child Policy समाज के हर वर्ग को मुख्य धारा में लाने का एक प्रयास है
अगर मुस्लिम वर्ग ने इस योजना का लाभ उठाया तो Total Fertility Rate को कम किया जा सकेगा और इससे जनसंख्या नियंत्रण में मदद मिलेगी। आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में अभी भी मुस्लिम आबादी का एक बड़ा प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे है। 2004-05 में यूपी में लगभग आधी मुस्लिम आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी।
पिछले सात वर्षों में यह घटकर एक तिहाई रह गया। इस अवधि में उत्तर प्रदेश में समुदाय के औसत अधिकतम प्रति व्यक्ति व्यय में भी बहुत कम अंतर से बढ़ा। शिक्षण संस्थानों में मुसलमानों का नामांकन अन्य वर्गों की तुलना में कम है। मुस्लिम छात्रों के बीच उच्च ड्रॉप आउट दर चिंताजनक है। मुसलमानों के शैक्षिक पिछड़ेपन का मुख्य कारण घोर गरीबी है जिसके कारण बच्चे पहली कुछ कक्षाओं के बाद पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हैं। गरीब समर्थन के कारण ओबीसी मुसलमानों में ऐसे मामले अधिक हैं।
इसलिए इस जनसंख्या नियंत्रण बिल के तहत टू चाइल्ड पॉलिसी को अपनाने पर प्रोत्साहन की व्यवस्था की गई है, जिससे गरीब परिवार इसे अपनाएं। यह कानून चीन की तरह उत्तर प्रदेश की जनता पर थोपा नहीं जा रहा है। आज की दुनिया प्रतिस्पर्धी है और सभी परिवार अपने-अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ साथ अच्छे भोजन और कपडे दिलाना चाहते हैं जिससे वह पढ़ कर अपने परिवार का विकास कर सके। अगर किसी परिवार में दो बच्चे है तो निश्चित तौर पर उन्हें बेहतर सुविधा प्राप्त होगी न कि 5 बच्चों वाले परिवार में।
ऐसे में उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा लाया गया जनसंख्या नियंत्रण विधेयक (टू चाइल्ड पॉलिसी) अगर कानून बनता है तो इससे यूपी की बढ़ती जनसंख्या पर तो लगाम लगेगी ही, साथ ही लोगों को बेहतर जीवन जीने का अवसर मिलेगा।