आयुर्वेद चिकित्सा के प्रमुख और आर्य वैद्य शाला के प्रबंध ट्रस्टी डॉ पन्नियंपिल्ली कृष्णनकुटी वारियर (Panniyampilly Krishnankuty Warrier) का शनिवार को मलप्पुरम के कोट्टक्कल में उनके मुख्यालय में निधन हो गया। अंतरराष्ट्रीय ख्याति के चिकित्सक पिछले महीने 100 साल के हो गए थे और कोरोनावायरस संक्रमण से ग्रसित होने के बाद ठीक हो रहे थे। अपने लगभग सात दशक के कैरियर में, डॉ पीके वारियर ने भारतीय पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली के लिए एक बेंचमार्क स्थापित किया और आयुर्वेद के पुनर्जागरण के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ पीके वारियर के नेतृत्व में वैद्य शाला आयुर्वेदिक चिकित्सा के एक प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित हुई, जिसने पारंपरिक चिकित्सा को आधुनिक, शास्त्रीय चिकित्सा में परिवर्तित कर दिया।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं ने प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य और कोट्टक्कल आर्य वैद्य शाला के प्रबंध न्यासी डॉ पीके वारियर के निधन पर शोक व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री ने ट्वीट में कहा, “वारियर के निधन से दुखी हूं। आयुर्वेद को लोकप्रिय बनाने में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। उनके परिवार और मित्रों के प्रति संवेदनाएं; ओम शांति।”
Saddened by the passing away of Dr. PK Warrier. His contributions to popularise Ayurveda will always be remembered. Condolences to his family and friends. Om Shanti.
— Narendra Modi (@narendramodi) July 10, 2021
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने भी डॉ पीके वारियर के निधन पर शोक जताते हुए लिखा कि “ वारियर ने आयुर्वेद को वैश्विक ख्याति दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उनके प्रयासों के कारण ही आज चिकित्सा के इस क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है।” मुख्यमंत्री ने कहा, “वह केरल में आयुर्वेद के पितामह थे।“
बता दें कि एक चिकित्सक के रूप में, वारियर ने कभी भी परामर्श शुल्क स्वीकार नहीं किया, फिर चाहे रोगी अमीर हो या गरीब।
एक इंजीनियर बनने की इच्छा के बावजूद, उन्होंने अपनी पारिवारिक परंपरा का पालन किया और अपने चाचा वैद्यरत्नम डॉ पी एस वेरियर के संरक्षण में आयुर्वेद सीखना शुरू कर दिया। हालांकि, डॉ पीके वारियर ने लंबे समय तक पढ़ाई जारी नहीं रखी।
बता दें कि यह वह समय था जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया था। आंदोलन ने डॉ पीके वारियर में क्रांतिकारी भावना को जगा दिया था, और वह घर छोड़कर मंजेरी में कम्युनिस्ट शिविर में शामिल हो गए थे।
हालांकि, डॉ पीके वारियर को यह एहसास हुआ कि वो सक्रिय राजनीति के लिए नहीं बने हैं और उन्होंने आयुर्वेद की अपनी खोज फिर से शुरू कर दी। अपनी पढ़ाई पूरी करने से पहले, वह 24 साल की उम्र में कोट्टक्कल आर्य वैद्य शाला के ट्रस्टी सदस्य बन गए। उनके चाचा ने 1902 में संस्थान की स्थापना की थी। वारियर को 1999 में पद्मश्री और 2010 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।