2 कौड़ी का इन्फ्रास्ट्रक्चर और अठन्नी बराबर शिक्षा वाले इंजीनियरिंग कॉलेजों पर सख्त सरकार

शिक्षा के नाम पर ‘धंधा’ करने वालों की अब ख़ैर नहीं।

इंजीनियरिंग कॉलेज

एक समय भारत में गणित से 12वीं की परीक्षा पास करने वाला लगभग हर बच्चा भले उसमें योग्यता हो या न हो, वह इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश पा जाता था। गाजियाबाद, नोयडा समेत कई शहरों का तो यह हाल था कि कहा जा सकता था कि हर चौराहे पर एक इंजीनियरिंग कॉलेज है। ऐसे कॉलेज में न तो बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर था, न अच्छे शिक्षक, न लैब, कोई भी ऐसी बात नहीं थी, जो एक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए आवश्यक होती है। कुल मिलाकर इंजीनियरिंग कॉलेज खोलना शिक्षा माफियाओं के लिए एक व्यापार था, जिसमें वह अपनी काली कमाई को निवेशित कर सकें।

मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही इस पर ध्यान देना शुरू किया और थोक के भाव में खुले इंजीनियरिंग कॉलेज की जगह गुणवत्ता पर जोर देना शुरू किया। नतीजा यह है कि आज ऐसे कामचलाऊ कॉलेज बन्द हो रहे हैं। अब भारत में अच्छे अभियंताओं (इंजीनियर्स) की खेप तैयार होगी।

प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट अर्थात ऐसे शिक्षण संस्थान जहां व्यावसायिक शिक्षा दी जाती है, उसमें सबसे बड़ा हिस्सा अभियांत्रिकी के शिक्षण संस्थानों का है, इसके अतिरिक्त शेष संस्थाओं में स्थापत्य (आर्किटेक्कर), चिकित्सा, सराय प्रबंधन ( होटल मैनेजमेंट) आदि की शिक्षा दी जाती है।

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सरकार व्यावसायिक शिक्षा के सभी संस्थाओं में गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दे रही है, इसी कारण वर्ष 2020-21 में व्यावसायिक शिक्षा से जुड़े 179 कॉलेज बन्द हो चुके हैं। यह प्रक्रिया पिछले सात वर्षों से चल रही है। वर्ष 2014-15 में 77, 2015-16 में 126, 2016-17 में 163, 2017-18 में 134 और 2018-19 में 89 ऐसे शिक्षण संस्थान बन्द हुए जिनमें शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं था।

सरकार द्वारा इन संस्थाओं के प्रथम वर्ष में प्रवेश लेने पर रोक लगा दी गई, जिससे वह केवल उतने ही बच्चों को पढ़ा सकेंगे, जिनका पहले से प्रवेश है। सरकार की योजना के कारण बच्चों का नुकसान नहीं होता, उनकी डिग्री भी मान्य होती है।

मोदी सरकार ने इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थिति सुधारने के लिए IIT हैदराबाद के BVR मोहन रेड्डी के नेतृत्व में एक कमेटी गठित की थी। कमेटी ने सरकार से संस्तुति की है कि ऐसे सभी कॉलेज में सीटों की संख्या घटाई जाए, जिनमें प्रति वर्ष 50 सीट रिक्त रह जाती हैं।

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वर्षों तक इंजीनियरिंग की सीट को डोनेशन के माध्यम से खरीदा बेचा जाता रहा था। इस गोरखधंधे के कारण बेरोजगारों की एक फौज तैयार हो गई थी, जिनके पास योग्यता न होते हुए भी, डिग्री थी। अब इस पर रोक लगाई गई है, जिससे अर्थव्यवस्था पर डिग्रीधारी बेरोजगारों का दबाव कम होगा। इस भीड़ को ITI से लेकर अन्य कई क्षेत्रों में इस्तेमाल किया जा सकता है, इनकी ‛स्किल डेवलपमेंट’ करके भारत के लिए कुशल श्रम तैयार किया जा सकता है।

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