अगले साल देश के सात राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले है और अभी तक विपक्षी दलों के पास पीएम मोदी की साख को तोड़ने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं है, इसीलिए वो जो भी मुद्दे उठा रहें हैं, उन्हें धव्स्त होते देर नहीं लग रही है। दरअसल, भारत के विपक्षी दल मोदी सरकार की नीतियों से ज्यादा उनकी व्यक्तिगत छवि पर निशाना साधते हुए आ रहे है और फुलस्वरूप उन्हें हर बार मुंह की खानी पड़ती है। ऐसे में अपने निजी आलोचनात्मक विचारों के आभाव में विपक्ष ने, एक बार फिर से किसान आंदोलन जैसे अप्रासंगिक मुद्दे को राजनीतिक रंग देना शुरू कर दिया है।
अगर हम बात करें विपक्ष द्वारा लाए गए मुद्दों की, जिनके तहत उन्होनें केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की है तो बीते कुछ महीनों में विपक्ष ने राफेल, वैक्सीन, भारत बायोटेक घोटाला और पेगासस का मुद्दा उठाया है और यह भी सभी मुद्दे विपक्ष की राजनीतिक आकांक्षाओं की तरह विफल साबित हुए है।
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हाल ही में विपक्ष ने राफेल विमान के मुद्दे को एक बार फिर से उछालने का प्रयत्न किया था। रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा था कि,“बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार’, ‘देशद्रोह’, ‘राजकोष को नुकसान’ से जुड़े ‘राफेल घोटाले’ का घिनौना सच आखिरकार बेनकाब हो गया है। कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी की बात आखिरकार सच साबित हुई।“ इस वाक्य के माध्यम से सुरजेवाला दो संदेश देना चाह रहे थे। पहला मोदी सरकार को भ्रष्टाचारी सिद्ध करना और दूसरा राहुल गांधी की फीकी राजनीति को चमकना, लेकिन कांग्रेस पार्टी की यह रणनीति पूरी तरह से फ़ेल हो गई। यहां तक की यह मामला मुख्यधारा मीडिया की सुर्खियों में भी जगह नहीं बना पाया था।
ठीक इसी प्रकार कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने कोरोना वायरस वैक्सीन का मुद्दा उठाया था, इस मुद्दे से विपक्ष को राजनीतिक फायदा तो दूर, भारी नुकसान उठाना पड़ा है। कांग्रेस पार्टी ने राजनीतिक फायदे के लिए वैक्सीन को लेकर सभी प्रकार की भ्रांतियां फैलाना शुरू किया था, जिससे केंद्र सरकार की छवि को चोट पहुचें। आपको बता दें कि कांग्रेस पार्टी के इस नरेटिव को काउंटर करने के लिए पीएम मोदी सबसे आगे आए और उन्होने वैक्सीन सर्टिफिकेट पर अपनी तस्वीर लगाकर जनता के मन में टिकाकरण को लेकर विश्वास पैदा किया। आज भारत में हर रोज रिकॉर्ड टिकाकरण किया जा रहा है।
इतना कुछ करने के बाद भी विपक्ष के हाथों कुछ भी नहीं लगा। ऐसे में राहुल गांधी समेत अन्य विपक्षी दल, विदेशी शक्तियों और वामपंथी पत्रकारों के साथ मिलकर पेगासस जासूसी मामले को सामने लेकर आए। गौर करने वाली बात है कि इस मसले को अंतर्राष्ट्रीय मसला बनाने के बावजूद, विपक्ष को मुंह की खानी पड़ी है। तमाम सर्वे बताते है कि जनता के मन में PM मोदी को लेकर विश्वास अटल है। कुल मिलाकर विपक्ष का यह मुद्दा भी उनके बाकी मुद्दों के भांति जनता को लुभा नहीं पाया।
हाल ही में कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने केंद्र सरकार पर भारतनेट परियोजना में चल रहें भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि, कांग्रेस पार्टी को अपने ही द्वारा लगाए आरोप पर कोई भरोसा नहीं है। कांग्रेस आलाकमान ने पवन खेड़ा की बातों से गंभीरता से नहीं लिया और यह कथित आरोप एक दिन भीं नहीं चला। दरअसल, बात यह है कि दशको से भ्रष्टाचार में लिप्त कांग्रेस पार्टी की बातों पर देश की जनता को बिल्कुल भी भरोसा नहीं है।
राहुल गांधी और उनके सहयोगियों के पास वर्तमान समय में पीएम मोदी को घेरने के लिए कोई ठोस मुद्दा नहीं है। ऐसे में वो हार मानकर किसान आंदोलन जैसे असंगत मुद्दे को अपना रहें है। राहुल गांधी आज ट्रैक्टर से संसद गए ताकि कथित किसान उन्हें अपना नेता मान लें। राहुल गांधी का जब अपना असल मुद्दा, जनता को प्रभावित नहीं कर सका तो वह किसानों के साथ जुड़कर अपना राजनीतिक वजूद बनाए रखना चाहते है। राहुल गांधी ने किसानों को झूठी दिलासा दी है कि, वह तीनों कृषि नियमों को रद्द करवाने के मकसद से किसानों से जुड़े हुए हैं।
आपको बता दें कि किसान आंदोलन पिछले वर्ष से शुरू हुआ था, उस समय राहुल गांधी और विपक्षी दल इस आंदोलन से पर्दे के पीछे से जुड़े हुए थे, यानि केवल सांकेतिक ट्वीट तक ही सीमित रहे थे। फिर जब आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया तो उन्होने उससे खुद को अलग कर लिया और इस बीच कई अलग – अलग मुद्दों के सहारे अपनी रोटी को सेकने की कोशिश की, लेकिन हर जगह से विफलता के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं लगा था। अंत में विवश होकर राहुल गांधी को अपनी राजनीति को ज़िंदा रखने के लिए किसान आंदोलन का सहारा लेना पड़ा है।