क्रांतिकारी पत्रकारिता का दंभ भरने वाले भास्कर ने की 700 करोड़ की कर चोरी

कर चोरी को लेकर ही छापेमारी हुई थी। पनामा पेपर्स में भी आ चुका है भास्कर का नाम।

एक आम बात है कि चोर अपने कुकर्म छिपाने के लिए साधु बन जाता है और जब उस पर कार्रवाई होती है तो पीड़ितों की तरह छाती पीटने लगता है। क्रांतिकारी पत्रकारिता का दावा करने वाले दैनिक भास्कर की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। भास्कर पर भ्रष्टाचार एवं कर चोरी के संबंध में जब आयकर विभाग ने कार्रवाई की तो देश का पूरा वामपंथी समूह भास्कर के साथ खड़े होकर मोदी सरकार की आलोचना करने लगा।

आयकर विभाग की कार्रवाई को मोदी सरकार विरोधी खबरें छापने पर दबाव बनाने की नीयत तक बताया गया, लेकिन अब आयकर विभाग ने इसको लेकर आश्चर्यचकित करने वाले दावे किए हैं, जिनके अनुसार पिछले 7 वर्षों में दैनिक भास्कर ने आयकर नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए 700 करोड़ रुपए की कर चोरी की है।

सीबीडीटी ने आयकर विभाग द्वारा दैनिक भास्कर के देश के अलग-अलग ठिकानों पर की गई छापेमारी को लेकर अब जानकारियां देना शुरू कर दिया है, जोकि हैरान करने वाली हैं।

इनके अनुसार दैनिक भास्कर समूह के अंतर्गत कार्यरत कर्मचारियों के नाम पर कई फर्जी कंपनियां थीं, जिन्होंने स्टॉक मार्केट के नियमों का उल्लघंन कर 2,200 करोड़ का लेन-देन भी किया था। महत्वपूर्ण बात ये है कि कंपनियां रियल एस्टेट, पावर सेक्टर और टेक्स्टाइल से जुड़ी हुईं थीं। सीबीडीटी का कहना है कि ये सभी शेल कंपनियां थीं, जिनके गठन का मुख्य उद्देश्य ही भ्रष्टाचार था।

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सीबीडीटी द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक भास्कर में काम करने वाले लोगों के नाम पर ही अलग-अलग 100 से अधिक फर्जी कंपनियां चल रहीं थीं, जिनका टर्नओवर करीब 6,000 करोड़ का था। इन कंपनियों को बनाने के उद्देश्य की बात करें त़ो इनके माध्यम से फर्जी खर्चों की बुकिंग और सूचीबद्ध कंपनियों के लाभ में हेराफेरी दिखाने के लिए किया गया था।

आयकर विभाग का आरोप कि इन कंपनियों ने शेयर बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा निर्धारित नियमों का उल्लघंन किया है, जोकि आर्थिक अपराधों की श्रेणी में आता है। इन कंपनियों के माध्यम से ही भास्कर के फर्जी खर्चे दिखाए गए हैं।

भास्कर ग्रुप के शीर्ष लोगों ने भ्रष्टाचार हदें यहां तक पार कर दी थीं कि कई कर्मचारियों को तो ये भी नहीं पता था कि वो किसी कंपनी के शेयर होल्डर्स या निदेशक भी हैं। उन्होंने कंपनी को विश्वास के आधार अपने आधार कार्ड और डिजिटल हस्ताक्षर दिए थे, जिनका कंपनी के लोगों ने ही दुरुपयोग किया।

इन्हीं कर्मचारियों के नाम पर बनाई गई कपड़ा, पावर और रियल एस्टेट सेक्टर की कंपनियों से कमाई की जाती थी और पैसे को एक से दूसरी कंपनी में रूट किया जाता था। वहीं, समूह के प्रमोटर्स और प्रमुख कर्मचारियों के घरों से 26 लॉकर्स और करीब 3 करोड़ की नकदी जब्त की गई है।

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भास्कर के छापेमारी कांड और इससे जुड़ी जानकारियों को लेकर आयकर विभाग का ये तक कहना है कि अभी ये भ्रष्टाचार की रकम और बढ़ भी सकती है, जोकि भास्कर की पोल खोलने के लिए काफी हैं। इन भ्रष्टाचारों में फर्जी कंपनियों से लेकर संपत्ति में गड़बड़ियां और आयकर की चोरी के मामले भी हो सकते हैं।

ये पहली बार नहीं है कि भास्कर भ्रष्टाचार को लेकर फंसा हो। भास्कर के निदेशक पवन अग्रवाल और उनकी पत्नी नीतिका अग्रवाल का नाम पनामा पेपर्स में भी आ चुका है। काले पैसे को सफेद करने वालों की पनापा पेपर्स की सूची में शामिल होने को लेकर भी पूरे परिवार के विरुद्ध जांच चल रही है। इन सभी भ्रष्टाचार के मामलों में मुख्य पैरेंट कंपनी डीबी कॉर्प यानी दैनिक भास्कर प्रकाशक कंपनी ही है।

सीबीडीटी का ये भी कहना है कि ये केवल 6-7 सालों में किया हुआ भ्रष्टाचार है, ऐसे में संभावनाएं हैं कि विभाग समूह की पुरानी फाइलें भी खोल सकता है। इस पूरे प्रकरण के आधार पर ये साफ हो जाता है कि भास्कर पत्रकारिता की आड़ में भ्रष्टाचार की नदियां बहा रहा है।

इनकम टैक्स डिपार्टमेंट द्वारा की गई छापेमारी पर लगातार मोदी सरकार की आलोचना की जा रही थी, लेकिन अब भास्कर का पूरा कच्चा चिट्ठा खुल चुका है, जोकि वामपंथी छाती पीटने वाले समूह के लोगों लिए एक तमाचे की तरह है।

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