NEET ऑल इंडिया कोटा ओबीसी और EWS आरक्षण को मंजूरी
बुधवार को, केंद्र सरकार ने देश भर के मेडिकल और डेंटल कॉलेजों के लिए एक समान प्रवेश परीक्षा, NEET के लिए ऑल इंडिया कोटा के भीतर ओबीसी और EWS (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) श्रेणियों के लिए आरक्षण को मंजूरी दे दी। नई नीति के तहत अब अंडर ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और डिप्लोमा स्तर के मेडिकल कोर्सेज में एडमिशन के लिए ओबीसी समुदाय के छात्रों को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा।
इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर विवाद देखने को मिला तथा आरक्षण का विरोध करने वालों ने इस फैसले का विरोध किया। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि मोदी सरकार ने कोई अलग से आरक्षण देने का फैसला नहीं किया है। बता दें कि यह आरक्षण पहले से ही केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में था। राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में भी राज्य यह आरक्षण नीति लागु करते हैं, परन्तु राज्य के मेडिकल कॉलेजों की कुछ सीटें AIQ यानी ऑल इंडिया कोटा के लिए अरक्षित रहती हैं।
इन अरक्षित सीटों में 15 प्रतिशत अंडर ग्रेजुएट और 50 प्रतिशत पोस्ट ग्रेजुएट होता है। इस सीटों पर ST/SC का आरक्षण तो लगता था परन्तु ओबीसी और EWS को कोटा नहीं मिलता था। सरकार अब इन्हीं अरक्षित सीटों पर मद्रास हाई कोर्ट के निर्देशों के बाद ओबीसी और EWS कोटा लगाने जा रही है।
Our Government has taken a landmark decision for providing 27% reservation for OBCs and 10% reservation for Economically Weaker Section in the All India Quota Scheme for undergraduate and postgraduate medical/dental courses from the current academic year. https://t.co/gv2EygCZ7N
— Narendra Modi (@narendramodi) July 29, 2021
बता दें कि, पिछले साल जुलाई में, तमिलनाडु के सत्तारूढ़ DMK और उसके सहयोगियों की एक याचिका पर, मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ओबीसी छात्र भी ऑल इंडिया कोटा में आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं। कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण को समय के अभाव में तत्कालीन शैक्षणिक वर्ष के लिए लागू नहीं किया जा सकता है, और इसे 2021-22 से लागू किया जाना चाहिए है।
सरल शब्दों में कहें, तो ऑल इंडिया कोटा स्कीम में Under Graduate के लिए जो 15 प्रतिशत सीटें और Post Graduate की जो 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित थीं, उन्हीं में से SC और ST समुदाय के छात्रों को आरक्षण दिया गया और अब जो ओबीसी समुदाय को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को 10 प्रतिशत आरक्षण मिला है, वो भी इसी आरक्षित कोटे के अंदर से ही है।
हालांकि, जब इस साल 13 जुलाई को NEET-2021 की अधिसूचना जारी की गई थी, तो इसमें ऑल इंडिया कोटा के भीतर ओबीसी आरक्षण के किसी प्रावधान का जिक्र नहीं था। तब DMK ने अवमानना याचिका दायर की और इस पर सुनवाई करते हुए 19 जुलाई को मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा, “अखिल भारतीय कोटा सीटों के संबंध में ओबीसी आरक्षण कोटा शैक्षणिक वर्ष 2021-22 में लागू नहीं करने का सरकार का प्रयास… विवादास्पद प्रतीत होता है, जो इस न्यायालय द्वारा पारित 27 जुलाई, 2020 के आदेश का अपमान है।”
इसी के बाद सरकार को राज्य के मेडिकल कॉलेजों में अरक्षित ऑल इंडिया कोटा की सीटों पर भी ओबीसी और EWS के हिस्से को देने का का फैसला किया है।
बता दें कि National Eligibility-cum-Entrance Test (NEET) देश में सभी स्नातक (नीट-यूजी) और स्नातकोत्तर (नीट-पीजी) चिकित्सा और दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा है जो सभी को पास करनी होती है। 2016 तक, AIPMT मेडिकल कॉलेजों के लिए राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा थी। जबकि राज्य सरकारें उन सीटों के लिए अलग प्रवेश परीक्षा आयोजित करती थीं जो all India लेवल पर आयोजित नहीं की जाती थी।
अब NEET नामक एक ही परीक्षा देश भर में आयोजित की जाती है, लेकिन राज्य के मेडिकल/डेंटल कॉलेजों में उपलब्ध सीटों का एक हिस्सा अपने-अपने राज्य में रहने वाले छात्रों के लिए आरक्षित है। शेष सीटें यानी यूजी में 15% और पीजी में 50% – राज्यों द्वारा All India Quota के तहत दूसरे राज्यों के छात्रों के लिए अरक्षित रहती हैं। All India Quota की योजना 1986 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत लाई गई थी जिससे किसी भी राज्य के छात्रों को किसी अन्य राज्य के अच्छे मेडिकल कॉलेज में पढ़ने के लिए योग्यता-आधारित अवसर मिले।
उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में रहने वाला एक छात्र, पश्चिम बंगाल के राज्य सरकार के मेडिकल कॉलेज में ऑल इंडिया कोटा के तहत अधिक अंक लाकर प्रवेश के लिए पात्र हो सकता है। यदि उसका स्कोर AIQ के लिए पर्याप्त नहीं है, तो भी वह अपने गृह राज्य के मेडिकल कॉलेजों में राज्य कोटे के तहत प्रवेश कर सकता है।
2007 तक, मेडिकल प्रवेश के लिए ऑल इंडिया कोटा के भीतर कोई आरक्षण लागू नहीं किया गया था। 31 जनवरी, 2007 को, अभय नाथ बनाम दिल्ली विश्वविद्यालय के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि अनुसूचित जातियों के लिए ऑल इंडिया कोटा में 15% और अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5% आरक्षण दिया जाए।
उसी वर्ष, कांग्रेस सरकार ने केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश के लिए आरक्षण वाले अधिनियम को पारित किया, जिसमें केंद्र सरकार के संस्थानों में ओबीसी छात्रों को 27% आरक्षण प्रदान किया गया। वर्ष 1980 में आई मंडल कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक, तब देश में ओबीसी समुदाय की कुल आबादी लगभग 52 प्रतिशत थी। यानी यह फैसला इस विशाल समुदाय को सीधे तौर पर लाभ देता है।
वहीँ राज्य सरकार के मेडिकल और डेंटल कॉलेज ओबीसी को पहले से ही All India Quota से बाहर की सीटों पर आरक्षण प्रदान करते हैं। यही आरक्षण अब तक इन राज्य कॉलेजों में ऑल इंडिया कोटा के तहत आवंटित सीटों पर नहीं बढ़ाया गया था। वहीँ Constitution (One Hundred And Third Amendment) Act, 2019 के तहत 10% EWS कोटा भी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में लागू किया गया था, लेकिन राज्य के संस्थानों के लिए नीट ऑल इंडिया कोटा में नहीं। अब सरकार ने अब मद्रास उच्च न्यायालय के निर्देशों पर ही आरक्षण लागु करने का फैसला किया है।
क्या आरक्षण बढ़ने के बाद सामान्य श्रेणी के स्टूडेंट्स की सीटें घट जाएंगी?
वर्ष 2009 में जब उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी रिजर्वेशन लागू किया गया था तो उसी अनुपात में गैर-आरक्षित सीटों में भी इजाफा किया गया था ताकि जनरलट सीटों का प्रतिशत कम नहीं हो। इसलिए, ओबीसी आरक्षण लागू करने वाले उच्च शिक्षण संस्थानों ने अपने यहां सीटों में 50% का इजाफा कर दिया था। इसी तरह, EWS कैटिगरी को 10% आरक्षण देने के लिए भी शैक्षिक संस्थानों को 20% सीटें बढ़ानी पड़ी थीं। इस लिहाज तय माना जा रहा है कि मेडिकल-डेंटल कॉलेजों में ऑल इंडिया कोटे की सीटों पर ओबीसी-ईडब्ल्यूए कैटिगरी को कुल 37% (27+10) आरक्षण देने के लिए पर्याप्त संख्या में सीटें बढ़ाईं जाएंगी ताकि यूजी-पीजी कोर्स में प्रवेश लेने वाले सामान्य श्रेणी के स्टूडेंट्स की संख्या कम नहीं करनी पड़े।
पिछले 7 वर्षों में भी चिकित्सा पाठ्यक्रमों के लिए स्नातक और स्नातकोत्तर सीटों की संख्या में केंद्र सरकार द्वारा काफी वृद्धि हुई है। पिछले 7 वर्षों में, MBBS सीटें 2014 (54,348 सीटों) से लगभग 55.75% बढ़कर 2020 (84,649 सीटें) हो गई हैं। वहीँ पीजी सीटों की संख्या में 24,084 यानी 79.77% की वृद्धि हुई है। इस वर्ष कई नए कॉलेजों का भी निर्माण हुआ है तो मेडिकल कॉलेज में सीटों की संख्या और अधिक बढ़ेगी ही। इसलिए नेट सीटों या कुल सीटों के आधार पर देखा जाए तो सामान्य श्रेणी के लिए अब भी उतनी ही सीटें बचेंगी जितनी इससे पहले थी।
हालाँकि, देश को एक नयी ऊंचाई पर ले जाना है तो आरक्षण को धीरे-धीरे समाप्त कर मेरिट आधारित बनाने पर जोर दिया जाना चाहिए। इस फैसले के बाद हो सकता है कि सामान्य कटेगरी के लोगों तथा जो लोग आरक्षण का विरोध करते हैं उनमें में सरकार के खिलाफ नाराजगी भी बढ़ जाए। केंद्र सरकार के लिए इसका विरोध करना राजनीतिक रूप से संभव नहीं क्योंकि यह फैसला न्यालय द्वारा पारित किया गया था। ऑल इंडिया कोटा अपने आप में एक सर्वोच्च न्यायालय का आविष्कार है और फिर उसके बाद लायी गयी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश के लिए आरक्षण वाले अधिनियम के साथ साथ मद्रास हाई कोर्ट के intervention के कारण एक तरह से यह inenvitable ही था यानि होना ही था।