महान पराक्रम, अदम्य साहस, अप्रतिम शौर्य और विजय का नाम है महाराणा प्रताप, अब ASI भी यही बताएगी

वामपंथी एजेंडे को चीरते हुए इतिहास का सच धीरे-धीरे सामने आने लगा है।

हल्दीघाटी युद्ध

हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की जीत हुई थी : ASI करेगा सत्यापित 

हिंदुस्तान की महान परंपराओं के साथ-साथ हिंदुस्तान के महान योद्धाओं को भी वामपंथी इतिहासकारों ने शुरू से नीचा दिखाने की कोशिश की है। एजेंडे परोसने वाले वामपंथियों ने निहित स्वार्थों के चलते हिंदुस्तान के इतिहास को पूरी तरह से झूठ से भर दिया है, लेकिन अब धीरे-धीरे इसमें बदलाव हो रहे हैं। अब वास्तविक इतिहास लोगों तक पहुंचेगा। इसी कड़ी में ये भी बात पहुंचेगी कि हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप, अकबर से हारे नहीं थे।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने गुरुवार को राजस्थान के राजसमंद जिले के रक्ततलाई से उन पट्टिकाओं को हटा दिया है, जिसमें यह दावा किया गया था कि महाराणा प्रताप की सेना हल्दीघाटी युद्ध से भाग गई थी। पिछले 40 वर्षों से इस पट्टिका के माध्यम से यह झूठ फैलाया जा रहा था कि महाराणा प्रताप अकबर से डर कर भाग गए थे।

यह फैसला कई राजपूत संगठनों और जनप्रतिनिधियों की मांग के बाद आया है। राजपूत संगठनों और इतिहासकारों ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर रक्ततलाई में लगे इस शिलापट्ट को हटाने के लिए कहा था, जिसमें कहा गया है कि राजपूत शासक महाराणा प्रताप हल्दीघाटी के युद्ध से पीछे हट गए थे।

हल्दीघाटी के युद्ध से जुडी झूठी पट्टिकाएं हटा दी गईं

ASI जोधपुर सर्कल के अधीक्षक बिपिन चंद्र नेगी ने कहा कि विभागीय आदेशों के बाद गुरुवार को रक्ततलाई से पट्टिकाएं हटा दी गईं। उन्होंने बताया, “पट्टिका 40 साल से अधिक पुरानी थीं। पत्र खराब हो गए थे और signage यानी कि चेतावनी संकेतक ASI के नहीं थे। उन्हें राज्य के पर्यटन विभाग द्वारा लगाया गया था। ASI ने 2003 में इन साइटों के रख-रखाव का काम शुरू किया था। इसलिए उन्हें आज हटा दिया गया”

शिलापट्ट, जिसे अब हटा दिया गया।

नेगी ने कहा, “युद्ध की तारीख हो या अन्य विवाद ASI सब कुछ सत्यापित करेगा और तथ्यात्मक आधार पर प्रमाणित जानकारी देगा। इतिहास और पुरातत्व में विभिन्न स्तरों पर अंतर हैं, जिनका ध्यान रखा जाएगा।”

उन्होंने कहा कि टेंडर प्रक्रिया का पालन करते हुए रक्ततलाई में नई पट्टिकाएं लगाई जाएंगी, जिसमें लगभग 20 दिन लगेंगे। यानी अब लोगों को वास्तविक इतिहास पढाया जायेगा।

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पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 1970 के दशक की शुरुआत में इस क्षेत्र की यात्रा के दौरान राज्य के पर्यटन विभाग द्वारा रक्ततलाई में  पट्टिकाएं लगाई गई थीं। यह वही समय था जब वामपंथी ब्रिगेड अपने प्रभाव को बढ़ाते हुए देश के अकादमिक क्षेत्र को अपने कब्जे में ले रहा था। यह झूठ भी उसी प्रक्रिया में फैलाया गया जैसे इतिहास के अन्य तथ्य तोड़मरोड़ कर NCERT तथा विभिन्न किताबों के माध्यम से फैलाए गए।

हल्दीघाटी युद्ध भारत का महान इतिहास है और महाराणा प्रताप नायक

हल्दीघाटी युद्ध मेवाड़ के राणा महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर के बीच 1576 में लड़ी गई थी। एक तरफ जहां कई इतिहास की किताबों में युद्ध की तारीख 18 जून, 1576 बताई गई है, वहीं उन रक्ततलाई की पट्टिकाओं पर तारीख 21 जून, 1576 लिखी हुई थी। यहां तक ​​कि सतीश चंद्र जैसे इतिहासकारों ने भी हल्दीघाटी युद्ध की उसी तारीख का उल्लेख किया है जोकि तख्तों पर हैं। यानी स्पष्ट है कि झूठ इन जैसे इतिहासकारों ने ही फैलाया।

सतीश चंद्र ने अपनी पुस्तक मध्यकालीन भारत: सल्तनत से मुगलों तक भाग- II में यही झूठ लिखा था कि राणा लड़ाई जारी रखने के लिए पहाड़ों में भागकर छुप गए थे। सिर्फ सतीश चंद्र ने ही नहीं बल्कि हर वामपंथी इतिहासकार ने अपनी किताबों के माध्यम से एक ही झूठ फैलाया।

हल्दीघाटी के युद्ध की कहानी सदी दर सदी कही और गाई जाती रही है। यह एक महान साहस और बलिदान की कहानी है; अदम्य इच्छाशक्ति के टकराव की कहानी है। यह कहानी है राजपूत गौरव और सम्मान की जिन्होंने मुगलों की महत्वाकांक्षा और विस्तार को चुनौती दी।

कर्नल जेम्स टॉड ने अपने लेखन में मेवाड़ के इतिहास की अनदेखी पर अफसोस जताया था 

‘Maharana Pratap: The Invincible Warrior’, पुस्तक की लेखिका और इतिहासकार रीमा हूजा के अनुसार युद्ध के अंत में दोनों पक्षों ने जीत का दावा किया। “मेवाड़ ने दावा किया कि वे जीत गए क्योंकि उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया। मुगलों ने जीत का दावा किया क्योंकि उनके पास अभी भी सेना थी।’’

राजस्थान के 19वीं सदी के इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने अपने लेखन में अफसोस जताया है कि मेवाड़ के पास दुनिया को अपने बहादुर योद्धाओं और वीर लड़ाइयों को बताने के लिए कोई Thucydides नहीं था। वह हल्दीघाटी के युद्ध की तुलना Battle of Thermopylae से करते हैं, जिसमें एक हमलावर फारसी सेना को एक बहुत छोटी ग्रीक सेना ने रोक दिया था। ठीक उसी तरह जिस तरह हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने अकबर की विशाल सेना को नाको चने चाबे दिए थे।

इस मामले पर उदयपुर के मीरा गवर्नमेंट गर्ल्स कॉलेज के प्रोफेसर डॉ चंद्रशेखर शर्मा ने भी एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया था। जिसमें उन्होंने बताया कि राजपूतों ने निर्णायक रूप से हल्दीघाटी युद्ध जीता था।

डॉ शर्मा ने 16वीं शताब्दी के land records पर निष्कर्ष निकला कि 18 जून, 1576 की लड़ाई के बाद एक साल के लिए महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के पास के गांवों में भूमि वितरित की थी। उन्होंने तांबे की प्लेटों पर खुदा हुआ भूमि अधिकार पत्र सौंपा था जिस पर एकलिंगनाथ के दीवान के हस्ताक्षर हैं। शर्मा ने आगे तर्क दिया कि उस समय केवल एक प्रांत के राजा को भूमि के हिस्से को वितरित करने की अनुमति थी और इसलिए यह इस बात का प्रमाण था कि महाराणा प्रताप हल्दीघाटी युद्ध के विजेता थे।

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