तालिबान से निपटने के लिए बड़ी और स्थायी रणनीति बना रहा है हिंदुस्तान, समझिए इनसाइड स्टोरी

तालिबान को लेकर भारत की ‘कूटनीति’ पर सबसे बड़ा विश्लेषण।

भारत

अफगानिस्तान में हाल के दिनों में जिस तरह से तालिबान का वर्चस्व बढ़ रहा है, उसे लेकर भारत और अन्य पड़ोसी देशों के राजनयिक हलकों में चिंता है। अफगानिस्तान में तालिबान का राज होना भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय है। इस चिंता के दो कारण हैं- एक तो अफ़गानिस्तान में तालिबान का राज होने से क्षेत्र में सुरक्षा की जिम्मेदारी असंतुलित हो जाएगी। दूसरा तालिबान के मजबूत होने से पाकिस्तानी भी मजबूत होगा। इन सभी स्थितियों को देखते हुए भारत तालिबान की समस्या से निपटने के लिए ठोस रणनीतियां बना रहा है।

हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) बैठक के लिए गए थे, जहां तालिबान के बढ़ते प्रभाव को लेकर भी गहमा-गहमी देखने को मिली है।

इस बीच एस जयशंकर ने अफ़गानी विदेश मंत्री मोहम्मद हनीफ अतमर से मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने ट्विट करते लिए कहा, “मेरे दुशान्बे दौरे की शुरुआत अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मोहम्मद हनीफ अतमर से मुलाकात के साथ हुई। हालिया घटनाक्रम को लेकर उनकी जानकारी को सराहा। अफगानिस्तान पर एससीओ संपर्क समूह की कल होने वाली बैठक को लेकर उत्साहित हूं।”

 

भारत के विदेश मंत्री का यह बयान जाहिर करता है कि भारत अफगानिस्तान के मसले पर अपना रूख नहीं बदलेगा। भारत अभी भी शांतिप्रिय अफ़गान सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है, लेकिन Taliban की समस्या का हल निकालने के लिए ईरान और चीन की ओर रुख कर सकता है।

और पढ़ें-अफगानिस्तान में तालिबान लाने में सहायक पाकिस्तान जल्द ही ख़ुद ‘तालिबान’ की चपेट में होगा

इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत के रिश्ते ईरान और चीन के साथ ज्यादा अच्छे नहीं हैं, लेकिन Taliban का मसला इन दोनों देशों को भी प्रभावित कर सकता है। पिछले सप्ताह भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ईरान दौरे के लिए गए हुए थे और उन्होंने तेहरान में नव-निर्वाचित राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी से मुलाक़ात की। बीबीसी के मुताबिक, “जिस दिन भारतीय विदेश मंत्री तेहरान में थे, उसी दिन अफ़ग़ानी सरकार और तालिबान का प्रतिनिधिमंडल भी वहां मौजूद था। एस. जयशंकर बाद में जब रूस पहुंचे तो वहां भी तालिबान के नुमाइंदे मौजूद थे।

 दरअसल, बात यह है कि तालिबान से सिर्फ भारत को खतरा नहीं है, खतरा चीन और ईरान को भी है। ईरान और Taliban की समस्या पर बात करें तो पहला यह कि ईरान और तालिबान दोनों अलग–अलग मुस्लिम संप्रदाय से जुड़े हैं। ईरान जहां शिया मुस्लिम बहुल है तो वहीं तालिबान सुन्नी मुस्लिम आतंकी संगठन है।

इसके अलावा ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच 945 किलोमीटर लंबी सीमा है। हाल ही में तालिबान ने ईरानी सीमा पास के इस्लाम क़लां इलाके पर क़ब्ज़ा कर लिया था। ऐसे में जब Taliban अफ़ग़ानिस्तान में हुकूमत करेगा तो संभवतः अफगानी नागरिक देश छोड़ ईरान की ओर पलायन करेंगे। इससे ईरान में शरणार्थियों की गतिविधियां बढ़ेंगी, जिससे देश को आर्थिक और सुरक्षा के मामलों में परेशानी उठानी पड़ सकता है।

खास बात ये है कि ईरान अमेरिकी प्रतिबंध की वजह से पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। तालिबान आतंक फैलाने के लिए रकम जुटाने में ईरान पर बहुत हद तक निर्भर है, क्योंकि तालिबान मुख्य पैसा ईरान में अफीम के सौदे से जुटाता है। यही कारण है कि ईरान में अफीम का नशा चरम पर है, जोकि ईरानी सरकार के लिए परेशानी का सबब है।

अगर हम चीन और तालिबान की बात करें तो बेशक तालिबान चीन की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है पर चीन भी बखूबी समझता है कि तालिबान से न दोस्ती अच्छी है, न दुश्मनी। चीन, अफ़ग़ानिस्तान के साथ Xinjiang सीमा से बॉर्डर साझा करता है।

रिपोर्ट्स की मानें तो Taliban जब काबुल पर राज करने में सफल होगा; तब वो चीन में रह रहे Uighur मुस्लिमों का मुद्दा उठा सकता है। चीन को डर है कि एक बार अफगानिस्तान में तालिबान का राज स्थापित होगा, तो तालिबान पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामी आंदोलन (ETIM) को भी बढ़ावा दे सकता है।

पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामी आंदोलन चीन के Xinjiang राज्य में एक अलगाववादी संगठन है। Xinjiang की सीमाएं अफगानिस्तान के बदख्शां प्रांत से लगती हैं; जिसे Taliban ने हाल ही में अफगान सुरक्षाबलों से हथिया लिया था। ETIM को साल 2006 में अमेरिका ने आतंकी संगठन घोषित कर दिया था।

चीन कथित तौर पर अफगानिस्तान के बदख्शां प्रांत को अपने Xinjiang क्षेत्र से जोड़ने के लिए वखान कॉरिडोर के तहत सड़क निर्माण कर रहा है। काम पूरा होने के बाद वाखान कॉरिडोर के तहत Xinjiang तक अफगानियों की सीधी पहुंच होगी। ऐसे में चीन को डर है कि कहीं ETIM उनके परियोजना में अड़चनें पैदा कर, आतंकवाद को बढ़ावा न देने लगे। यह तभी संभव है जब तालिबान ETIM का सहयोग करेगा।

Exit mobile version