हिंदुस्तान के लिए अपना POK वापस लेने का ये सबसे सुनहरा मौका है, मोदी है तो ये मुमकिन भी है

तालिबान पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लेगा, तो ‘आतंकिस्तान’ भारत के लिए ज्यादा समस्याएं पैदा करेगा!

तालिबान अफगानिस्तान

आज जिस तरह से तालिबान अफगानिस्तान में कब्ज़ा करता जा रहा है और पाकिस्तान की ख़ुशी बढ़ती जा रही है, उसे देखते हुए भारत के पास अपना POK वापस लेने का सुनहरा मौका है। इससे न सिर्फ पाकिस्तान के मंसूबों को झटका लगेगा बल्कि भारत की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सकेगी।

करीब दो दशक की लड़ाई के बाद अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी ने तालिबान के लिए एक सुनहरा अवसर पैदा कर दिया है। इसी का फायदा उठा कर अब वह एक के बाद एक क्षेत्रों को अपने कब्जे में करता जा रहा है। तालिबान ने शुक्रवार को यह दावा किया कि उसने अफगानिस्तान के 85 प्रतिशत क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। अगर अफगानिस्तान में तालिबान का कब्ज़ा हो जाता है तो इसका सबसे अधिक दुष्परिणाम भारत को झेलना होगा।

पाकिस्तान और तालिबान के संबंध किसी से छुपे नहीं है। ऐसे में पूरे अफगानिस्तान पर अगर पाकिस्तान के एक और तालिबान का कब्ज़ा हो जायेगा तो वह भारत और कश्मीर पर आतंकी गतिविधियों को कई गुना बढ़ा देगा। हिंदुस्तान अगर इस स्थिति को पैदा होने से रोकना चाहता है तो भारत को POK पर हमला कर उसे अपने कब्जे में ले लेना चाहिए। इससे उस क्षेत्र में आतंक का सफाया हो जाएगा इसके साथ ही भारत एक रणनीतिक बढ़त भी हासिल कर लेगा।

केंद्र की मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर से अलगाववाद खत्म कर आतंक के सफाए के लिए हटाया था, जिससे जम्मू कश्मीर की आतंकियों से सुरक्षा की जा सके। इस अनुच्छेद को हटाने का एक कारण पाकिस्तान से आ रहे आतंकवाद से सुरक्षा भी था।

आज जब अफगानिस्तान का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा तालिबान जैसे आतंकी संगठन के कब्जे में है तो यह भारत के लिए कहीं अधिक चिंता का विषय है। पाकिस्तान की सीमा पर कार्रवाई करते हुए तालिबान ने अफ़ग़ान सेना की पाकिस्तान से लगी सीमा पर स्थित चौकियों पर भी क़ब्ज़ा कर लिया है।

हेरात प्रांत के जिले के अलावा तालिबान ने तुर्कमेनिस्तान की सीमा पर अफगानिस्तान के एक उत्तरी शहर पर कब्जा कर लिया है जिसे तोरघुंडी कहा जाता है। अफगान तालिबान ने हेरात प्रांत में सलमा बांध पर कब्जा कर लिया है। इस बांध को ईरानी सीमा के पास भारतीय निवेश से बनाया गया था।

 

यही नहीं कंधार प्रदेश भी अब तालिबान के कब्जे में ही है, ऐसे में काबुल पर उनका कब्ज़ा और चुनी गई सरकार के गिरने में अधिक समय नहीं है। अगर पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्ज़ा हो जाता है तो हालत एक बार फिर से 1990 के दशक की तरह हो जाएंगे।

पाकिस्तान शुरू से ही तालिबान का समर्थक रहा है, ऐसे में अगर तालिबान का कब्ज़ा अफगानिस्तान पर रहता है तो उसका सारा ध्यान भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों पर हो जायेगा जैसा 1996 और उसके बाद के वर्षों में हुआ था। हालाँकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर अफ़ग़ानिस्तान में एक स्थिर सरकार नहीं बनी तो पाकिस्तान में समस्याएं पैदा होंगी।

तालिबान के अपने पश्चिमी बॉर्डर पर रहने से पाकिस्तान को सिर्फ भारत से सटे बॉर्डर पर ध्यान केंद्रित करने का मौका मिल जायेगा क्योंकि चीन तो पहले से ही पाकिस्तान का All Weather friend है, अब वह तालिबान को भी अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दे रहा है।

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ऐसे में अगर भारत को इस स्थिति को बनने से पहले ही रोकना है तो पाकिस्तान का ध्यान अफगानिस्तान से दूसरी और कर उसे अस्थिर करना होगा। यही अवसर है कि भारत POK में बालाकोट जैसा हमला कर उसे वापस लेने की कवायद शुरू कर दे।

जब तक पाकिस्तान को विचारने का मौका मिलेगा तब तक POK भारत के कब्जे में होगा। जहां से वह न तो आतंकी कैम्प चला पायेगा और न ही भारत के खिलाफ किसी योजना के लिए उस जमीन को इस्तेमाल कर सकेगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो अफगानिस्तान पर तालिबान का पूरी तरह कब्ज़ा होते ही उनका सारा ध्यान पूर्वी बॉर्डर पर भारत की ओर लग जायेगा।

उस वक्त भारत को तालिबान, चीन और पाकिस्तान का एक साथ मुकाबला करना पड़ेगा। एक साथ तीन तरफा हमले को रोकने के लिए भारत को कड़ी मेहनत करनी पड़ सकती है। इसलिए अच्छा यही होगा कि पाकिस्तान के किसी मंसूबे को बढ़ने से पहले ही रोक दिया जाए।

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