केरल के कम्युनिस्टों के अनुसार, कांवड़ यात्रा से कोरोना फैलता है, बकरीद से नहीं

सहकारिता घोटाला

Patrika

दोहरे मापदंड अपनाने में केरल प्रशासन का कोई सानी नहीं है। उनके लिए सनातनी रीति रिवाज़ से कोरोना वायरस बहुत तेज़ी से बढ़ सकता है, परंतु बकरीद से कोरोना वायरस के बढ़ने का कोई खतरा नहीं है।

जी हाँ, आपने बिल्कुल ठीक पढ़ा। ईद उल अज़हा यानि बकरीद के मौके पर केरल में विशेष छूट दी जा रही है। बकरीद के उपलक्ष्य में केरल सरकार ने 18, 19 और 20 जुलाई को लॉकडाउन में छूट दी है। 21 जुलाई को बकरीद है।

CMO से प्राप्त जानकारी के अनुसार केरल में विभिन्न श्रेणी की दुकानों के साथ ही कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं अन्य सामानों की दुकानों को रात 8 बजे तक खोलने की अनुमति दी गई है। कमाल की बात यह है कि यही केरल के वामपंथी कांवड़ यात्रा पर तरह तरह के ज्ञान देंगे। कुम्भ मेले पर यही लोग सनातन धर्म को प्रतिदिन उल्टा सीधा बोलने से बाज़ नहीं आ रहे थे, परंतु बकरीद से मानो कोरोना ही नहीं फैलता है।

अगर राजनीतिक तथ्य को न देखें और केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से नजर डाली जाए, तो भी केरल सरकार का वर्तमान निर्णय उसके दोहरे मापदंडों को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। नए कोरोना मामलों वाले राज्यों में केरल सबसे ऊपर है, जहाँ हर दिन लगभग 15000 से अधिक मामले मिलते हैं। देश में अगर औसतन 42000 मामले प्रतिदिन दर्ज होते हैं, तो इसमें 36 प्रतिशत से ज्यादा केवल केरल की ही देन है।

यही नहीं, केरल सरकार द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, सिर्फ चालीस लोगों को ही धार्मिक स्थल पर इकट्ठा होने की अनुमति होगी। इसमें कहा गया कि जो लोग धार्मिक स्थलों पर इकट्ठा होंगे, उन्होंने कोविड-19 वैक्सीन की कम से कम एक खुराक जरूर ली हो।

अब ये तो वही बात हो गई कि नियमित रूप से मदिरापान का सेवन करने वाले व्यक्ति को दिशानिर्देश दिए गए कि एक दिन में 40 एमएल से ज्यादा व्हिस्की का सेवन नहीं करना है। इस बेतुके निर्णय को लेकर केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने लॉकडाउन के बीच बकरीद के लिए तीन दिन की छूट की घोषणा के लिए केरल सरकार पर निशाना भी साधा।

मुरलीधरन के अनुसार, “अब जब बकरीद आ गया है, सरकार ने लॉकडाउन के लिए तीन दिन के ढील की घोषणा की है। मेरा सुझाव है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पालन करें और भारत सरकार, ICMR के दिशा-निर्देशों और WHO के दिशा-निर्देशों का पालन करें। महामारी का उपयोग साधन के रूप में न करें। इससे राजनीतिक लाभ नहीं होगा।”

ऐसे में बकरीद पर ढील देकर केरल सरकार ने एक बार फिर सिद्ध किया है कि उनके लिए केवल और केवल एक ही चीज मायने रखती है, और वह है अल्पसंख्यक तुष्टीकरण, चाहे इसके लिए किसी भी स्तर पर क्यों न जाना पड़े।

 

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