केजरीवाल ने दिल्ली पुलिस को एक आंदोलन-जीवी वकील दिया था, LG बैंजल ने फैसला पलट दिया

दिल्ली पुलिस अब किसानों के मामले में अपना वकील खुद चुनेगी!

दिल्ली पुलिस वकील

दिल्ली में उपराज्यपाल क्यों ज़रूरी है? यह सवाल देश के करोड़ों नागरिकों के मन में हमेशा उठता होगा। आज हम इसका उत्तर हाल ही में बीते एक घटनाक्रम के माध्यम से समझाएँगे। दरअसल, हाल ही में दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने केजरीवाल सरकार द्वारा लिए गए एक फैसले को रद्द किया। किसान आंदोलनकारियों द्वारा की गई हिंसा का मामला दिल्ली उच्च न्यायलय में चल रहा है, ऐसे में दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार के बीच इस मामले के लिए वकील नियुक्ति को लेकर अनबन हो गई है।

बात यह है कि दिल्ली पुलिस चाहती है कि वो अपना मन चाहा वकील नियुक्त करें ताकि इस मामले को उनके हिसाब से कोर्ट में पेश किया जा सके। वहीं केजरीवाल सरकार ने अपने मनपसंद वकील को नियुक्त कर दिया था, ताकि हर हाल में हिंसक किसानों को बचाया जा सके। इसलिए उन्होने ऐसे वकील को नियुक्त किया, जो इस पूरे मामले को कमजोर कर दें।

अर्थात, अरविंद केजरीवाल दिल्ली पुलिस के लिए वकील उनके विरोधी यानि किसानों के हित के लिए नियुक्त करने के फिराक में थे। हालांकि, दिल्ली के एलजी बैजल ने केजरीवाल के इस इरादे पर पानी फेर दिया है और राज्य सरकार द्वारा ली गई वकील नियुक्ति के फैसले को रद्द कर, उसे आगे राष्ट्रपति के पास भेज दिया है।

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आम आदमी पार्टी की यह साजिश सोची- समझी थी। असल में वो उग्रवादी किसानों को जेल से छुड़ाकर, पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव में लाभ उठाना चाहते थे। पंजाब में कांग्रेस, अकाली दल और आम आदमी पार्टी, इन तीनों पार्टियां किसान आंदोलन के समर्थन में आवाज़ उठाई है, लेकिन आम आदमी पार्टी ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए इन सभी पार्टियों से दो कदम आगे निकलकर किसानों को जेल से छुड़ाने का भी पूरा प्रबंध कर लिया था।

कुछ महीनों पहले केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) कानून 2021 यानी GNCT Act को मंजूरी दी थी। इस कानून के मुताबिक, दिल्ली की सरकार को अब कोई भी कार्यकारी फैसला लेने से पहले उपराज्यपाल की अनुमति लेनी होगी। दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) कानून 2021 अप्रैल से प्रभाव में आ गया है। जब यह कानून लागू हुआ था, तब दिल्ली सरकार ने संघवाद के राग का आलाप किया था।

आज दिल्ली में GNCT Act नहीं होता, तो केजरीवाल सरकार के क्षड्यंत्र से दिल्ली पुलिस को किसान हिंसा मामले में हार का सामना करना पड़ता ,और वहीं उग्रवादी किसानों को जीत मिल जाती। ऐसे कई उदाहरण है जिससे यह साबित हो चुका है कि देश की राजधानी की कमान अरविंद केजरीवाल के हाथों में नहीं दी जा सकती है। कुछ वर्ष पहले अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली मेट्रो में महिलाओं के लिए सफर मुफ्त करने का ऐलान किया था। केजरीवाल की इस बेतुकी मांग को एलजी ने सिरे से खारिज कर दिया था।

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अरविंद केजरीवाल के ऊपर अनिल बैजल का होना क्यों ज़रूरी है, इसके जवाब के लिए हमें इतिहास खांगलने की ज़रूरत नहीं है बल्कि हाल ही में गुज़रे कोरोना काल की ओर रुख करने की ज़रूरत है। कोरोना त्रासदी के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने हाथ खड़े कर दिये थे, जिसके बाद गृह मंत्री अमित शाह और एलजी अनिल बैजल ने मिलकर दिल्ली को त्रासदी से बाहर निकाला है। हाल के बीते सभी प्रकरण को देखें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि, अरविंद केजरीवाल जैसे मुख्यमंत्री के हाथों में देश की राजधानी का बागडोर देना आत्म-घाती साबित हो सकता था।

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