ममता बनर्जी साम, दाम, दंड, भेद सब तरीके अपना रही हैं, लेकिन उन्हें इस्तीफा तो देना ही पड़ेगा

विधान परिषद का दांव नहीं चला तो अब चुनाव आयोग के सामने गिड़गिड़ा रही हैं ममता!

ममता बनर्जी विधायक नहीं

ममता बनर्जी अब चुनाव आयोग के आगे गिड़गिड़ाने पर मजबूर हो गई हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि टीएमसी की जीत के बाद ममता बनर्जी मुख्यमंत्री तो बन गईं लेकिन जल्द ही उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। विधानसभा चुनावों के दौरान वे नंदीग्राम से चुनाव हार गई थीं।

संविधान के मुताबिक़ उन्हें मुख्यमंत्री बनने के छह महीनों के भीतर राज्य विधानसभा के लिए निर्वाचित होना अनिवार्य है। ऐसे में बंगाल विधानसभा का उपचुनाव होना ज़रूरी है क्योंकि राज्य में विधान परिषद नहीं है।

अगर नवंबर तक उपचुनाव नहीं हुए तो ममता बनर्जी को इस्तीफा देना ही पड़ेगा। उपचुनाव न होने की संभावनाओं के चलते ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने इस्तीफा दिया था। अब यही खतरा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ऊपर मंडराने लगा है।

पहले ममता ने सबकुछ हल्के में लिया और चाल चलते हुए पश्चिम बंगाल में विधान परिषद के गठन के लिए बिल पास कर दिया। इसके पीछे ममता बनर्जी का मक्सद था कि विधान परिषद से ही प्रतिनिधि बनकर मुख्यमंत्री बनी रहेंगी।

हालांकि विधानपरिषद के गठन के लिए संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) से प्रस्ताव को पूर्ण बहुमत से पारित कराना आवश्यक होता है। विधान परिषद को राज्य अपनी मर्जी से निरस्त तो कर सकते हैं, लेकिन पुनर्गठन के लिए संसद की मंजूरी आवश्यक है।

अब ममता को समझ में आ रहा है कि बिल पास करने से कुछ नहीं होने वाला है। ऐसे में मजबूरी में ममता बनर्जी चुनाव आयोग के पास उपचुनाव कराने की मांग को लेकर जा रही हैं।

तृणमूल कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल 15 जुलाई को चुनाव आयोग से मुलाक़ात करेगा। पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद सुदीप बनर्जी के नेतृत्व में पार्टी का 6 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल आयोग से मुलाक़ात करेगा। प्रतिनिधिमंडल आयोग को एक ज्ञापन देकर जल्द से जल्द उपचुनाव की मांग करेगा।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार टीएमसी के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “सुदीप बनर्जी, डेरेक ओ ब्रायन, सुखेंदु शेखर रॉय और कल्याण बनर्जी सहित टीएमसी सांसदों की एक टीम इस संबंध में चुनाव आयोग से संपर्क कर सकती है।”

ममता बनर्जी ने पिछले कुछ दिनों में कई मौकों पर मांग की है कि चुनाव आयोग इन सीटों पर उपचुनाव की तारीखों की घोषणा करे। उन्होंने चुनाव आयोग पर भी कटाक्ष करते हुए कहा, “शायद संवैधानिक संस्था प्रधानमंत्री की मंजूरी का इंतजार कर रही है। मैं प्रधानमंत्री से पश्चिम बंगाल में उपचुनाव कराने की अनुमति देने की अपील करूंगी।’’

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तीसरी बार पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव तो जीत लिया लेकिन नंदीग्राम में 1956 वोटों से हार गईं। नंदीग्राम में शुभेंदु अधिकारी से हारने के बाद भी ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली।

ममता बनर्जी की योजना थी कि भवानीपुर विधानसभा उपचुनावों में वो जीतकर विधायक बन जाएंगी। इसके लिए टीएमसी विधायक शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने 21 मई को भवानीपुर से इस्तीफा भी दे दिया था।

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राज्य में भवानीपुर सहित सात विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं। मुर्शिदाबाद में शमशेरगंज और सुती, जहां चुनाव लड़ने से पहले उम्मीदवारों की मौत हो गई थी, शांतिपुर और दिनहाटा जहां निर्वाचित भाजपा सांसदों (जगन्नाथ सरकार और निसिथ प्रमाणिक) ने शपथ नहीं ली। इसके साथ ही खरदाह और गोसाबा जहां चुनाव के बाद सफल उम्मीदवारों की मृत्यु हो गई।

इन सभी जगह उपचुनाव होने थे, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के चलते बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद चुनाव आयोग ने उपचुनाव पर रोक लगा दी। इसी रोक के चलते बीजेपी को उत्तराखंड में अपना मुख्यमंत्री भी बदलना पड़ा, क्योंकि तीरथ सिंह रावत सांसद थे विधायक नहीं।

अब ऐसा ही ख़तरा ममता बनर्जी पर मंडरा रहा है। इसको लेकर अब टीएमसी बवाल काट रही है। टीएमसी कह रही है बीजेपी जानबूझकर चुनाव में देरी करवा रही है।

कारण चाहे जो भी हो लेकिन ममता बनर्जी की मुख्यमंत्री की कुर्सी खतरे में है। दो महीने से ज्यादा वक्त से वो मुख्यमंत्री हैं, अगर उपचुनाव नहीं होते हैं तो ममता बनर्जी को संविधान का पालन करते हुए अपने पद से इस्तीफा देना ही पड़ेगा, इसलिए अब TMC चुनाव आयोग के आगे गिड़गिड़ा रही है। अब देखना यह है कि ममता की कुर्सी बचती है या फिर उन्हें भी तीरथ सिंह रावत की तरह इस्तीफा देना ही पड़ता है।

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