ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बने रहने के लिए चल रही हैं शातिर चालें, क्या उनकी कुर्सी जाना तय है?

ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधान परिषद का नया पैंतरा चला है!

बंगाल विधानपरिषद ममता बनर्जी

Patrika

ममता का बंगाल में विधानपरिषद “खेला”

बंगाल की लड़ाई चुनावों के बाद भी थमी नहीं है। चुनावों में टीएमसी की जीत के बाद ममता बनर्जी मुख्यमंत्री तो बन गईं लेकिन आगे भी बनी रहेंगी इस पर संशय है। संशय इसलिए क्योंकि ममता बनर्जी अभी विधायक नहीं हैं। चुनावों में बीजेपी के शुभेंदु अधिकारी ने ममता बनर्जी को नंदीग्राम में चारो खाने चित कर दिया था। जिससे ममता बनर्जी विधायक नहीं बन पाईं। मुख्यमंत्री बनने के लिए किसी भी व्यक्ति को या तो विधानसभा का निर्वाचित सदस्य होना चाहिए जबकि कुछ मामलों में विधानपरिषद के सदस्यों को भी मुख्यमंत्री बनाया गया है।

चुनाव आयोग ने उपचुनावों पर रोक लगा रखी है ऐसे में विधानसभा से चुनकर आना तो ममता बनर्जी के लिए संभव नहीं है। इसलिए ममता बनर्जी अब विधानपरिषद का खेला खेल रही हैं।

बंगाल में इस वक्त विधानपरिषद नहीं है। अब सीएम बने रहने की प्लानिंग के तहत ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा में विधानपरिषद के गठन के लिए प्रस्ताव पारित किया है।

ममता को लगता है कि इससे वो सीएम बनीं रहेंगी, लेकिन असल पेंच तो यहीं से शुरू होता है। दरअसल, बंगाल में विधानपरिषद का गठन संसद की मंजूरी के बिना नहीं हो सकता। संसद की मंजूरी यानी कि मोदी सरकार की मंजूरी। ऐसे में बंगाल विधानपरिषद के मुद्दे पर केंद्र और ममता के बीच एक नया टकराव देखने को मिल सकता है, जिसमें ममता की हार तय है।

ममता अपनी कुर्सी बचाने के कुछ भी कर सकती है

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी बचाने के लिए किसी भी हद तक जा रही हैं। इसके लिए वो साम, दाम, दंड, भेद जैसे सभी तरीके अपना रही हैं। इसी कड़ी में अब उन्होंने विधानपरिषद के गठन के लिए पश्चिम बंगाल विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कराया है। इस प्रस्ताव का बीजेपी ने तगड़ा विरोध किया है।

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संवैधानिक प्रावधानों की अगर मानें तो विधानपरिषद के गठन के लिए संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) से प्रस्ताव को पूर्ण बहुमत से पारित कराना आवश्यक होता है। विधानपरिषद को राज्य अपनी मर्जी से निरस्त तो कर सकते हैं, लेकिन पुनर्गठन के लिए संसद की मंजूरी आवश्यक है। साल 1969 में बंगाल सरकार ने विधानपरिषद को निरस्त कर दिया था।

देश में कोरोना वायरस की स्थिति के चलते फिलहाल उपचुनावों पर चुनाव आयोग ने रोक लगा रखी है। तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए ये भी नहीं कहा जा सकता कि ये रोक जल्द हट जाएगी। यही कारण है कि बीजेपी ने उत्तराखंड में अपना मुख्यमंत्री बदल दिया। दरअसल, उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह बीजेपी ने तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन तीरथ सिंह रावत लोकसभा के सांसद थे विधायक नहीं, जबकि 6 महीने के अंदर-अंदर मुख्यमंत्री को विधानसभा या विधानपरिषद का सदस्य होना अनिवार्य है।

दीदी के पास बंगाल में विधानपरिषद का गठन आखिरी विकल्प है 

यही स्थिति अब ममता बनर्जी की है। नंदीग्राम में ममता को बुरी हार मिली तो इसके बाद भी वो मुख्यमंत्री बन गईं। ममता बनर्जी की योजना थी कि वो अपनी परंपरागत सीट भवानीपुर से विधानसभा पहुंच जाएंगी, जिसके चलते भवानीपुर के टीएमसी विधायक ने इस्तीफा भी दिया था, लेकिन उपचुनाव पर रोक लगने से ममता बनर्जी की पूरी की पूरी प्लानिंग धरी की धरी रह गई।

देश के 6 राज्यों बिहार, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और कर्नाटक में विधानपरिषद मौजूद है। ऐसे में ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में भी विधानपरिषद का गठन करके सीएम के पद पर बनी रहना चाहती हैं, दरअसल जानती हैं कि बीजेपी के होते हुए भवानीपुर से जीतना भी उनके लिए आसान नही है।

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ममता का ये डर तब के लिए है जब वो उपचुनाव लड़ेंगीं, लेकिन एक बड़ा डर उपचुनाव न होने और 6 महीने की अवधि पूरी होने का भी है। ऐसे में ममता को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है। ऐसे में अपनी कुर्सी बचाने के लिए ममता बनर्जी हर संभव चाल चल रही हैं, लेकिन केंद्र में बैठी हुई बीजेपी सरकार के मूड को देखकर लगता नहीं कि वो किसी भी कीमत पर विधान परिषद का प्रस्ताव पास करेगी। ऐसे में देखना यही होगा कि तीरथ सिंह रावत की तरह ममता बनर्जी भी इस्तीफा देंगी या फिर वो कोई और शातिर चाल चलेंगी।

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