मनमोहन की ‘चुप रहो और सहो’ से मोदी की ‘आंख में आंख डालकर कहो’ तक हिंदुस्तान की ‘चाइना पॉलिसी’ का सबसे बड़ा विश्लेषण

डोकलाम से लेकर गलवान तक मोदी के हिंदुस्तान का संकेत साफ है- ये नया हिंदुस्तान है, ईंट का जवाब पत्थर से मिलेगा।

मोदी सरकार चीन

PC: The Financial Express

चीन के साथ कूटनीतिक रिश्तों में यूपीए और एनडीए सरकार के दौरान जमीन आसमान का अंतर है। भले ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी चीन के मुद्दे पर आक्रामक बयान देते रहें, लेकिन सर्वविदित है कि पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की विदेश नीति अधिक विनाशकारी थी, जबकि मोदी सरकार चीन के गलत मंसूबों का जवाब ईंट की जगह पत्थर से दे रही है। सेना को खुली छूट देने से लेकर आर्थिक चोट देने तक के मुद्दे पर मोदी सरकार ने एक सख्त प्रशासक का परिचय दिया है। यही कारण है कि सात सालों में चीन भारत की एक इंच जमीन पर कब्जा नहीं कर पाया। आर्थिक क्षेत्र में मोदी सरकार आत्मनिर्भर भारत की नीति के तहत चीन पर अपनी निर्भरता को खत्म कर रही है।

पिछले साल जब से गलवान घाटी में चीन और भारतीय सैनिकों के बीच टकराव हुआ, तब से चीन बैकफुट पर है। भारत के कुछ वामपंथी समूह और राहुल गांधी जैसे अपरिपक्व राजनेता इस मुद्दे पर बिना सोचे समझे बयान देते रहे हैं। हाल ही में राहुल ने ट्वीट के जरिए ये भ्रम फैलाने की कोशिश की थी कि चीनी पीएलए लद्दाख की जमीन पर कब्जा कर रहे हैं, जबकि ये सरासर गलत है। इसके बाद संसदीय समिति की एक बैठक के दौरान उन्होंने चीन को लेकर बेतुके सवाल पूछे, जिनका यथार्थ से कोई सरोकार नहीं था। नतीजा ये कि उनकी बातों को अन्य सांसदों ने नजरंदाज किया, और राहुल बैठक छोड़कर भाग गए।

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राहुल को लगता है कि चीन के साथ जैसे कूटनीतिक रिश्ते यूपीए सरकार के दौरान थे, पीएम मोदी उन्हीं नीतियों पर चलें, जबकि स्थितियां बिल्कुल ही विपरीत हैं। पीएम मोदी और मनमोहन के कार्यकाल में चीन के साथ रिश्तों में एक बड़ा अंतर है। मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और गांधी परिवार के बीच एक डील को लेकर आए दिन बीजेपी आरोप लगाती रही है, लेकिन शायद यही कारण है कि यूपीए सरकार में चीन के खिलाफ कोई सख्त एक्शन नहीं लिया गया।

यूपीए सरकार के दौरान चीन ने लद्दाख की 43,000 वर्ग किलोमीटर की जमीन कब्जाई थी, लेकिन रक्षामंत्री ए के एंटनी ने कहा कि कोई कब्जा ही नहीं हुआ। जब-जब चीनी राष्ट्रपति भारत आए उस दौरान भारत-चीन सीमा पर चीनी पीएलए ने गतिविधियों को आक्रामक कर लिया। इसके विपरीत भारतीय सेना कुछ कर न सकी, क्योंकि उनके हाथ यूपीए सरकार ने बांध रखे थे। तत्कालीन रक्षामंत्री ए के एंटनी ने तो यहां तक कहा कि सरकार सीमा पर सड़कों का जाल केवल इसलिए नहीं बिछाना चाहती, क्योंकि उससे चीनी सैनिक अंदर आ सकते हैं। उनका ये बयान कांग्रेस की अकर्मण्यता का सबूत है।

वहीं आर्थिक क्षेत्र की बात करें तो यूपीए सरकार के दौरान चीन को भारत में व्यापार की अनेकों सहूलियतें दी गईं। साल 2008 में यूपीए सरकार ने चीन के लिए इंपोर्ट ड्यूटी 12.5 फीसदी से घटाकर 2.5 फीसदी कर दी। एबीपी न्यूज की रिपोर्ट बताती है कि साल 2008 से 2013 के बीच चीन को व्यापार के लिए जबरदस्त छूट दी गई। उदाहरण के लिए यूपीए सरकार ने बांस पर लगने वाला आयात शुल्क 30 फीसदी से घटाकर 12 फीसदी के करीब कर दिया। नतीजा ये कि उत्तर प्रदेश और बिहार के इलाकों में अगरबत्ती और धूपबत्ती के लघु उद्योग बर्बाद हो गए। ऐसे में चीन को फायदा भी हुआ और भारत की उसपर निर्भरता भी बढ़ी। इसी तरह मेगा पावर प्रोजेक्ट, और आयात होने वाली लगभग सभी चीजों पर टैक्स को मामूली कर दिया गया।

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यूपीए सरकार में चीन के साथ आर्थिक कुप्रबंधन का नतीजा ये था कि 2004-05 में करीब 1 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा, साल 2009-10 में करीब 19 बिलियन डॉलर हो गया। इस बढ़े व्यापारिक घाटे की जिम्मेदार यूपीए सरकार ही थी। ये सारे आंकड़े इस बात का सबूत हैं कि यूपीए सरकार के दौरान भारत के चीन के साथ रिश्ते कुछ खास नहीं रहे। चीन जो चाहता था, भारत सरकार से दबाव के जरिए करवा लेता था, लेकिन अब मोदी सरकार में स्थितियां उलट गई हैं। रक्षा क्षेत्र की ही बात करें तो भारत-चीन सीमा पर पहला सैन्य विवाद मोदी सरकार के दौरान डोकलाम में हुआ।

महीनों चले विवाद के बाद भूटान भारत और चीन के ट्राइजंक्शन से चीनी पीएलए पीछे हटी थी। इसे मोदी सरकार की कूटनीतिक जीत माना जा रहा था। वहीं, साल 2020 में जब गलवान वैली में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ करने की कोशिश की तो भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों को पीछे धकेलने पर मजबूर कर दिया। मोदी सरकार ने सेना को चीनी सैनिकों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने की खुली छूट दे रखी है।

एक तरफ भारत सरकार ने सेना को चीनी सेना के खिलाफ कार्रवाई की खुली छूट दी थी, तो दूसरी ओर रक्षा संयंत्रों की मजबूती के लिए सैन्य क्षमता को विस्तार देने पर भी काम शुरू किया गया। भारत ने एंटी मिसाइल सिस्टम तक लद्दाख में सीमा पर स्थापित कर दिया। इसका संदेश साफ था कि भारत पीछे नहीं हटेगा। जहां सेना सीमा पर आक्रामक थी, तो दूसरी ओर मोदी सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन को चौतरफ़ा घेरने की तैयारी भी की थी। गलवान घाटी के प्रकरण पर आस्ट्रेलिया, जापान, रूस, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन सभी भारत के साथ खड़े रहे।

आर्थिक मोर्चे की बात करें तो पिछले सात सालों में सरकार की कोशिश रही है कि चीन से निर्भरता को खत्म किया जाए। नतीजा ये कि चीनी कंपनियों ने भारत में निर्यात करना बंद कर अपने प्रोडक्शन प्लांट भारत में लगाए, जिसका फायदा भारत को हुआ। कोरोना काल के दौरान मोदी सरकार ने चीन से स्वास्थ्य इक्विपमेंट के आयात के बजाय उत्पाद करने की नीति अपनाई। ऐसे में चीन का खराब सामान दूसरे देशों के हाथ लगा तो उन्होंने भी चीन की लानत-मलामत की। वहीं खिलौनों के उत्पादन से लेकर तकनीकी से जुड़े सामानों के लिए भी मोदी सरकार स्वदेशी कंपनियों को प्रोत्साहन दे रही है। वहीं, विदेशी कंपनियों का निवेश भी भारत में बढ़ रहा है।

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चीनी कंपनियों ने टेक्नोलॉजी और इंटरनेट के जरिए भारतीयो को बांध रखा था लेकिन मोदी सरकार ने चीन की करीब 200 मोबाइल एप्लीकेशंस और सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल पर रोक लगा दी, और चीन कुछ न कर सका। श्रीलंका, नेपाल, भूटान बांग्लादेश और म्यांमार के जरिए भारत को आंखे दिखाने की कोशिश कर रहे चीन के लिए दिक्कतें भी मोदी सरकार ने ही पैदा कीं, क्योंकि ये सभी भारत से सांस्कृतिक तौर पर जुड़े हुए हैं। चीन POK के रास्ते पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक सीपैक बना रहा है, चीन ने लाख कोशिशें कीं; और भारत पर इस परियोजना में शामिल होने का दबाव बनाया लेकिन भारत प्रोजेक्ट में शामिल नहीं हुआ।

पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को चीन दबे मुंह सपोर्ट करता रहता है। अपनी वीटो शक्ति के प्रयोग से ही वो हर बार पाकिस्तानी आतंकवादियों को वैश्विक आतंकी घोषित करने से बचा लेता है। इससे भारत का पक्ष ही मजबूत होता है क्योंकि भारत चीन के आतंकी समर्थन वाले चेहरे को दुनिया के सामने प्रस्तुत कर देता है। प्रधानमंत्री की आत्मनिर्भर भारत स्कीम के चलते ही धीरे-धीरे भारत की जरूरतों से चीन पर निर्भरता की कम हो रही है, और ये चीन के लिए ही आर्थिक झटका है। भारत की आक्रामकता के कारण ही चीन अब हाथ खड़े करने लगा है, जिसका उदाहरण पीएम द्वारा दलाई लामा को जन्मदिन की बधाई देना है। पीएम मोदी के आक्रामक रुख के बावजूद न तो ग्लोबल टाइम्स ज्यादा कुछ बोला न‌ ही चीनी सरकार।

इन सभी पहलुओं के बावजूद कांग्रेस नेता राहुल गांधी की नजरों में मोदी सरकार सुस्त है; जो इस बात का प्रमाण है कि राहुल को कूटनीतिक रिश्तों पर अधिक ज्ञान की आवश्यकता है। जब चीन से वैश्विक स्तर की कंपनियां भारत में निवेश करने आतीं हैं, और चीनी पीएलए के सैनिक ठंड के कारण 24 घंटे में  भाग जाते हैं तो ये भारत की कमजोरी नहीं, बल्कि साहस का प्रतीक है। ये साहस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में ही दिखा है, जबकि मनमोहन सिंह की कूटनीतिक समझ आलोचनात्मक और निम्न स्तर की थी।

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