राजनीति में एक-दूसरे पर आरोप मढ़ने की रीति हमेशा रही है, लेकिन महामारी के समय में आरोपों से ज़्यादा एकजुट होकर काम करने की सर्वाधिक आवश्यकता है। इसके बावजूद विपक्षी पार्टियां अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगी हुई हैं, ताकि मोदी सरकार को घेरा जा सके। अब विपक्ष ने केंद्र सरकार पर ऑक्सीजन के अभाव में हुई मृत्यु के आंकड़ों को छुपाने का आरोप लगा दिया है। हालांकि, इसको लेकर सरकार की ओर से संसद में बयान दिया गया था कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की भी जान नहीं गई, लेकिन अपनी बेजा विरोध की नीति पर चल रहा है।
आक्सीजन की कमी से हुई मौतों और उस संबंध में सरकार के बयान को लेकर संसद में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव पेश करने की तैयारी में है। दूसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी इस मसले पर तल्ख टिप्पणी की है। उन्होंने कहा, “कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी से इसलिए मौतें हुईं क्योंकि सरकार ने ऑक्सीजन निर्यात 700% तक बढ़ा दिया था। सरकार ने ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट करने वाले टैंकरों की व्यवस्था नहीं की।” वहीं शिवसेना से राज्यसभा सांसद संजय राउत ने केंद्र को घेरते हुए कहा, “मैं निःशब्द हूं। इस बयान को सुनकर ऑक्सीजन की कमी से अपनों को खोने वाले उन परिवारों पर क्या बीत रही होगी? सरकार के खिलाफ मुकदमा दर्ज होना चाहिए। वे झूठ बोल रहे हैं।”
विपक्षी नेताओं के इस विरोध पर स्वयं केन्द्रीय स्वास्थय मंत्री मनसुख मंडाविया ने जवाब देते हुए कहा, “हमने खुद से न ही आंकड़े बदल दिए और न ही केंद्र ने किसी राज्य से ये कहा कि आंकड़ों की कम संख्या को दर्ज़ करें।” दरअसल, विपक्षी पार्टी जिस बात का रोना लेकर अपनी छाती पीट रही हैं वो वास्तवकिता में कोई मुद्दा है ही नहीं। विपक्षी दल जिन मौतों के आंकड़ों को छुपाने का आरोप केंद्र की मोदी सरकार पर मढ़ रहे हैं, उसकी उत्पत्ति और जनक वे स्वयं ही हैं, क्योंकि आंकड़ों का ज़िम्मा राज्यों के अधीन होता है, जो आंकड़े राज्य सरकार, केंद्र को भेजती है उनका ही संकलन कर केंद्र द्वारा हूबहू जनता के सामने पेश किया जाता है।
जिन राज्यों के आंकड़ों में विपक्षी द्वारा मूलतः संशय जताया जा रहा है, उनमें महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ प्रमुख हैं, और दोनों ही गैर-भाजपा शासित प्रदेश हैं। दोनों ही राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की बढ़ती मांग के चलते हालातों अस्थिरता थी। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि यहाँ भी ऑक्सीजन के आभाव में जान माल को नुकसान हुआ तो क्यों केंद्र को सौंपी सूची में राज्य सरकारों ने “शून्य” का आंकड़ा दिया गया? ये बात सत्य है की दूसरी लहर से पूर्व देश को ऑक्सीजन की जितनी ज़रुरत थी, वो अकस्मात बढ़ गई। कोरोना की पहली लहर में रोजाना 3095 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती थी, जबकि दूसरी लहर में रोजाना 9000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत पड़ी।
मसलन विपक्षी पार्टियां अब खुद की फिसड्डी कार्यशैली पर पर्दा डालते हुए सारे आरोपों का ठीकरा केंद्र की मोदी सरकार पर फोड़ रही हैं। वहीँ जिन मनसुख मंडाविया की बतौर स्वास्थ्य मंत्री नियुक्ति पर विपक्ष उनकी अंग्रेजी की पुरानी त्रुटियां निकाल कर हँस रहा था, आज वो इन्हीं विपक्षियों की संसद में बोलती बंद करने में लगे हुए हैं और साथ ही तथ्यों के बल पर विपक्षी पार्टियों की कथनी और करनी के फर्क को सबके सामने उजागर भी कर रहे हैं। यही पचाना अब विपक्षियों को मुश्किल हो रहा है।