आखिरकार भगवान राम की ‘शरण’ में आए, केरल के ‘नास्तिक कम्युनिस्ट’

सबको राम के पास ही आना पड़ेगा।

केरल रामायण संवाद

धर्म को अफीम कहने वाले कार्ल मार्क्स के कम्युनिज़्म का प्रतिपादन करने वाले जब हिन्दुओं के ईष्ट देव के धार्मिक ग्रंथों पर चर्चा कर राम को पूजने लगें, तो समझ लीजिए वो अपने इतिहास के सबसे खतरनाक राजनीतिक संकट से जूझ रहे हैं। केरल सरकार चला रही सीपीएम की स्थिति भी राष्ट्रीय राजनीति में कुछ ऐसी ही हो गई है, जिसका नतीजा है कि सीपीएम की मल्लपुरम ईकाई ने अब भगवान राम की लीला अर्थात रामायण के 7 दिवसीय संवाद का कार्यक्रम रखा है, और सीपीएम के सभी नेता भगवान राम की भक्ति का उपदेश देते हुए उनके वचनों को सार्वजनिक जीवन में उतारने की बात करने लगे हैं।

राम मंदिर के विरुद्ध समय-समय पर राजनीतिक एजेंडा चलाना और राष्ट्रीय राजनीति में मुस्लिम तुष्टीकरण का खेल कम्युनिस्टों के लिए एक विशेष विषय रहा है। इसका नतीजा ये हुआ कि देश के अन्य राज्यों में सिमटते-सिमटते कम्युनिस्ट शासन केवल केरल तक सीमित रह गया है। ऐसे में अब कम्युनिस्टों को हिन्दुओं और भगवान राम की याद आई है।

रिपोर्ट्स के अनुसार अब केरल के मल्लपुरम में कम्युनिस्ट पार्टी की ईकाई ने शहर में 7 दिन का ‘रामायण संवाद’ रखा है, इसके जरिए सीपीएम बीजेपी और संघ को चुनौती देने की सोच रहा है, हालांकि ये एक हास्यास्पद घटनाक्रम प्रतीत होता है।

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दरअसल, सीपीआई मलप्पुरम की जिला कमेटी ने 7 दिवसीय रामायण संवाद मे राम के आदर्शों को कम्युनिस्टों की प्राथमिक नीति बताया है। इसमें पार्टी के राज्य स्तरीय नेता भी रामायण और राम पर अपने विचार रख रहे हैं। रामायण और भारतीय विरासत नाम से शुरु हुई रामायण संवाद सीरीज की शुरुआत 25 जुलाई को हुई थी और 31 जुलाई को रामायण संवाद का समापन हो गया है, अपने-अपने विचार रखते हुए पहली बार लेफ्ट के नेताओं ने राम के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है।

रामायण संवाद के दौरान शहर के सीपीएम सचिव पीके कृष्णादास ने भगवान श्री राम को अपनी संस्कृति का प्रतीक माना है। उन्होंने कहा, वर्तमान समय में सांप्रदायिक और फासीवादी ताकतें हिंदुत्व से जुड़ी हर चीज पर अपना इकलौता दावा करती हैं। खास तौर से बड़े पैमाने पर समाज और अन्य राजनीतिक दल इससे दूर जा रहे हैं। रामायण जैसे महाकाव्य हमारे देश की साझी परंपरा और संस्कृति का हिस्सा हैं।

 इतना ही नहीं इस मुद्दे पर सीपीएम के नेताओं ने श्रीराम को वर्तमान राजनीति तक से जोड़ दिया है। सीपीएम नेता केशवन नायर कहा, “भगवान राम को विरोधाभासी शक्तियों के वाहक के रूप में दिखाया गया है। रामायण का गहन अध्ययन करने पर कार्ल मार्क्स के द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism) सिद्धांत की बात कम्युनिस्टों के दिमाग में सबसे पहले आती है। वहीं इस संवाद के दौरान सीपीएम से जुड़े कवि लीलाकृष्णन ने कहा, “हम रामायण की फासीवादी व्याख्या का प्रतिरोध उसकी विविधता वाले स्वरूप के जरिए कर सकते हैं।

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मुख्य बात ये है कि केरल में प्रतिवर्ष मलयालम महीना कारकीडकम मनाया जाता है। इस माह में केरल के घरों में रामायण की कथा सुनाई जाती है। इसके पीछे लोगों की मान्यता है कि ऐसा करने से भारी बारिश के कारण संभावित बीमारियों का खतरा दूर होता है। इसके विपरीत दिलचस्प बात ये है कि आज तक केरल में सीपीएम ने इस तरह के किसी भी प्रोग्राम को महत्व नहीं दिया, लेकिन पहली बार सीपीएम इस  भगवान राम के प्रति अपनी आस्था दिखा रही है।

कम्युनिस्टों की मूल नीति की बात करें तो इन्हें नास्तिक माना जाता है, जिन विचारक कार्ल मार्क्स का ये कम्युनिस्ट अनुसरण करते हैं, उनके ही कथन थे कि धर्म एक अफीम है। उन्होंने ही धर्म के पालन न करने का विचार दिया था, लेकिन अब कम्युनिस्ट केरल में राम के विचारों का अनुसरण करने के साथ ही रामायण संवाद के माध्यम से अपनी आस्था का प्रदर्शन कर रहे हैं; जो कि हास्यासपद है क्योंकि सीपीएम ने ही राम के नाम पर राजनीति करने के लिए बीजेपी पर आरोप लगाए हैं।

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