मुस्लिमों वाला तुष्टिकरण ब्राह्मणों पर काम नहीं करेगा लेकिन सपा, बसपा और आप की रणनीति यही है

ब्राह्मण समाज का बीजेपी से मोह भंग होने की संभावनाएं न के बराबर हैं

बसपा ब्राह्मण

देश की  विपक्षी पार्टियों की नीति रही है, कि तुष्टीकरण के दम पर एक किसी एक बड़े समाज को अपने समर्थन में लिया जाए, और उसके दम पर कुर्सी प्राप्त की जाए। उत्तर प्रदेश तो इन सभी की प्रयोगशाला रहा है, जहां सपा, बसपा और कांग्रेस जैसी पार्टियां मुस्लिम तुष्टीकरण कर बहुमत पाती रही हैं। वहीं 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग और वोट बैंक का असर कुछ इस प्रकार हुआ है कि मुस्लिम वोट बैंक का कोई महत्व ही नहीं रहा। ऐसे में सपा, बसपा और कांग्रेस और सभी  विपक्षी दल बीजेपी के कोर वोट बैंक माने जाने वाले ब्राह्मण समुदाय को निशाने पर ले रहे हैं।

सपा, बसपा और कल की आई आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियां तक ब्राह्मण हितों का मुद्दा एवं दुर्दांत गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर को हत्या बता ब्राह्मण तुष्टीकरण की नीति पर चलने लगी हैं, लेकिन क्या मुस्लिमों की तरह ब्राह्मणों के तुष्टीकरण की नीति इन विपक्षियों के लिए लाभदायक होगी…? क्योंकि दोनों में जमीन आसमान का अंतर है।

साल 2014 में मुस्लिम वोट बैंक के खात्मे के बाद साल 2020 के मध्य में हुआ कानपुर का बिकरु कांड और एनकाउंटर में मारे गए गैंगस्टर विकास दुबे के केस से जुड़ा मुद्दा राज्य की विपक्षी पार्टियों के लिए ब्राह्मणों के तुष्टीकरण का विषय बन गया है। दिलचस्प बात ये है कि इसे सबसे ज्यादा अगर किसी ने भुनाने का प्रयास किया हैं, तो वो निश्चित तौर पर बहुजन समाज पार्टी ही है। पार्टी अपने नंबर दो माने जाने वाले नेता सतीश चंद्र मिश्रा के नेतृत्व में लगातार ब्राह्मण सम्मेलन कर रही है, जिसका मुख्य फोकस विकास दुबे का केस ही है। सतीश चंद्र मिश्रा ने तो स्वयं ही विकास दुबे के भतीजे अमर दुबे की पत्नी खुशी दुबे का केस लड़ने का ऐलान कर रखा है।

इतना ही नहीं ब्राह्मणों के तुष्टीकरण की नीति के अंतर्गत अब उन्होंने विकास दुबे तक का पक्ष लेना शुरु कर दिया है और आरोप लगाए हैं कि योगी सरकार ब्राह्मणों को चुन-चुन कर मार रही है। प्रतापगढ़ के रानीगंज में एक प्रबुद्धजनों की सभा को संबोधित करते हुए कहा, “अपराधी को सजा मिले, पर कानून तय करे। सरकार रोकोठोको नीति चला रही है। वह भी केवल ब्राह्मणों के साथ। प्रतापगढ़ समेत हर जिले में सरकार को ब्राह्मण ही दोषी दिख रहे हैं। जाने कितने माफिया पड़े हैं। कार्रवाई में जाति क्यों देखी जा रही है।

सतीश चंद्र मिश्रा के नेतृत्व में हो रहे ब्राह्मण सम्मेलनों के मंचों में ‘जय श्री राम’ का नारा गूंज रहा है। राम मंदिर के मामले तक से परहेज करने वाली और ‘तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ का नारा देने वाली बसपा अब विकास दुबे के केस के जरिए पूर्ण तौर पर ब्राह्मणों को लुभा रही है। हालांकि, सतीश चंद्र मिश्रा के बयान पर बीजेपी नेता और केन्द्रीय मंत्री अजय मिश्रा ने तगड़ा पलटवार किया है। उन्होने कहा, “बीजेपी कभी भी जाति या धर्म की राजनीति नहीं करती है, जबकि सपा बसपा जैसी पार्टियां इसके दम पर ही सत्ता तक पहुंचती हैं।” उन्होंने कहा,“ब्राह्मणों  को लेकर भ्रम फैलाने की कोशिश हैं, जबकि ब्राह्मण बीजेपी से कतई अप्रसन्न नहीं हैं।”

बसपा को ब्राह्मण वोटों के लिए रणनीति बनाता देख अखिलेश यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी ने भी ब्राह्मण सम्मेलन करने की रणनीति बनाई है। पार्टी की प्लानिंग थी कि वो 22 अगस्त से ये आयोजन करेगी, लेकिन बसपा की रणनीति में आक्रामकता देख सपा के ब्राह्मण नेताओं ने इसे पहले शुरु करने की बात कही है। बसपा का अयोध्या से ब्राह्मण सम्मेलन करना सपा को अपने प्रोग्राम को जल्द शुरु करने पर मजबूर करने लगा है। इसके अलावा ब्राह्मण सवर्ण समाज की मुख्य जाति है, इसके चलते सपा धार्मिक मामलों को भी अहमियत दे रही है, इसीलिए अखिलेश की योजना मंदिरों के भ्रमण की भी है।

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सपा-बसपा जैसी पारंपरिक क्षेत्रीय पार्टियों से इतर उत्तर प्रदेश की राजनीति में कल की आई आम आदमी पार्टी के नेता भी ब्राह्मणों के हितों के मामलों पर बयान बाजी करते रहते हैं। आप के यूपी प्रभारी और राज्य सभा सांसद संजय सिंह तो यहां तक बोल चुके हैं कि बसपा विकास दुबे और खुशी दुबे का मुद्दा देरी से उठा रही है, जबकि वो खुशी दुबे पर सरकार की कार्रवाई का पहले से ही विरोध कर रहे हैं।

संजय सिंह के नेतृत्व में आप की प्लानिंग है कि कैसे भी कर के यूपी के ब्राह्मण समाज को खुश किया जाए। इसके अलावा राम मंदिर का मुद्दा ब्राह्मण समाज के लिए विशेष महत्व रखता है, इसीलिए उन्होंने राम मंदिर निर्माण को लेकर विशेष विवाद को पैदा किया था। उनकी प्लानिंग इससे वोट बैंक बनाने की थी, लेकिन ये उनके लिए ही मुसीबत का पर्याय हो सकता है क्योंकि ये जमीन की खरीद का पूरा मामला ही फर्जी साबित हुआ है।

साफ है कि जिस भांति सपा, बसपा ने मुस्लिमों का तुष्टीकरण कर उन्हें धार्मिक राजनीति में उलझाकर प्रत्येक चुनावों में उनका वोट लिया, ठीक वही नीति अब वो ब्राह्मण समाज के लोगों के लिए भी अपना रहे हैं। इसके विपरीत उनके लिए समस्या ये है कि ब्राह्मण समाज मुस्लिमों की तरह अशिक्षित नहीं है। वो अच्छी तरह जानता है कि राम मंदिर निर्माण का विरोध करने से लेकर कार सेवकों पर गोली चलवाने वाले कौन हैं। किसने ब्राह्मणों को जूते मारने की बात कही है। मुख्य मुद्दों से भटकाकर कौन प्रदेश को अराजकता की दिशा में ले जाने का प्रयास करता रहता है।

ऐसे में ब्राह्मण समाज को मुस्लिम समाज की तरह ही समझकर सपा, बसपा और आप उनके तुष्टीकरण करने की नीति पर चल रही है, जबकि उन सभी दलों के लिए ये कदम सेल्फ गोल साबित हो सकता है। हालांकि, अच्छी बात ये है कि 2014 के पहले जो राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समाज को नजरंदाज करते थे, वो भी वोटों के लालच में उनको साधने की कोशिश कर रही हैं, यद्यपि ब्राह्मण समाज का मोह बीजेपी से भंग होने की संभावनाएं न के बराबर हैं।

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