पाकिस्तान के लिए भस्मासुर साबित होगा तालिबान, कई प्रांतों के लोगों में अभी से डर

पिछली बार भी तालिबान ने पाकिस्तान के प्रांतों को निशाना बनाया था।

अफगानिस्तान में तालिबान

अफगानिस्तान में तालिबान का वर्चस्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। तालिबान की मानें तो इस संगठन ने अफगानिस्तान के लगभग 80 प्रतिशत से अधिक क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया है। हालांकि, जैसे-जैसे तालिबान अपने कब्जे को बढ़ा रहा है, वैसे-वैसे पाकिस्तान की ख़ुशी बढ़ रही है, लेकिन पाकिस्तान को यह याद रखना चाहिए कि यही तालिबानी उसके लिए भयावह स्थिति पैदा करने वाला है।

जैसे-जैसे तालिबान अफगानिस्तान में मजबूत होता जायेगा, पाकिस्तान के लिए समस्या बढ़ती जायेगी। तालिबान द्वारा अफगानिस्तान का कुल अधिग्रहण पाकिस्तान में सिर्फ नया गृह युद्ध ही नहीं आरंभ करेगा बल्कि पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा हो जायेगा।

अमेरिका की सेना द्वारा बगराम में अपना सबसे बड़ा सैन्य अड्डा खाली करने के बाद तालिबान अब अपनी लड़ाई को उत्तर से दक्षिण तक फैला चुका है।

पाकिस्तान अफगानिस्तान के साथ एक लंबी सीमा साझा करता है और तालिबान के उदय से सीमावर्ती क्षेत्रों में बसने वाले गैर-पश्तून जातीय समुदायों में भय और असुरक्षा की भावना बढ़ने लगी है। इससे सीमा के पाकिस्तानी हिस्से में inter-tribal militia संघर्ष की संभावना बढ़ चुकी है।

पिछली बार जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था तो उसने पाकिस्तान के बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों के सीमावर्ती इलाकों को भी निशाना बनाया था। पाकिस्तान से प्राप्त रिपोर्टों से पता चलता है कि बलूचिस्तान में लोग भयभीत हैं कि उन्हें फिर से अपने कृषि क्षेत्रों को खोना पड़ सकता है तथा उन्हें उस क्षेत्र को छोड़कर दूसरे स्थानों पर भागने के लिए मजबूर किया जा सकता है।

यही पाकिस्तान का डर सीमा पार शरणार्थियों को लेकर भी है, जो देश में पहले से रह रहे 1।4 मिलियन पंजीकृत अफगान शरणार्थियों की संख्या को बढ़ाएगा।

बलूचिस्तान में पाकिस्तान सेना और सरकारी एजेंसियों द्वारा बलूच समुदाय के उत्पीड़न के कारण पाकिस्तान उग्रवाद की समस्या से घिरा है। हालिया रिपोर्टों से पता चलता है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान बलूच नेताओं से बातचीत करने का प्रयास कर रहे हैं।

सिर्फ यही समस्या नहीं है, इसके अलावा एक और संगठन ‘पाकिस्तान तालिबान’ है जो अफगानिस्तान में लड़ रहे तालिबान से अलग है। ‘पाकिस्तान तालिबान’ पाकिस्तान के अंदर वर्तमान में लागू कानून की तुलना में अधिक कठोर शरीयत शासन लाना चाहता है।

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जब से 2001 के अमेरिकी आक्रमण ने काबुल में पाकिस्तानी समर्थित तालिबान शासन को भागने के लिए मजबूर किया था तब से पाकिस्तान की शक्तिशाली सेना ने अनौपचारिक रूप से इस समूह को समर्थन दिया है।

पाकिस्तान, भारत के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अफगानिस्तान में तालिबान को मजबूत करना चाहता था और अमेरिका के प्रस्थान के बाद वहां ऐसी सरकार को बिठाना चाहता था जिससे उसका संबंध अच्छा हो, परन्तु तालिबान के कुछ और ही मकसद हैं और वह पाकिस्तान से नियंत्रित होने वाला नहीं है।

ऐसे में नुकसान पाकिस्तान का ही होगा और यह भी हो सकता है कि तालिबान अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करने के बाद अपनी नजर पाकिस्तान की और कर दे।

अफगानिस्तान में तालिबान की विजय से पाकिस्तान के इस्लामी उग्रवादियों को भी प्रेरणा मिलेगी जिनकी शक्ति देश के कबायली सीमा क्षेत्रों में लगातार सैन्य अभियानों के परिणामस्वरूप कम हो गई है।

देखा जाए तो तालिबान का पूरे अफगानिस्तान पर कब्ज़ा पाकिस्तान के अंत की शुरुआत है। आज की स्थिति 1990 के दशक में अफगानिस्तान के गृह युद्ध की जो स्थिति थी उससे कहीं अधिक गंभीर है। अब यह देखना है कि पाकिस्तान की सरकार इस समस्या को समझती है या यूं ही अपनी बर्बादी का इंतजार करती रहती है।

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