कुछ “वाम” अमेरिकी उपासक भारत की छवि धूमिल करने के लिए ऐसा PROPAGANDA रच रहे हैं जिसका कोई आधार ही नहीं हैं। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है! यही कथन फिलहाल वाम विचारों के उपासकों के लिए सटीक बैठता है, क्योंकि इतने उत्तम स्तर की पढ़ाई-लिखाई करने के बाद भी उनकी बुद्धि का विकास ही नहीं हो पाया जैसे होना चाहिए था। इस कथन का अर्थ है कि जब मनुष्य के आँख, मुंह, कान सब ओर के कपाट बंद हो जाते हैं, तब वो आतुरता अपनाते हुए बगैर सोचे समझे उसी रास्ते पर चलता है जो उसे अनुकूल लगता हो। फिर चाहे उसके परिणाम कितने भी भयावह क्यों न हों।
दरअसल, हाल ही में अमेरिका में रह रहे भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम, द्वारा लिखित एक अध्ययन के अनुसार, कोविड -19 महामारी के दौरान महामारी की शुरुआत से इस साल जून तक -49 लाख तक ‘अतिरिक्त मौतें’ हो चुकी हैं। जबकि जून 2021 के अंत तक भारत की आधिकारिक कोविड मृत्यु संख्या लगभग 4 लाख थी।
सारगर्भित बात यह है कि, अरविंद सुब्रमण्यम द्वारा प्रकाशित अध्ययन इस बात की हताशा है कि 135 करोड़ कि आबादी वाले देश में मात्र 4 लाख मौतें कैसे हुईं, बल्कि यहाँ जनसंख्या के मुताबिक 4 लाख से अधिक लोग मरने चाहिए थे जो नहीं मरे। इनके दुख का कारण मात्र यही है कि मोदी सरकार को हर तरफ से घेरने और उन्हें विफल दिखाने के बाद भी बड़े-बड़े सर्वे में पीएम मोदी बारंबार पहला स्थान पाने में सफल क्यों होते जा रहे हैं।
अमेरिका में बैठे ये सभी बुद्धिजीवी सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी को ही नहीं, देश को भी नीचा दिखाने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं। बस, हमारे देश में अभी साक्षरता और निजी समझ जीवित है इसी कारणवश ये “वामजीवी” यहाँ पनप नहीं पाते। वरना तो ये लोग कबका देश को बाहर से चला-चला कर खोखला कर देते।
इससे पहले भी कोरोना वैक्सीन को लेकर ये बाहरी देश में बैठे बुद्धिजीवी फेक न्यूज़ फैला चुके हैं।
जहां एक ओर कोरोना को लेकर इन्हीं “वामजीवियों” द्वारा देश में भय फैलाने और उसके प्रकोप को अनायास एक दूसरे ANGLE के साथ परोसा जा रहा है, तो वहीं भारत में कोरोना की दूसरी लहर के बाद भी पीएम मोदी की लोकप्रियता में इजाफा होने से इन सभी के पेट में मरोड़े उठ रहे हैं।
इस सफलता के लिए जिम्मेदार मोदी के CHARISMA को ठहराया जा सकता है, जिसे मुख्यधारा की मीडिया में “MODI MAGIC” के रूप में जानती है। समाजशास्त्री मैक्स वेबर ने CHARISMA को “एक व्यक्तिगत व्यक्तित्व की एक निश्चित गुणवत्ता के रूप में परिभाषित किया है, जिसके आधार पर उसे सामान्य पुरुषों से अलग किया जाता है और अलौकिक या कम से कम विशेष रूप से असाधारण शक्तियों या गुणों से संपन्न माना जाता है।”
दरअसल, पीएम मोदी का रिकॉर्ड असाधारण रहा है, फिर चाहे गुजरात में बतौर मुख्यमंत्री लगभग 15 वर्ष तक का उनका कार्यकाल हो या प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए उनका 7 साल का कार्यकाल हो, पीएम मोदी की स्वीकार्यता इन वर्षों में बढ़ी ही है। यही एक दिक्कत और रोना है उन सभी प्रकांड – स्वयंघोषित बुद्धिजीवी और विद्वानों का जो आज देश के बाहर से पुअवममोदी को बतौर भारत के प्रशासक के रूप में कोसते हैं जिसका असर शायद उन्हें ही पड़ता हो पर पीएम मोदी को नहीं। ऐसे घर के भेदियों ने ही देश को आंतरिक और बाहरी स्तर पर, हर मोड़ पर क्षति पहुंचाने की कोशिश की पर वे सफल न हो सके।