राकेश टिकैत का राजनीतिक करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया, UP के पंचायत चुनाव के नतीजे टिकैत को जगाने के लिए पर्याप्त हैं

राकेश टिकैत को मिले बस 4 वोट!

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अगर ये कहा जाए कि तथाकथित किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख नेता राकेश टिकैत का राजनीतिक करियर शुरु होने से पहले ही अंधकारमय हो गया है तो शायद ये कथन गलत नहीं होगा। उत्तर प्रदेश के 75 जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनावों में सभी की निगाहें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिले मुजफ्फरनगर की सीट पर थीं कि क्या वो किसान आंदोलन के जरिए बीजेपी के खिलाफ माहौल बना पाते हैं? इसके विपरीत अब जब चुनाव के नतीजे सामने आए हैं तो छोटे टिकैत साहब अपने ही गढ़ मुजफ्फरनगर में फिसड्डी साबित हुए हैं और भारतीय किसान य़ूनियन के उम्मीदवार की जमानत तक जब्त हो गई, जो कि टिकैत के राजनीतिक भविष्य के अंधकारमय होने का संकेत देती है।

केन्द्र सरकार द्वारा संसद में पारित कराए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कथित किसान नेता राकेश टिकैत पिछले लगभग 7 महीनों से किसान आंदोलन के नाम पर देश की राजधानी के पास अराजकता का पूरा प्रयोजन करके बैठे हैं। ऐसे में ये माना जा रहा था कि टिकैत योगी सरकार और बीजेपी के लिए मुसीबत खड़ी करेंगे और ग्रामीण क्षेत्रों में तो बीजेपी का जनाधार सिकुड़ जाएगा। इसके विपरीत अब जब जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव नतीजे सामने आए हैं तो राकेश टिकैत की सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई है, क्योंकि उनके अपने ही गृह जिले मुजफ्फरनगर में  बीकेयू उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई हैं जो उनकी विफलता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।

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विधानसभा चुनाव 2022 से लगभग 6 महीने पहले बीजेपी ने उत्तर प्रदेश के जिला पंचायचत अध्यक्ष चुनाव में अपना बरकरार जलवा एक बार फिर अपने प्रतिद्वंदियों को दिखा दिया है। इसमें सबसे बड़ा नुकसान भारतीय किसान नेता राकेश टिकैत को हुआ है। इसमें कोई शक नहीं है कि विपक्ष के सिखाए कदमों पर चलते हुए टिकैत राजनीतिक सपने सजाए बैठे थे, लेकिन मुजफ्फरनगर के जिला पंचायत चुनाव के नतीजे देख राकेश टिकैत की हवाइयां उड़ गई होंगी। मुजफ्फरनगर में बीजेपी को हराने के लिए बीकेयू ने केन्द्रीय मंत्री संजीव बालियान के भाई सतेन्द्र बालियान को उतारा था, जबकि बीजेपी की तरफ से वीरपाल सिंह निर्वाल उतारे गए थे।  दिलचस्प बात तो ये है कि पूरे विपक्ष का समर्थन प्राप्त होने के बावजूद बीकेयू के हिस्से में केवल 4 वोट ही आए।

खबरों के मुताबिक, बीजेपी जिला पंचायत की केवल 13 सीटें ही जीत पाई थी, लेकिन सियासत का चक्रव्यूह बीजेपी ने कुछ इस तरह गढ़ा कि पार्टी को अन्य 30 वोटों का साथ भी मिल गया, जिसके दम पर पार्टी ने जिले में पंचायत अध्यक्ष का चुनाव आसानी से जीत लिया। वहीं सबसे दिलचस्प बात ये भी है कि पार्टी के उम्मीदवार को 10 मुस्लिम समुदाय के वोटों का भी साथ मिला है जो कि आने वाले विधानसभा चुनावों के लिहाज से विपक्षियों के लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है। इस मुद्दे पर बीजेपी प्रभारी डॉ. चंद्रमोहन ने कहा, किसान नेताओं ने अपने झूठे दावों से जनता को बरगलाने का काम किया था, लेकिन आज जनता जागरुक है और उन्होंने मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ के नेतृत्‍व वाली बीजेपी सरकार पर विश्‍वास दिखाया है।

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किसान नेता नरेश टिकैत और राकेश टिकैत का गढ़ माने जाने वाले मुजफ्फरनगर में बीजेपी का जीतना राकेश टिकैत के लिए अब तक का सबसे बड़ा झटका है, क्योंकि ये माना जा रहा था कि विपक्ष के एकजुट होने के चलते यहां बीजेपी चारों खाने चित होगी, लेकिन नतीजों से सारा दांव ही उल्टा पड़ गया और ये भी साबित हो गया कि जिस तरह राकेश टिकैत ने राजनीतिक मंशाओं से एक अराजक तथाकथित किसान आंदोलन का प्रबंधन किया था, वैसा प्रबंधन वो अपने गढ़ मुजफ्फरनगर में बीजेपी को हराने के लिए नहीं कर सके।

राकेश टिकैत अपने किसान आंदोलन के जरिए ज्यादा से ज्यादा ख्याति पाकर राजनीतिक लाभ  लेने की कोशिश में थे। यकीनन उनकी प्लानिंग बीजेपी को राजनीतिक रूप से परास्त करने की थी, लेकिन मुजफ्फरनगर के जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव नतीजों ने ये साबित कर दिया है कि उनकी राजनीतिक प्लानिंग पूरी तरह फेल हो गई है। अपने ही गढ़ में टिकैत की पार्टी को मिली इस करारी हार के बाद ये कहा जाने लगा है कि राकेश टिकैत का राजनीतिक जीवन शुरु होने से पहले ही खत्म हो गया है।

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