गांधी परिवार के ‘दुलारे’ नवजोत सिंह सिद्धू, पंजाब में बीजेपी की सरकार बनवाकर ही मानेंगे ?

कैप्टन सिद्धू पंजाब

PC: NDTV

उथल-पुथल के महीनों बाद अटकलों पर विराम लग गया, और सिद्धू को पंजाब का कांग्रेस प्रमुख नियुक्त किया गया, जिस पर अमरिंदर ने स्पष्ट रूप से अपनी नाराजगी जताई है। राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री होने के बावजूद कैप्टन की एक न चली। अगले साल पंजाब में विधानसभा चुनाव होने वाले है और  कांग्रेस पार्टी के अंदर इस दरार को पाट पाना मुश्किल है। ऐसे में इसका लाभ सीधे तौर पर BJP को हो सकता है।

कांग्रेस अलाकमान ने एक मियान में दो तलवार रखने वाली स्थिति को जन्म दे दिया है। भविष्य होने वाली चुनाव रैलियों के दौरान ,सिद्धू, जो अमरिंदर की सरकार के तहत किए गए कार्यों का महिमामंडन करने से बचेंगे। दूसरी ओर, अमरिंदर भी सिद्धू के रैली और स्टेज साझा करने से कतराएंगे। दोनों नेताओं के बीच मनमुटाव का फायदा BJP के पाले में गिरने के पूरे आसार है। अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस दूसरे स्थान पर आने वाली है और यदि अकाली अच्छा प्रदर्शन करती है, तो कांग्रेस को तीसरे स्थान से समझौता करना होगा।

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पंजाब में कांग्रेस की बागडोर सिद्धू के हाथ में है और राज्य की जिम्मेदारी कैप्टन के कंधों पर है। अर्थात पंजाब कांग्रेस की आधी शक्ति सिद्धू के पास है और आधी कैप्टन के पास। दोनों नेताओं के विरोधाभास से कांग्रेस मतदाता भ्रमित होंगे, क्योंकि दोनों के बीच की लड़ाई  पंजाब में जमीनी स्तर पर भी जरूर देखने को मिलेगी। ऐसे में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच भी तनाव पैदा हो सकता है। अंततः पंजाब कांग्रेस जमीनी स्तर पर पूरी तरह से बिखर सकती है।

सिद्धू और कैप्टन के बीच मतभेद टिकट बंटवारे के वक्त भी देखने को मिलेगा। वर्तमान स्थित को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि भविष्य में दोनों के बीच दरार और ज्यादा बढ़ सकती है, क्योंकि सिंह और सिद्धू दोनों अपने-अपने वफादारों के लिए अधिक से अधिक टिकट पाने के लिए आपस में लड़ेंगे, जिसके परिणाम पार्टी के खिलाफ होने के पूरे आसार हैं।

TFI की रिपोर्ट के अनुसार, कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्दे पर अपना वोट बैंक बढ़ाने का कठिन प्रयास किया था। कुछ हद तक कैप्टन ने यह मुद्दा भुना भी लिया था, लेकिन गांधी परिवार ने अपने कठपुतली सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर , उनके सभी प्रयासों पर पानी फेर दिया है। इसमें को दो राय नहीं है कि  सिद्धू मुख्यमंत्री पद को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवारी के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।

जाहिर सी बात है कि कांग्रेस बंटी हुई है और आने वाले चुनाव में सिद्धू निश्चित तौर पर  मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में हैं।  इससे मतदाताओं के बीच बड़े पैमाने पर असमंजस की स्थिति पैदा होगी और ऐसे में वो अन्य विकल्पों के साथ जाना पसंद करेंगे जो कि शिरोमणि अकाली दल, आप और भाजपा है।

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अगर हम इसे साल 2017 यूपी विधानसभा चुनाव के तर्ज पर देखें तो, अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के बीच मनमुटाव होने से सपा को भारी नुकसान हुआ था और भाजपा को उतना ही फायदा।

TFI की रिपोर्ट के अनुसार, अकाली दल और आप की राजनीति खालिस्तानी वोट बैंक पर  निर्धारित हैं। वहीं भाजपा से हिंदू आबादी के वोटों के साथ-साथ दलित सिखों के वोटों को भी भुनाने की उम्मीद है।

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