अमरिंदर-सिद्धू के ‘अभिनय’ का ‘पोस्टमार्टम’, गांधी परिवार ने पंजाब कांग्रेस को तबाह कर दिया

अमरिंदर और सिद्धू पास-पास तो थे लेकिन साथ-साथ नहीं थे।

पंजाब कांग्रेस सिद्धू कैप्टन

महीनों के गतिरोध के बाद आखिरकार कैप्टन अमरिंदर सिंह और पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को एक साथ मंच पर देखा गया। एक तरह से कांग्रेस आलाकमान का प्रयास था कि दोनों नेताओं में एकता का प्रदर्शन किया जाए। दोनों नेताओं ने घोषणा की कि वे विधानसभा चुनावों में एक टीम के तौर पर काम करेंगे।

इस दिखावे से इतर कैप्टन और सिद्धू के मंच और चाय पार्टी में हाव-भाव कुछ और ही इशारा कर रहे थे। दोनों क बीच साफ तौर पर असहजता दिखाई दे रही थी। यही नहीं सिद्धू ने जिस तरह से एक स्पिनर की तरह अपनी उँगलियों को चाटते हुए बॉल को स्टेडियम पार छक्का मारने का इशारा किया, वह स्पष्ट तौर पर कैप्टन की बेइज्जती थी। यानी देखा जाये तो गाँधी परिवार ने ही पंजाब कांग्रेस को टूटने के कगार पर खड़ा कर दिया है।

दरअसल, कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू का न्योता स्वीकार कर यह बताने की कोशिश की है कि वे बड़े भाई हैं। कांग्रेस हाईकमान लगातार कैप्टन पर सिद्धू के साथ नजर आने का दबाव बना रहा था। एक तरफ कांग्रेस के शीर्ष नेताओं द्वारा दोनों को एक साथ मंच पर लाकर एकजुटता की कवायद की जा रही थी। दूसरी तरफ पूरी टी-पार्टी और फिर मंच पर अमरिंदर के हावभाव एक अलग ही कहानी कह रहे थे।

दोनों के हावभाव बता रहे थे कि वो दोनों एक-दूसरे से बात नहीं करना चाहते हैं। यही नहीं मंच पर सिद्धू ने अपनी उंगलियों को चाटते हुए और फिर बॉल को स्टेडियम पार छक्का मारने का इशारा कर भरी सभा में यह बताने की कोशिश की कि वह जीत गए। यह कैप्टन का अपमान ही था। जब तक मंच पर सिद्धू रहे, कैप्टन ने उनकी तरफ देखा भी नहीं।

इंडिया टुडे की मानें तो कैप्टन अमरिंदर सिंह पर सिद्धू के पदग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए कांग्रेस आलाकमान का दबाव था। प्रियंका गांधी वाड्रा के अलावा कांग्रेस महासचिव हरीश रावत ने कैप्टन अमरिंदर सिंह से एकजुटता दिखाने की जिद की।

इतनी कोशिशों के बाद दोनों नेता साथ तो दिखे परंतु एक दूसरे से नाराजगी को छिपा नहीं सके। टी पार्टी के दौरान भी कुछ इसी तरह की घटना हुई। दैनिक जागरण के अनुसार मुख्यमंत्री जैसे ही पंजाब भवन पहुंचे तो नवजोत सिद्धू उन्हें सिर्फ नमस्कार कहकर गायब हो गए। जब मुख्यमंत्री ने उनके बारे में पूछा तो उन्हें बताया गया कि सिद्धू वापस चले गए हैं। जागरण के अनुसार जब कैप्टन अमरिंदर के सहयोगियों ने इस बारे में पंजाब मामलों के प्रभारी हरीश रावत से पूछा तो उन्होंने बताया कि सिद्धू नीचे समारोह में हैं, लेकिन जब उन्हें पता चला कि सिद्धू लौट गए हैं तो रावत खासे नाराज दिखे।

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हरीश रावत ने तुरंत सिद्धू को फोन किया और लौटने को कहा, परन्तु सिद्धू ने मना कर दिया। हरीश रावत ने तुरंत प्रियंका गांधी को सारी बात बताई और उनसे कहा कि वह सिद्धू से बात करें। रिपोर्ट के अनुसार प्रियंका गांधी के कहने पर ही सिद्धू दस मिनट बाद फिर से लौट आए। सिद्धू के चेहरे पर बनावटी हंसी स्पष्ट नजर आ रही थी।

यानी न तो कैप्टन खुश थे और न ही सिद्धू। यह नाराजगी अब आने वाले कई महीनों तक जारी रह सकती है जिससे पंजाब कांग्रेस का टूटना तय है। कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी इस बेइज्जती को नहीं भूलने वाले हैं और उनका गुस्सा जल्द ही देखने को मिलेगा। देखा जाए तो आज अगर पंजाब कांग्रेस में इस तरह की फूट पड़ी है तो उसका कारण सिर्फ और सिर्फ गाँधी परिवार है। गाँधी परिवार ने जानबूझ कर कैप्टन के खिलाफ यह चाल चली थी। कैप्टन गांधी परिवार के गले की हड्डी बने हुए थे। यही कारण था कि सिद्धू को पंजाब में अमरिंदर सिंह के खिलाफ सार्वजानिक तौर पर मोर्चा खोलने की स्वतंत्रता दे दी गई।

पूर्व क्रिकेटर रहे सिद्धू ने न सिर्फ भाषणों में बल्कि सोशल मीडिया पर भी कैप्टन पर कई भयंकर आरोप लगाए। उसके बाद जब इन दोनों के बीच यह युद्ध अपने चरम पर था तब सिद्धू को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। अब यह नाराजगी मंच पर भी दिखाई दी। इन दोनों के बीच संघर्ष विराम अस्थायी है। अब यह देखना है कि कैप्टन अपनी इस बेइज्जती का बदला कैसे लेते हैं।

 

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