जबरन वेश्यावृत्ति और क्रूर कानून : 1996-2001 का तालिबान फिर से वापस आ गया है

तालिबान शरीया कानून

अफगानिस्तान में बीस सालों के युद्ध के बाद अमेरिकी सेना तो वापस लौट गई, लेकिन अब अफगानिस्तान के लोगों को पुनः मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। तालिबान धीरे-धीरे अफ़ग़ानिस्तान के मुख्य इलाकों पर अपना कब्जा जमा रहा है। इसके साथ ही कब्जे वाले इलाकों में तालिबान शरीया कानून लागू करवा रहा है।‌ वहां की महिलाओं और बच्चियों के लिए प्रतिबंध और बलात्कारों की घटनाएं बढ़ रही हैं, जो सन् 2000 के पहले की याद दिलाता है, जब तालिबान वहां आतंक मचाता था। तालिबान शरीया के वो अमानवीय कानून जिनका अस्तित्व अमेरिकी सेना के आने के बाद खत्म हो गया था, तालिबान उन्हें पुनः थोपने की तैयारी कर चुका है।

अफगानिस्तान में तालिबान का आतंक इतना विराट है कि पिछले 20 सालों के युद्ध के बावजूद अमेरिकी सेना इन्हें खत्म नहीं कर पाई। नतीजा ये कि अमेरिकी सेना अब यहां से वापसी कर रही है। यहां तालिबान का तांडव शुरू हो गया है, अफगानिस्तान के जिन इलाकों में तालिबान ने कब्जा कर लिया है, उन सभी जगहों पर शरीया कानून लागू कर दिया गया है। ख़बरों के मुताबिक बाराखाशन (Badakhshan) और Takhar (टखर) जिलों में एक फरमान जारी किया गया है, जिसके अनुसार तालिबान ने संबंधित क्षेत्रों में बच्चियों और विधवाओं की सूची की मांग की की सूची की मांग की है। तालिबान के फरमान के मुताबिक इलाके में 15 साल से ज्यादा उम्र की विधवाओं की शादी मुजाहिदीन से की जाएगी जो कि कथित तौर पर अल्लाह के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।

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स्थानीय स्तर पर तालिबानी समूह लड़कियों की सूची मांग रहें हैं, जिससे उनका यौन शोषण किया जा सके। इसके लिए मौलानाओं और मुफ्तियों से 15 वर्ष से 45 वर्ष तक की कुंवारी और विधवा महिलाओं की सूची मांगी है। तालिबानी अपने इलाकों में इन बच्चियों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगा रहे हैं, और उन्हें व्याभिचार के दल-दल में धकेलने के अमानवीय कृत्यों को अंजाम दे रहे हैं। तजाकिस्तान सीमा के पास के इलाके शिर खान बंदार में रहने वाली महिलाएं तालिबान के इन फरमानों से डरी हुईं हैं, क्योंकि यहां महिलाओं के बाहर निकलने तक पर पाबंदी लगा दी गई है।

तालिबान के नए आदेश के मुताबिक उन्हें केवल पुरुषों के साथ ही बाहर निकलने की अनुमति है, उन्हें और बच्चियों तक को अब पर्दा करना होगा। अब पुरुषों के दाढ़ी काटने पर प्रतिबंध है। यही नहीं मस्जिद में नमाज़ न पढ़ने पर सख्त पिटाई के आदेश हैं। पुरुष कुर्ते-पजामे के अलावा कुछ भी नहीं पहन सकते हैं। इन नियमों के साथ ही पुरुषों को सिर पर पगड़ी पहननी होगी, और वे लाल या हरे रंग का कुछ भी नहीं पहन सकते, क्योंकि अफ़गानिस्तान के झंडे का ये ही रंग है। सबसे ख़तरनाक बात ये है कि तालिबान के शरीया कानून से संबंधित इन नियमों के टूटने पर पत्थर मारकर मौत की सजा के प्रावधान जारी कर दिए गए हैं।

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तालिबान के ये सभी शरीया कानून उसके पुराने 1996-2000 के दौरान के शासन की याद दिलाते हैं, जिस दौरान महिलाओं को घरों में कैद होकर रहना पड़ता है। महिलाओं और बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न की वारदातें तालिबान से सुनना एक आम बात हो गई थी। सिनेमा से लेकर दूरसंचार तक के मामलों में प्रतिबंध और लिंग के आधार पर तानाशाही तालिबान की पहचान थी।  तालिबान पिछले 20 सालों में अमेरिकी सेना के सक्रिय होने पर ठंडा तो पड़ गया था, लेकिन अब अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान पूरे अफगानिस्तान में अपना वर्चस्व बना रहा है।

ऐसे में जिन-जिन जगहों पर तालिबान का कब्जा होता जा रहा है, वो जगहें पूर्ण तौर पर शरीया कानून के अंतर्गत आ रही हैं, और ये सभी कानून पुनः अफगानिस्तान को एक क्रूर शासन की ओर ले जा रहे हैं।

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