हाल ही में पश्चिम बंगाल की हिंसा से संबंधित मामले की सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट ने कुछ हफ्तों के लिए स्थगित कर दिया है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दोनों ही पक्ष अपनी बात रखने के लिए अनुपस्थित रहे। बंगाल सरकार तो वैसे ही अनुपस्थित रहती, परंतु आश्चर्यजनक रूप से केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट के अनेक बार बुलाने पर भी एक प्रतिनिधि तक नहीं भेजा। ऐसा करने के पीछे केंद्र सरकार की मंशा चाहे जो हो, परंतु वह एक बहुत गलत संदेश भेज रही है।
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के पश्चात तृणमूल काँग्रेस के हिंसा का कैसा तांडव मचा था, इसके बारे में किसी विशेष शोध की आवश्यकता नहीं है। दुष्कर्म पीड़ितओं से लेकर कई समाजसेवी सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गए, ताकि उन्हे न्याय मिल सके। सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में एक सकारात्मक कदम उठाते हुए 1 जुलाई को दोनों सरकार [केंद्र और बंगाल सरकार] को नोटिस भी भेजा। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय किया है कि वह बंगाल हिंसा पर दो हफ्ते बाद सुनवाई करेगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि दोनों ही पक्षों [केंद्र और बंगाल सरकार] से कोई भी प्रतिनिधि कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत नहीं हुआ है –
In #WestBengal post-poll violence case, #SupremeCourt had issued notices to Union & state government on July 1.
Around a month later, the Centre doesn't even appear today in the case to say anything. There was no counsel appearing. Court adjourns the case by two weeks.
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) July 30, 2021
इस मुकदमे में चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व करने उनके अधिवक्ता अमित शर्मा अवश्य आए थे। परंतु सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि केंद्र और राज्य सरकार इस मामले में बराबर के पक्षधर हैं। ऐसे में उनका इस मामले की सुनवाई में अनुपस्थित होना अच्छी बात नहीं है।
अब केंद्र क्यों कोर्ट में उपस्थित नहीं हुआ? सोशल मीडिया पर कई लोग अनेक प्रकार के विश्लेषण कर रहे हैं। कोई कह रहा है कि भाजपा धीरे-धीरे तृणमूल काँग्रेस को उसी की भाषा में जवाब देना चाहती है। कोई कह रहा है कि भाजपा ममता को विक्टिम कार्ड नहीं खेलने नहीं देना चाहती। लेकिन वजह चाहे जो भी हो, फिलहाल के लिए तो ऐसा लग रहा है मानो भाजपा अपने कार्यकर्ताओं और बंगाल की जनता के प्रति बिल्कुल भी गंभीर नहीं है।
एक तरफ तो भाजपा के उच्चाधिकारियों का मानना था कि बंगाल में चुनाव पश्चात हुई हिंसा बेहद गंभीर विषय है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अनुपस्थिति तो कुछ और ही तस्वीर बयां कर रही हैं। ऐसा लग रहा है मानो केंद्र सरकार के लिए उसके लिए पार्टी के कार्यकर्ताओं का कोई मोल नहीं है। लेकिन यदि ऐसा नहीं है, जो कि कई बार सिद्ध भी हुआ है, तो कोर्ट में अनुपस्थिति से भाजपा बहुत गलत संदेश भेज रही है।
भाजपा की इस लापरवाही का सोशल मीडिया पर भी जमकर विरोध हुआ। ट्विटर यूजर अभिजीत अय्यर मित्रा ट्वीट करते हैं, “भाजपा बंगाल में अपने कार्यकर्ताओं और अपने मतदाताओं के जीवन को इतने गंभीरता से लेती है कि वे कोर्ट में उनका प्रतिनिधित्व करने तक नहीं जाते!”
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The BJP takes the lives of its workers & voters in Bengal so seriously that it didn’t even bother making a representation…….didn’t even bother. https://t.co/ylY6YGp93s
— Abhijit Iyer-Mitra (@Iyervval) July 30, 2021
लेकिन अभिजीत अकेले नहीं थे। सोशल मीडिया पर अन्य ऐसे कई यूजर्स थे, जिन्होंने विभिन्न माध्यमों से भाजपा सरकार की लापरवाही के प्रति अपना आक्रोश प्रकट किया –
In #WestBengal post-poll violence case, #SupremeCourt had issued notices to Union & state government on July 1.
Around a month later, the Centre doesn't even appear today in the case to say anything. There was no counsel appearing. Court adjourns the case by two weeks.
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) July 30, 2021
The first step in making lives of a few expendable is to dehumanize them. It started with murders of BJP and RSS members in Kerala being (expressly and implicitly) acceptable. Story repeats in Bengal. As long as it's BJP/RSS members who are being killed, it's acceptable now.
— Abhishek Dwivedi (@Rezang_La) July 30, 2021
जिस प्रकार से स्थिति अपने नियंत्रण में होने के बावजूद केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के समक्ष बंगाल में चुनाव पश्चात हिंसा के संबंध में अपना प्रतिनिधि भेजने में नाकाम रही, उससे बहुत गलत संदेश जाता है। नीति चाहे जो हो, लेकिन जब विरोधी प्रोपगैंडा फैलाने में जुटा हुआ हो, तो आपको भी और अधिक आक्रामक होना चाहिए, न कि अपने विरोधी को अपने ऊपर हंसने के अवसर देने चाहिए, जैसे भाजपा अभी दे रही है।
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