मायावती और अखिलेश की नैया पहले से ही डूब रही थी, AAP, AIMIM और राजभर का ‘गठबंधन’ डूबती नाव में छेद कर देगा

सपा और बसपा के कमज़ोर वोट बैंक की बची-खुची हवा भी निकाल देगा, ये गठबंधन

भागीदारी संकल्प मोर्चा

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों को लेकर अब गहमा-गहमी तेज होने लगी है। ऐसे में अटकले लगाई जा रहीं है कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन हो सकता है। दरअसल, ओम प्रकाश राजभर ने सोमवार को कहा कि वह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन को मजबूत करने के लिए इस सप्ताह आम आदमी पार्टी  के नेता अरविंद केजरीवाल से मुलाकात करेंगे।

उन्होंने कहा कि छोटे दल 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में अगली सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे।

उन्होंने कहा, “मैं 17 जुलाई को राज्यसभा सांसद संजय सिंह की मौजूदगी में केजरीवाल से मिलूंगा।  बैठक के दौरान आप को भागीदारी संकल्प मोर्चा में सहयोगी के तौर पर शामिल करने के लिए बातचीत की जाएगी।”

बता दें कि, भागीदारी संकल्प मोर्चा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव, 2022 के लिए राजनीतिक गठबंधन है। इसमें अब तक 10 छोटे दल शामिल हैं।

(1) बाबू सिंह कुशवाहा, जन अधिकार पार्टी

(2) ओम प्रकाश राजभर, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी

(3) बाबू रामपाल, राष्ट्र उदय पार्टी

(4) रामशरण कश्यप, भारतीय वंचित समाज पार्टी

(5) प्रेमचंद प्रजापति, भागीदारी पार्टी (पी)

(6) अनिल सिंह चौहान, जनता क्रांति पार्टी

(7) देवेंद्र सिंह लोधी, राष्ट्रीय क्रांति पार्टी

(8) कृष्णा पटेल, अपना दल (कमेराबादी)

(9) केवट रामधनी बिन्द, भारतीय मानव समाज पार्टी

(10) असदुद्दीन ओवैसी, AIMIM

AIMIM ने हाल ही में घोषणा की थी कि वह अगले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ गठबंधन में 100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।

अगर हम भागीदारी संकल्प मोर्चा का वोट बैंक समीकरण देखें तो यह मोर्चा मुख्यतौर पर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के वोट बैंक को नुकसान पहुंचाएगा। मिसाल के तौर पर देखें तो बाबू सिंह कुशवाहा की अपने समुदाय (कुर्मी) पर अच्छी पकड़ मानी जाती है और बुंदेलखंड ओबीसी बहुल इलाका है। वहीं हम बिहार विधानसभा चुनाव के आधार पर AIMIM का आंकलन करें तो उम्मीद की जा रही है कि यूपी विधानसभा चुनाव में भी मुसलमान वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा AIMIM के खाते में जाएगा। इससे पहले मुस्लिम वोट बैंक पर समाजवादी पार्टी का एकाधिकार हुआ करता था।

अब रही बात आम आदमी पार्टी की तो, बेशक आम आदमी पार्टी का उत्तर प्रदेश में कोई जनाधार नहीं है, लेकिन इसके बावजूद AAP पार्टी समाजवादी पार्टी के वोट बैंक में सेंधमारी कर सकती है। ठीक उसी प्रकार कांग्रेस का भी उत्तर प्रदेश में कोई जनाधार नहीं रहा पर कांग्रेस समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के लिए ‘वोट कटवा’ पार्टी साबित हो सकती है।

उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और भागीदारी संकल्प मोर्चा, यह सभी दल गैर- भाजपा वोट बैंक पर निर्भर है इसका सीधा सा मतलब यह है कि जो वोट भाजपा और NDA गठबंधन के पाले में नहीं गिरते हैं, वह संभवत: इन सभी दलों के बीच बट जाएंगे। चुनाव जीतने के लिए मुख्य सूत्र है कि अपने वोट बैंक को संगठित करना। ऐसे में विपक्षी दल इसका ठीक विपरीत कर रहे हैं और इसका लाभ सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी को होगी।

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भारतीय जनता पार्टी का वोट बेस राज्य में सबसे मजबूत है क्योंकि बीजेपी ने अपना अपना जनाधार विकास के नीति से तैयार किया है। अगर हम ओबीसी वोट बैंक पर ध्यान दें तो, उत्तरप्रदेश में साल 2014 के बाद गैर-यादव वोट बैंक का झुकाव बीजेपी के तरफ देखने को मिल रहा है। बता दें कि, ट्रिपल तलाक मुद्दे पर BJP की मुखरता के बाद, मुस्लिम महिलाओं को भी बीजेपी प्रिय लगने लगी है।

राज्य के विधानसभा चुनाव में कोरोना संक्रमण का मुद्दा भी एक अहम मुद्दा साबित हो सकता है और इस मुद्दे को बीजेपी भुनाने में सफल होगी। ऐसा इसलिए भी क्योंकि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने महज एक महीने के अंतराल में कोरोना पर काबू पा लिया था। इसके साथ ही जब संक्रमण चरम पर था, किसी विपक्षी दल ने जनता की मदद करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। ऐसे में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाते हुए दिख रही है।

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