हाल ही में आईटी अधिनियम की भांति देश के वर्षों पुराने सिनेमैटोग्राफी एक्ट में भी संशोधन होने जा रहा है। संसद के संक्षिप्त मॉनसून सत्र में इसी सिनेमैटोग्राफी एक्ट को पारित किए जाने में केंद्र सरकार जुटी हुई है। वहीं दूसरी तरफ कई वामपंथी अभिनेता एवं निर्देशक इस विधेयक के विरोध में है, और अभिनेता एवं राजनीतिज्ञ कमल हासन के नेतृत्व में संसदीय दल से मिलकर इस विधेयक के प्रति हाल ही में अपनी चिंताएँ जताने भी पहुंचे थे।
कमल हासन संसदीय दल के नेता शशि थरूर से इस विषय पर मिलने पहुंचे थे। दरअसल, केंद्र सरकार ने जनता से इस विधेयक के विषय पर राय मांगी थी। इस परिप्रेक्ष्य में संसदीय दल और जनप्रतिनिधियों के बीच एक बैठक का प्रस्ताव रखा गया, जिसके अंतर्गत ये बैठक तय हुई।
लेकिन इस सिनेमैटोग्राफी एक्ट के संशोधन विधेयक में ऐसा क्या है, जिससे वामपंथी इतना भड़के हुए हैं? यदि ये विधेयक पारित हुआ, तो ऐसा क्या हो जाएगा?
हिंदुस्तान टाइम्स के रिपोर्ट के अंश अनुसार,
“संसदीय पैनल को केंद्र सरकार ने बताया था कि उसने सिनेमैटोग्राफी एक्ट में जो बदलाव का प्रस्ताव दिया है, उसका अर्थ है कि यदि सेंसर बोर्ड को ऐसा लगता है कि उक्त कंटेन्ट समाज या राष्ट्र के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है, तो अगर प्रारंभ में इसे पारित भी किया गया हो, तो उसपे बोर्ड पुनर्विचार कर सकता है, और उक्त फिल्म या डाक्यूमेंट्री को दिया गया प्रमाणपत्र वापिस भी ले सकता है।”
इस पर TFI पोस्ट ने भी कुछ हफ्तों पहले विश्लेषण किया था, कि कैसे यह कानून यदि पारित किया गया, तो भड़काऊ और अश्लील कॉन्टेन्ट पर लगाम लगा सकती है। लेकिन इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा बताते हुए वामपंथियों ने विधेयक के विरुद्ध तुरंत मोर्चा निकाल दिया। केंद्र सरकार द्वारा जनता के विचारों का स्वागत करने के बावजूद अधिकतर वामपंथियों ने इसका विरोध करते हुए इसे तत्काल प्रभाव से वापिस लेने की मांग की है।
लेकिन फिल्म उद्योग के वामपंथी आखिर इस विधेयक को बिना जाने, बिना पढ़े इसका विरोध क्यों कर रहे हैं? असल में वामपंथियों की असली चिंता तो कुछ और ही है। आईटी एक्ट और सिनेमैटोग्राफी एक्ट में संशोधन से पहले इन लोगों को भारत की संस्कृति के बारे में कुछ भी उल्टा सीधा बोलने, लिखने और प्रचार प्रसार करने की पूरी आजादी थी। अभी भी ‘तूफान’ जैसे फिल्मों के उदाहरण से देख सकते हैं कि कैसे सामाजिक प्रगति के नाम पर दिन भारतीय संस्कृति का उपहास उड़ाया जाता है और सनातन धर्म पर कीचड़ उछालने का प्रयास किया जाता है।
कुछ फिल्में तो ऐसी होती हैं, जहां सीधे-सीधे नक्सलवाद और इस्लामिक आतंकवाद की जय जयकार होती है। लेकिन पहले आईटी एक्ट में संशोधन, और फिर सिनेमैटोग्राफी एक्ट में संशोधन के पश्चात अब वामपंथी पहले की भांति स्वच्छंद होकर भारत के विरुद्ध विश नहीं उगल पाएंगे। अब पहले की भांति वामपंथी चाहे सिल्वर स्क्रीन हो या OTT, भारतीय संस्कृति को गालियां देने की प्रवृत्ति को कूल नहीं ठहराया पाएंगे। यह जो सुविधा वामपंथियों से छीनी जा रही है, इसी की छटपटाहट वर्तमान सिनेमैटोग्राफी एक्ट के विरोध के रूप में स्पष्ट दिखाई देता है।