कॉपी, पेस्ट और रीमेक- बॉलीवुड के पास कोई नई कहानी, आइडिया और Creativity नहीं बची है

इन दिनों बॉलीवुड में मानो रचनात्मकता बची ही नहीं है। आज बॉलीवुड सिर्फ ‘कट कॉपी पेस्ट’ की एक घटिया फैक्ट्री बनकर रह गया है, जहां पर हॉलीवुड हो या फिर क्षेत्रीय फिल्म उद्योग, इनके बेहतरीन फिल्मों की रीमेक ही बनती है।

अगर औसत के तौर पर देखा जाए, तो दस में से मुश्किल से 1 या 2 ऐसी फिल्में होंगी, जिनकी कहानी पूरी तरह से नई होगी।

लेकिन ये बॉलीवुड इतना रीमेक प्रेमी क्यों है? इसके दो प्रमुख कारण है : रचनात्मकता के कारण आने वाले जोखिम उठाने में भय और अच्छी स्क्रिप्ट लिखने के लिए परिश्रम करना जितना परिश्रम एक ‘गदर’ बनाने में लगता है, उतना परिश्रम एक ‘वांटेड’ या ‘राधे’ बनाने में बिल्कुल नहीं लगेगा। इसीलिए तो खान तिकड़ी रीमेक के पीछे सबसे अधिक लगती है। सलमान खान को तो तमिल सुपरहिट ‘मास्टर’ की रीमेक भी ऑफर की गई है। इसे बॉलीवुड का आलस नहीं तो और क्या कहेंगे?

यकीन नहीं होती तो आने वाली नई फिल्मों की लिस्ट को ही देख लीजिए। इन में सबसे ज्यादा लाइमलाइट बंटोर रहा है अद्वैत चंदन द्वारा निर्देशित ‘लाल सिंह चड्ढा’। ये 1994 की ऑस्कर विजेता ‘फॉरेस्ट गम्प’ की आधिकारिक रीमेक है, जो स्वयं विंस्टन ग्रूम की पुस्तक पर आधारित है। परंतु यह तो कुछ भी नहीं है। सुधा कोंगरा द्वारा निर्देशित तमिल फिल्म ‘सूराराई पोटटरु’ की हिन्दी रीमेक बनने जा रही है। इसके साथ साथ ‘विक्रम वेधा’, ‘अपरिचित/अन्नियन’, ‘रातचासन/ राक्षस’ जैसे सुप्रसिद्ध तमिल फिल्मों के रीमेक भी तय है। यही नहीं, तेलुगु सुपरहिट ‘जर्सी’ की हिन्दी रीमेक भी बनकर तैयार है।

इस ‘रीमेक ट्रेंड’ पर चर्चित यूट्यूब चैनल ‘Tried and Refused Productions’ ने अपने वर्तमान वीडियो के जरिए करारा प्रहार भी किया है। इस चैनल को चलाने वाले फिल्म विश्लेषक अनमोल जामवाल के अनुसार, “अगर इन फिल्मों को फिर से बॉलीवुड बनाता है, तो इनके वर्तमान नीतियों को देखते हुए मूल फिल्म की भावना और उसकी रचनात्मकता का उपहास उड़ाया जाएगा”। अनमोल अपने विश्लेषण में गलत भी नहीं है।

पिछले ही वर्ष जब राघव लॉरेंस ने अपनी ही फिल्म ‘कंचन’ का रीमेक ‘लक्ष्मी’ के तौर पर बनाया था, तो हम सभी ने देखा था कि किस प्रकार से एक सामाजिक रूप से अहम कॉमेडी का बंटाधार करके रख दिया गया था। हाल ही में अभी नेटफ्लिक्स पर सरोगेसी जैसे गंभीर विषय से जुड़ी एक फिल्म रिलीज होने वाली है ‘मिमी’। ये न सिर्फ एक मराठी फिल्म ‘माला आई वायची’ का रीमेक है, बल्कि ट्रेलर से ही स्पष्ट होता है कि फिल्म में मूल विषय से क्या खिलवाड़ हो सकता है, क्योंकि आधी से अधिक कहानी तो ट्रेलर ने ही स्पष्ट कर दी है

लेकिन जो उद्योग एक ऐसे देश से गाने तक चुरा ले, जिसने बार बार हमारे देश पर आतंकी हमले करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, तो उससे आप रचनात्मकता की आशा कैसे कर सकते हैं? आपको विश्वास नहीं होगा, लेकिन ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ का एक गाना असल में पाकिस्तानी सेना के गीत ‘तू थोड़ी देर और ठहर जा’ से ही उठाया गया है। आगे आप स्वयं समझदार हैं।

इसके अलावा अगर बॉलीवुड के आगामी प्रोजेक्ट्स पर नजर डाली जाए तो ओरिजनल क्या है? रीमेक के अलावा यदि कुछ है, तो केवल बायोपिक। कबीर खान की बहुप्रतिष्ठित 83 इसलिए इतने वर्षों से अटकी पड़ी है। इसके अलावा OTT पर अगस्त में ‘शेरशाह’ और ‘भुज’ भारतीय सेना के पराक्रम को चित्रित करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। परंतु इसके अलावा कुछ अलग, कुछ नया बॉलीवुड में कहाँ है? इसके लिए केवल बॉलीवुड के निर्माता, अभिनेता और लेखक ही नहीं, बल्कि काफी हद तक स्वयं दर्शक भी जिम्मेदार हैं।

चाहे वजह कोई भी हो, एक अच्छी और सच्ची फिल्म के ट्रेलर के लिए ही  जितने लाइक्स, व्यूज और शेयर होने चाहिए, उससे दस गुण ज्यादा लाइक्स और शेयर्स तो ‘राधे’ के ट्रेलर पर दिख जाते हैं। ऐसे में बॉलीवुड के साथ दर्शकों को भी कुछ हद तक अपने विचारों और अपने विकल्पों पे आत्ममंथन करना पड़ेगा। हाल ही में उन्होंने ‘तूफान’ जैसे दोयम दर्जे की फिल्म को ठेंगा दिखाया है। इस समस्या का भी समाधान निकलेगा।

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