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जानें असम-मिजोरम सीमा विवाद का इतिहास, दो राज्यों के बीच के खूनी संघर्ष की कहानी

असम-मिजोरम सीमा विवाद

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भले ही आज हम स्वतंत्र राष्ट्र हैं, लेकिन अंग्रेजों ने देश छोड़ने से पहले कईं ऐसे विवाद खड़े किए थे, जिनका समाधान आज भी मुश्किल लगता है। इसका नतीजा ये है कि रह-रहकर ये विवाद हिंसा का रूप ले लेते हैं, और असम-मिजोरम सीमा विवाद भी कुछ ऐसा ही है, जिसके चलते मिजोरम और असम पुलिस के बीच झड़पें हुई, जिसमें असम के 6 पुलिसकर्मियों की जान चली गई।

ऐसे में गृहमंत्री अमित शाह तुरंत एक्शन में आए और उन्होंने केन्द्रीय सुरक्षा बलों की दोनों राज्यों की सीमाओं पर तैनाती कर दी है, साथ ही दोनों मुख्यमंत्रियों से भी इस मसले पर वार्ता की है। इसके विपरीत सवाल उठाता है कि असम और मिजोरम के बीच सीमा का ऐसा क्या विवाद है, कि दोनों राज्यों की पुलिस एक-दूसरे को मरने-मारने पर उतारू हो गईं…तो चलिए आज हम आपको इससे जुड़ी सारी जानकारी देते हैं।

पूर्वोत्तर भारत में सीमाओं का मुद्दा काफी जटिल रहा है। ये विवाद केवल असम और मणिपुर के बीच ही नहीं बल्कि नागालैंड के बीच भी है, लेकिन वहां असम और मणिपुर की तरह प्रदर्शन नहीं होते हैं। सबसे बड़ा विवाद असम और मणिपुर के बीच 165 किलोमीटर लंबी सीमा का है, जो कि भारत के परतंत्र काल के शासक यानी ब्रिटिशों की देन है। पहले मिजोरम भी असम में ही शामिल था, और उसे लुशाई हिल्स के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में अंग्रेजों ने बंटवारा किया और विवाद शुरू हुआ। 1875 की एक अधिसूचना के अनुसार असम के कछार के मैदानी इलाकों को लुशाई हिल्स से अलग कर दिया गया।

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इसके विपरीत साल 1933 के नए नियम के साथ ये मामला विवादित हो गया, क्योंकि इसने लुशाई हिल्स और मणिपुर के बीच एक अलग सीमा बना दी, जिसे मणिपुर मानने को तैयार नहीं है। इसमें विवाद ये है कि मिजोरम का मानना है कि सीमांकन 1875 की अधिसूचना के आधार पर किया जाना चाहिए, जबकि असम 1933 के सीमांकन के आधार पर सीमाएं निश्चित करने की बात करता है।

एक महत्वपूर्ण तथ्य ये भी है कि 1830 में कछार के राजा की मौत के बाद ब्रिटिशों ने यहां कब्जा कर लिया, ब्रिटिश कछार में चाय की खेती की प्लानिंग में थे, लेकिन आदिवासी ये नहीं चाहते थे। उन्हें लगता था कि उनकी जमीन पर कब्जा हो सकता है। ऐसे में 1875 में ब्रिटिशों ने आदिवासी और पहाड़ियों को अलग करने के लिए लुशाई हिल्स से अलग कर दिया गया। इससे मिजो भी खुश थे, लेकिन 1933 में ब्रिटिशों ने औपचारिक सीमा खींची तो ये मिजो आदिवासियों को स्वीकार नहीं थी, वे 1875 की अधिसूचना को ही मानते रहे।

इसके विपरीत इस मुद्दे को कभी हल करने के प्रयास ही नहीं किए गए। आजादी के बाद से पूर्वोत्तर में केवल एक राज्य असम ही था, जो कि उग्रवादियों की चपेट में था। ऐसे में उस वक्त की केन्द्रीय सरकारों ने लोगों से बिना विचार-विमर्श किए अलग-अलग राज्यों के गठन कर दिए, यही कारण है कि असम, अरुणाचल, मेघालय, मणिपुर में सीमा विवाद भड़कता रहता है, लेकिन अभी तक की सरकारों ने इस विवाद को हल करने के लिए कोई खास कदम नहीं उठाए।

आज की स्थिति में मिजोरम के तीन जिले आइजोल, कोलासिब और ममित असम के कछार, हाइलाकांडी और करीमगंज जिलों के साथ 165 किलोमीटर लंबी अंतर-राज्यीय सीमा साझा करते हैं, और यही सीमा विवाद ज्वलंत हो गया है।

पिछले दो वर्षो में भी ऐसे मौके आए, जब सीमा विवाद को लेकर राज्य आमने-सामने आ गए, लेकिन अब हद हो गई, जब मणिपुर के पुलिसकर्मियों ने असम के पुलिसकर्मियों पर गोलियां चला दीं, जिसमें 6 की मौत हो गई है, और कई घायल हुए हैं। देश के गृहमंत्री अमित शाह अब इस मामले की मॉनिटरिंग कर रहे हैं, सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लिए एक तरफ जहां इलाके में CRPF की तैनाती की गई है तो दूसरी ओर राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी वार्ता हो रही है। महत्वपूर्ण बात ये भी है कि दोनों ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपनी एक-एक इंच जमीन लेने की बात कही है।

इस मामले में मुख्य विपक्षी दल‌ कांग्रेस राजनीतिक मंशाओं के अंतर्गत प्रश्न उठा रहा है कि अब तक इस मामले कुछ भी क्यों नहीं किया गया, ये एक ऐसा प्रश्न है जो कांग्रेस के युवा नेताओं को ही बुजुर्ग नेताओं से पूछना चाहिए, क्योंकि 60 के दशक में कांग्रेस शासित सरकार ने असम के बंटवारे तो किए, लेकिन प्रत्येक राज्य में सीमा विवाद को ही जन्म दिया।

इस पूरे प्रकरण के बाद ये कहा जा सकता है, अभी तक भले ही किसी सरकार ने इस मुद्दे पर ज्यादा ध्यान न दिया हो, लेकिन गृहमंत्री अमित शाह की सक्रियता बताती है कि ये मामला भी अति शीघ्र हल हो सकता है, जो कि वर्तमान की मुख्य आवश्यकता है।

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