विज्ञान के खिलाफ़ वामपंथियों का युद्ध

लिबरलों का विज्ञान

वामपंथियों ने युद्ध छेड़ा हुआ है। दक्षिणपंथियों के खिलाफ, राष्ट्रवादियों के खिलाफ, बुद्धिमता के खिलाफ, आर्थिक विकास के खिलाफ और स्वयं के खिलाफ! वे खुद को ही पसंद नहीं कर रहे हैं। एक लिबरल पुरुष इसलिए खुश नहीं है क्योंकि वह पुरुष है, जबकि एक लिबरल महिला हमेशा महिला-विरोध और पितृसत्ता के विरोध में आवाज़ उठाती रहती है। उन्हें शांति पसंद नहीं है, क्योंकि वे ना सिर्फ धर्म के खिलाफ हैं बल्कि उनकी अंतरात्मा भी जीवन का साथ छोड़ चुकी है। हालांकि, लिबरलों का सबसे बड़ा युद्ध अगर किसी के खिलाफ़ है तो वह विज्ञान है! और अगर इस युद्ध से जल्द ही छुटकारा ना पाया गया तो दुनिया में बुद्धिमता खतरे में पड़ जाएगी!

कोरोना को लेकर दुनिया के बुद्धिमान और विज्ञान में विश्वास रखने वाले लोगों ने शुरू ही लिबरलों के चीन-परस्त एजेंडे पर संदेह जताया है। लिबरलों का दावा रहा है कि कोरोना की उत्पत्ति प्राकृतिक रूप से हुई है, और यह वायरस जानवरों से सीधा इन्सानों में फैला। दूसरी ओर दुनिया के आम लोगों का यह शुरू से ही मानना रहा है कि कोरोना प्राकृतिक नहीं बल्कि लैब में बनाया गया हो सकता है और यह चीन के Wuhan Institute of Virology से “लीक” हुआ हो सकता है।

हालांकि, जिन्होंने भी चीन के खिलाफ़ जाकर ऐसे दावे किए, उन्हें लिबरलों द्वारा खूब लताड़ा गया। जिन वैज्ञानिकों ने या पत्रकारों ने चीन को एक्स्पोज़ करने वाले लेख लिखे, उन्हें प्रतिबंधित कर दिया गया। उन्हें धमकियाँ दी गईं। उदाहरण के लिए अमेरिका के Centre for Disease Control and Prevention के पूर्व निर्देशक Robert Redfield को ही ले लीजिये।

उन्होंने खुलासा किया था कि जब उन्होंने CNN पर यह दावा किया कि कोविड-19 असल में लैब में बना हो सकता है, उसके बाद से ही उनके साथी वैज्ञानिकों की ओर से उन्हें जान से मारने की धमकियाँ मिलना शुरू हो गयी थी। उनके बयान के मुताबिक “मुझे धमकाया गया क्योंकि मैंने एक दूसरी थ्योरी का समर्थन किया था। मुझे राजनेताओं से ऐसी उम्मीद थी, वैज्ञानिकों से नहीं!”

तथाकथित Scientific Journals, जैसे कि The Lancet, Nature, Science ने भी लैब लीक थ्योरी को “बकवास” सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हालांकि, अब इन सब journals को मुंह की खानी पड़ी है। सच आखिर सामने आ ही गया! सच और लिबरलों, अथवा विज्ञान और लिबरलों की लड़ाई में जीत बेशक सच और विज्ञान की ही होगी, और हुई भी।

Lancet की वो टास्क फोर्स, जिसका जिम्मा कोरोना की उत्पत्ति का पता लगाना है, उसके अध्यक्ष कुछ समय पहले तक डॉक्टर Peter Daszak थे। Daszak वही व्यक्ति हैं, जिन्हें ओबामा के समय से ही चमगादड़ों पर शोध के लिए वित्तपोषित किया जाता रहा है। वो सारा पैसा गया कहाँ? वहीं गया जहां से कोरोना लीक हुआ? यानि कि Wuhan Institute of Virology में?

कोरोना चीन से फैलाया, और इसे फैलाने में दुनिया के लिबरलों ने अपना पूरा योगदान दिया। भ्रम फैलाने वाले लेखों से लेकर Scientific Journals तक ने कोरोना महामारी को हवा दी, और अपने इसी काले सच को छुपाने के लिए ये सभी चीन परस्त लिबरल अब मुंह छिपाते फिर रहे हैं और सच से दूर भाग रहे हैं।

इसमें Big Pharma की भूमिका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। किस प्रकार पिछले वर्ष के दौरान big pharma ने Hydroxychloroquine के खिलाफ़ एजेंडा चलाया, वो सब ने देखा! HCQ एक जेनरिक दवा है, जो कि सस्ती भी है और जो आसानी से उपलब्ध भी हो जाती है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इसे भरपूर समर्थन दिया। हालांकि, लिबरलों ने HCQ के खिलाफ़ जंग का ऐलान कर दिया। HCQ का सबसे अधिक उत्पादन भारत में होता है और HCQ की वैश्विक स्वीकार्यता बढ़ने से भारत को भी आर्थिक और कूटनीतिक फायदा होता। अमेरिकी big pharma के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। उसने HCQ का विरोध किया। कारण? इसलिए क्योंकि HCQ उनके हिस्से का मुनाफा कमा जाती। लोगों को अगर आसानी से और सस्ता इलाज मिल पाता, तो big pharma को मुनाफा कहाँ से मिलता?

अब भारत में किए गए हालिया शोध से सिद्ध होता है कि ट्रम्प एकदम सही थे। Journal of The Association of Physicians of India (JAPI) ने सिद्ध किया है कि 6 हफ्तों या उससे अधिक समय तक HCQ के इस्तेमाल से करीब 72 फीसदी मरीजों में कोरोना की रोकथाम हेतु सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला। HCQ के इतर लिबरलों ने Gilead की Remdesivir को खूब बढ़ावा दिया, जबकि इसका कोरोना के मरीजों पर कोई खास असर देखने को नहीं मिला है।

हालांकि, यह सिर्फ कोरोना ही नहीं है, जिसने लिबरलों की मूर्खता को एक्स्पोज़ किया हो! विज्ञान और biology को लेकर उनके मन में फैली घृणा से भी उनके मानसिक दिवालियेपन का बड़ी आसानी से पता लगाया जा सकता है। लिंग को लेकर लिबरलों ने तरह-तरह की भ्रांतियों को जन्म दिया है। LGBTQIA+ के फोर्मूले को आगे बढ़ाने वाली इस लिबरल गैंग से अगर आप पूछेंगे कि दुनिया में कितने लिंग हैं तो आपको जवाब मिलेगा- “अनगिनत”!

इन लिबरलों ने प्रकृति के खिलाफ़ भी जंग छेड़ी हुई है। प्रकृति ने इन्हें जैसा बनाया है, ये उसमें बदलाव करना चाहते हैं। यहाँ तक कि बच्चों में Hormones को इंजेक्ट कर उनके लिंग को बदलने पर ज़ोर दिया जा रहा है। खुद अमेरिकी राष्ट्रपति 8 साल के बच्चों पर Hormonal injection के इस्तेमाल का समर्थन करते हैं। अगर यह बीमारी अमेरिका में नहीं रोकी गयी तो यह जल्द ही दुनिया के अन्य हिस्सों में फैल सकती है। अमेरिकी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री Xavier Becerra और सहायक सचिव Dr Rachel Levine भी बच्चों की “इच्छानुसार” उनका लिंग बदलने के विचार को अपना समर्थन देती हैं। बच्चों में बेशक उनके लिंग के बारे में सही फैसला करने की बुद्धिमता नहीं होती है। 5 से 6 साल के बच्चे आखिर कैसे अपना लिंग बदलने जैसे बड़े-बड़े फैसले ले पाने में सक्षम हैं?

विज्ञान विरोधी लिबरलों के लिए किसी बच्चे की माँ बनना भी अपमानजनक हो गया है। ये लिबरल इस एजेंडे को भी आगे बढ़ाते हैं कि सिर्फ महिलाएं ही menstruate नहीं करती हैं बल्कि पुरुष भी menstruate करते हैं। Transgenders को महिलाओं के खेल में खेलने की अनुमति दी जा रही है, जिसके कारण महिलाओं के लिए एक स्तर की प्रतिस्पर्धा खत्म होती जा रही है। इतना ही नहीं, transgenders को महिलाओं के common areas तक में प्रवेश की अनुमति दी जा रही है जो उनके निजता का भी हनन है।

इसके अलावा लिबरल Climate Activism में भी किसी से पीछे नहीं है। बेशक जलवायु परिवर्तन एक गंभीर समस्या है। हालांकि, इसका अर्थ ये नहीं कि क्लाइमेट को बचाने के लिए मूल विकास का गला घोंट दिया जाये, लोगों को नौकरियों से वंचित रखा जाये और लोगों को गरीबी में सड़ने के लिए छोड़ दिया जाये।

लिबरलों ने इस प्रकार विज्ञान के खिलाफ़ जंग छेड़ दी है। वे विज्ञान का मज़ाक उड़ाते-उड़ाते खुद एक मज़ाक बनकर रह जाते हैं। अब लिबरलों की इस ख़याली दुनिया को अंत करने का समय आ गया है। इनकी बीमारी को जल्द से जल्द ठीक करना होगा अन्यथा यह भी एक विकराल महामारी का रूप धारण कर सकती है।

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