ओवैसी और ओपी राजभर का मीम-भीम गठबंधन शुरू होने से पहले ही खत्म

राजभर को ऐसा करने पर मजबूर होना पड़ा!

मीम भीम गठबंधन

उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष विधासभा चुनाव है। इस कारण राजनीतिक गलियारों में अभी से ही सरगर्मी बढ़ चुकी है। सभी पार्टियां बीजेपी को हराने के लिए अपनी अपनी रणनीति पर काम कर रही हैं। इसी क्रम में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम पार्टी ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर के साथ मिलकर “भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया” था। इस मीम-भीम के गठबंधन ने हाथ तो मिला लिया था, परन्तु इस मीम-भीम गठबंधन के शुरू होने से पहले ही इसमें दरार पड़ चुकी है।

दरअसल, ओम प्रकाश राजभर “भागीदारी संकल्प मोर्चा” नामक मीम-भीम गठबंधन बनाने के लिए छोटी-छोटी  पार्टियों को एक साथ लाने की रणनीति पर काम कर रहे थे। राजभर और ओवैसी की पार्टी के अलावा बाबू सिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी, प्रेम चंद्र प्रजापति की राष्ट्रीय उपेक्षित समाज पार्टी, अनिल सिंह चौहान की जनता क्रांति पार्टी, बाबूराम पाल की राष्ट्र उदय पार्टी और कृष्णा पटेल की अपना दल शामिल हैं। असदुद्दीन औवैसी ने हाल में घोषणा की थी कि वह 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मोर्चा के साथ मीम-भीम गठबंधन में 100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।

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अब इस मीम-भीम  गठबंधन में दरार का कारण असदुद्दीन ओवैसी द्वारा बहराइच में जाकर गाजियों की मजार पर चादरपोशी है। दरअसल, ओवैसी बहराइच में सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर गए थे, जहां उन्होंने चादर चढ़ाई लेकिन उसी बहराइच में मौजूद राजा सुहेलदेव की स्मारक पर नहीं गए। राजा सुहेलदेव ने ही युद्ध में सैयद सालार मसूद गाजी को हराया था। ओवैसी द्वारा चादरपोशी का दलित समाज के लोगों समेत अन्य छोटे दलों ने विरोध किया। कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने ओपी राजभर से सवाल किया था कि क्या वो राजनीतिक लाभ के लिए उनके पूर्वजों से जंग करने वाले और उन्हें शहीद करने वाले गाजियों की कब्रों पर चादरपोशी करने वालो के साथ गठबंधन करेंगे?

अब सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने उनसे दूरी बना ली है। ओम प्रकाश राजभर ने असदुद्दीन ओवैसी के साथ शुरू हो रही अपनी चुनावी यात्रा से खुद को अलग कर लिया है।

दरअसल, न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के अनुसार असदुद्दीन ओवैसी, ओपी राजभर के साथ मिलकर 15 जुलाई से चुनावी यात्रा शुरू करने वाले थे। दोनों ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, बुलंदशहर और संभल के पार्टी के कार्यकर्ताओं से मुलाकात के साथ ही मंच साझा करते हुए मुरादाबाद जाते। मुरादाबाद में भी दोनों पार्टियों का एकसाथ कोई प्रोग्राम था।

हालांकि, अब साथी नेताओं के सवाल के कारण सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ने ओवैसी के साथ शुरू हो रही चुनावी यात्रा से ही खुद को अलग कर लिया है।

शुरुआत में तो असदुद्दीन ओवैसी की इस चादरपोशी को राजभर ने गंभीरता से न लेते हुए नजरअंदाज किया था, लेकिन बाद में उन्हें यह एहसास हुआ कि ओवैसी के साथ मंच साझा करने से उन्हें अपनी पार्टी और समाज के लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।

यह स्पष्ट था कि गाजी के सम्मान के चक्कर में ओवैसी ने राजभर समाज का अपमान कर दिया था। भारत के इतिहास में राजा सुहेलदेव की छवि हिंदू नायक के तौर पर है। यह सुहेल देव ही थे जिन्होंने भारत पर 17 बार आक्रमण करने वाले महमूद गजनवी के भांजे सैय्यद सालार मसूद गाजी को बहराइच की जंग में हराया था और मार दिया था।

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का सियासी महत्व ओम प्रकाश राजभर के लिए कितना अधिक है, इसका अंदाजा उनकी पार्टी के नाम से ही लगाया जा सकता है, लेकिन ओवैसी का राजा सुहेलदेव के स्मारक पर ना जाने से ओमप्रकाश राजभर पर भी सवाल उठ रहे हैं।

इससे उनका राजनीति करियर भी मटियामेट हो सकता है। यही कारण है कि जब गाजियों की मजार पर चादर चढ़ाने को लेकर कई पार्टियों के नेताओं ने उनसे सवाल जवाब करना शुरू किया, तो उन्होंने धीरे-धीरे असदुद्दीन ओवैसी के साथ मंच साझा करने वाले कार्यक्रम से दूरी बनानी शुरू कर दी।

अब उन्हें यह समझ आ गया होगा कि मीम-भीम का एक साथ आना मुश्किल है। दोनों की रजनीति ही अपने अपने समाज की तुष्टिकरण पर टिकी है। अगर एक ने भी कुछ अलग करने की कोशिश की तो राजनीति में उनकी प्रासंगिकता ही समाप्त हो जाएगी। चाहे कुछ हो जाये ओवैसी गाजियों पर चादरपोशी करना नहीं छोड़ सकते हैं। ऐसे में अगर राजभर को उनके साथ रहना है तो अपने सामाज की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा, और उनके समाज का समर्थन ही उनकी प्रासंगिकता है जिसका बलिदान वह नहीं दे सकते हैं।

अगर यह कहा जाये कि ओवैसी की धार्मिक कट्टरता के कारण राजभर का दस पार्टियों वाला मीम-भीम गठबंधन टूट जाएगा तो यह गलत नहीं होगा।

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