राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमों शरद पवार ने शनिवार को संसद के मॉनसून सत्र से दो दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दोनों नेताओं के बीच करीब 50 मिनट तक बातचीत चली है। पवार ने एक ट्वीट में कहा, ‘देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। राष्ट्र हित से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की। नए सहकारिता मंत्रालय और सहकारी बैंकों के मुद्दे पर पीएम से वार्तालाप हुई है।’
Through a letter, I have drawn the kind attention of our Hon’ble PM towards issues and conflicts in the wake of certain developments in the co-operative banking sector. Although the objects and reasons for amending the Act can be lauded, pic.twitter.com/DCVpJs1zAi
— Sharad Pawar (@PawarSpeaks) July 17, 2021
आखिर क्या नया हुआ है सहकारिता विभाग में जिसको लेकर शरद पवार को लोक कल्याण मार्ग तक आना पड़ा और ऐसी क्या चर्चा हुई जिसने प्रधानमंत्री के 50 मिनट ले लिए। दरअसल, मोदी सरकार ने कानूनी और राजनीतिक (विधायी) तौर पर सहकारिता विभाग के अंतर्गत दशकों से चल रहे भ्रष्टाचार का अंत करने की ठान ली है।
आरबीआई के माध्यम से भारत सरकार ने सितंबर 2020 में संसद द्वारा बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट में परिवर्तन करके सहकारी बैंकों को RBI की प्रत्यक्ष निगरानी में ला दिया है। संशोधित कानून RBI को संबंधित राज्य सरकार के साथ परामर्श के बाद सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल को खत्म करने की शक्ति देता है।
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अर्थात आरबीआई अब सहकारी बैंकों पर पूर्ण रूप से नियंत्रण रखेगा और इससे सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल का महत्व खत्म हो जाएगा। गौर करने वाली बात यह है कि महाराष्ट्र के सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल में ज्यादातर एनसीपी के नेता विराजमान हैं। इसमें शरद पवार से लेकर अजित पवार तक शामिल हैं।
आपको बता दें कि भारत की 1,500 से अधिक शहरी सहकारी बैंकों में से लगभग एक तिहाई महाराष्ट्र में ही हैं। राज्य में 497 शहरी सहकारी बैंक और 31 जिला केंद्रीय सहकारी बैंक हैं, जिनकी कुल जमा राशि 2.93 लाख करोड़ रुपये है।
ऐसे में इतनी बड़ा वित्तीय ज़िम्मेदारी पर एनसीपी जैसी पार्टी का एकाधिकार होना कतई सही नहीं है। शरद पवार स्वयं 2,5000 करोड़ के सहकारी बैंक घोटाले में शामिल हैं तो अन्य नेता भ्रष्टाचार में कितना लिप्त होंगे यह सोच से परे है।
खैर, बात केवल सहकारी बैंकों तक सीमित नहीं रही, महाराष्ट्र में 2 लाख से ऊपर सहकारिता समितियां हैं और 50.5 मिलियन सदस्य इन समितियां से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा चीनी सहकारी कारखाने, दूध सहकारी समितियां, बिजली करघे, शहरी और ग्रामीण गैर-कृषि ऋण समितियाँ हैं।
बताया जाता है कि महाराष्ट्र में करीब 150 विधायक इस सेक्टर पर अपना नियंत्रण जमाए बैठे हुए हैं। मुख्य तौर पर सहकारिता सीमितियों पर एनसीपी और कांग्रेस नेताओं का दबदबा है।
कई सहकारिता समितियां में से एक जो महत्वपूर्ण है, वह है– किसान सहकारिता सोसाइटी। महाराष्ट्र में कुल 22,443 किसान सहकारिता सोसाइटी हैं और इन सभी पर कांग्रेस और एनसीपी का बोलबाला है।
यह सहकारी सोसाइटी दोनों पार्टियों के खजाने को भरने के काम आते हैं। द हिन्दू बिज़नेस लाइन की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ये सहकारिता सोसाइटी दोनों पार्टियों के लिए जीवन धारा हैं। यानि अगर यह सहकारिता सोसाइटी नहीं रहती हैं तो इन पार्टियों की राज्य से राजनीति खत्म होने के कगार पर आ सकती है।
दो दशक पहले महाराष्ट्र सरकार की चीनी सहकारी समितियों ने बुरा प्रदर्शन किया था। इसके बाद साल 1999-2014 तक एनसीपी और कांग्रेस ने राज्य में अपना राज चलाया।
इस दौरान उन्होने निजी चीनी मिल को बढ़ाने की कवायद शुरू कर दी थी, फिर धीरे–धीरे प्राइवेट चीनी मिलों ने राज्य के सरकारी चीनी मिलों को खरीद लिया। इसको अगर और सीधे-सीधे कहें तो जो सहकारी चीनी मिलें महाराष्ट्र सरकार के अंतर्गत बुरा प्रदर्शन करती थी, उसे एनसीपी–कांग्रेस ने निजी चीनी मिलों को बेच दिया था।
इसको लेकर एक गन्ना किसान ने कहा, “यह आश्चर्य की बात है कि जो सहकारी चीनी मिलें खराब प्रदर्शन कर रही थीं, उन्होंने अचानक राजनेताओं द्वारा खरीदे जाने के बाद शानदार प्रदर्शन करना शुरू कर दिया।’’ शरद पवार, जिन्होंने 50 से अधिक वर्षों तक राज्य के सहकारी क्षेत्र का नेतृत्व किया, उन्होंने एक स्थानीय मीडिया को एक साक्षात्कार में कहा कि उनके कई नेता अपने सहकारी संस्थानों की जांच के डर से सत्ताधारी पार्टी में शामिल हो गए हैं।
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ऐसे में यह कोई रॉकेट साइन्स नहीं रहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमित शाह को सहकारी मंत्रालय का दायित्व क्यों सौपा है! सहकारिता मंत्रालय से अमित शाह का नाम जुड़ते ही भ्रष्टाचारियों के पसीने छूटने लगे हैं।
हाल ही में शरद पवार ने इस मंत्रालय पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि केंद्र को राज्य द्वारा तैयार किए गए कानून में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। शरद पवार के साथ ही कांग्रेस और लेफ्ट के नेताओं ने भी अमित शाह के सहकारिता मंत्रालय के खिलाफ आवाज़ उठाई है।
केंद्र सरकार सहकारी बैंकों में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए व्यवस्थित ढंग से तैयारी कर रही थी। इसलिए सरकार मंत्रालय बनाने से पहले ही आरबीआई के माध्यम से नया कानून लेकर आई। आरबीआई के इस नए कानून के विरोध में एनसीपी नेताओं ने एक टास्क फोर्स तैयार किया है।
जिससे वो आरबीआई के नए कानून के खिलाफ़ लड़ेंगे। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलग से सहकारिता मंत्रालय का गठन किया और उसकी कमान गृह मंत्री अमित शाह को थमा दी। केंद्र सरकार द्वारा चली गई इस चाल ने एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को पस्त कर दिया है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि अब सहकारी समितियां में चल रही दशको से ‘घपलेबाजी’ पर पूर्ण विराम लगेगा।
सहकारी समितियां में चल रही दशको से ‘घपलेबाजी’ पर पूर्ण विराम लगते ही एनसीपी के राजनीतिक सफर पर भी विराम लगने के पूरे आसार है, क्योंकि एनसीपी अगर इंजन है तो सहकारी समितियां उसमें डीजल हैं।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि एनसीपी पार्टी का अस्तित्व सहकारिता मंत्रालय पर टीका हुआ है। इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि एनसीपी सुप्रीमों शरद पवार ने अपना राजनीतिक करियर बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की।