गुलशन कुमार की हत्या के मामले में नदीम सैफी के खिलाफ दोबारा जांच बैठाई जानी चाहिए

क्यों न नदीम सैफी के विरुद्ध पुनः मुकदमा शुरू किया जाए?

नदीम सैफी

अब जब गुलशन कुमार के प्रमुख हत्यारे उम्रकैद की सज़ा काटने को तैयार हैं, तो क्यों न नदीम सैफी के विरुद्ध पुनः मुकदमा शुरू किया जाए?

12 अगस्त 1997, स्थान –मुंबई के अंधेरी में स्थित जीतेश्वर महादेव मंदिर हर दिन की भांति टी सीरीज़ के संस्थापक एवं प्रसिद्ध फिल्म निर्माता गुलशन कुमार दुआ अपने इष्टदेव की पूजा करने जाते हैं। वे अपने नित्यकर्म से मुक्त होकर अपने गाड़ी की ओर बढ़ ही रहे होते हैं कि उन पर एक व्यक्ति रिवॉल्वर तानते हुए कहता है, “बहुत पूजा कर ली। अब ऊपर जा कर करना।”

इसके साथ ही गुलशन कुमार की गोलियां मारकर हत्या कर दी जाती है, और बॉलीवुड फिल्म उद्योग में सनातन संस्कृति की ज्योति को प्रज्वलित करने का प्रयास करने वाला व्यक्ति भी सदा के लिए सो जाता है। आज, 24 वर्ष बाद जाकर गुलशन कुमार को कुछ हद तक न्याय मिला है। उनके प्रमुख हत्यारों में शामिल अब्दुल राउफ दाऊद और अब्दुल राशीद के आजीवन कारावास के दंड को बॉम्बे हाईकोर्ट ने यथावत रखा है। अब्दुल राशिद कथित तौर पर उन तीन हत्यारों में शामिल था, जिन्होंने गुलशन कुमार पर 16 गोलियां चलाई थी। अब समय आ गया है कि, नदीम सैफी के विरुद्ध भी मुकदमा पुनः शुरू किया जाए, और गुलशन कुमार के साथ जो अन्याय हुआ, उसे भी निष्कर्ष तक पहुंचाया जाए।

लेकिन ये नदीम सैफी कौन है? उसने गुलशन कुमार के साथ क्या अन्याय किया? गुलशन कुमार ने ऐसा क्या किया जिसके पीछे उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया? इसके लिए हमें दरियागंज की ओर जाना होगा, जहां से ये सारी कथा शुरू हुई थी। तब चंद्रभान कुमार दुआ की दरियागंज में फलों के जूस की दुकान हुआ करती थी, जो काफी सफल थी। इसी दुकान पर गुलशन भी अपने पिता का हाथ बँटाते थे। लेकिन इस परिवार के भाग्य तब बदले, जब उन्होंने रिकॉर्ड और कैसेट की एक दुकान शुरू की। यहीं से नींव पड़ी Super Cassettes Industries Limited, जो आज TSeries के नाम से विश्व प्रसिद्ध है।

टी सीरीज़ के जरिए गुलशन कुमार एक ही तीर से दो निशाने साध रहे थे, अपने कैसेट के उद्योग को बढ़ाना, और अपने देवी-देवताओं के प्रति अपनी आस्था का प्रचार करना। गुलशन कुमार भगवान शिव और माता पार्वती के साथ माता दुर्गा के अनन्य भक्त थे, जिसका टी सीरीज़ के जरिए उन्होंने खूब प्रचार-प्रसार भी किया। आज जो भी आप कर्णप्रिय भजन सुनते हैं, उनमें से लगभग आधे तो टी सीरीज़ की देन है।

तो इसमें नदीम सैफी कहाँ से आया? दरअसल, जब टी सीरीज़ के कैसेट का व्यापार तेज़ी से फलने-फूलने लगा, तो गुलशन कुमार ने भारतीय फिल्म उद्योग में भी निवेश करने का निर्णय लिया। ये वो समय था, जब भारतीय फिल्म उद्योग अपने पतन की ओर अग्रसर था, ठीक वैसे ही जैसे आज है। लोग ऊटपटाँग, अश्लील फिल्मों को बढ़ावा दे रहे थे, और गानों में कोई सुर, कोई ताल ही नहीं रह गए थे। ऐसे में जब गुलशन कुमार ने आशिकी नामक फिल्म को प्रोड्यूस किया, तो उन्होंने नदीम अख्तर सैफी और श्रवण राठौर जैसे संगीतज्ञों को भी अवसर दिया गया। इस फिल्म ने न केवल सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़े, बल्कि टी सीरीज़ और नदीम श्रवण दोनों को सफलता के शिखर पर पहुंचा दिया।

तो फिर ऐसा क्या हुआ जिसके कारण गुलशन कुमार और नदीम सैफी में दरार बढ़ी, और गुलशन की हत्या का आरोप नदीम पर लगा? कहते हैं कि प्रॉपर्टी या फिर किसी प्रोजेक्ट को लेकर दोनों में विवाद हुआ था, जिसके कारण नदीम ने गुलशन के प्रतिद्वंदी और टिप्स कंपनी के प्रबंधक रमेश कुमार तौरानी के साथ मिलकर दाऊद इब्राहिम से संपर्क साधा और गुलशन कुमार पर उगाही के लिए दबाव बनाने को कहा।

ये वो समय था, जब बॉलीवुड में अंडरवर्ल्ड का बोलबाला था और बॉलीवुड में जमकर इस्लाम का प्रचार किया जाता था। तब केवल गुलशन कुमार अकेले ऐसे व्यक्ति थे जिनके नेतृत्व में इस पूरे गिरोह को मुंहतोड़ जवाब दिया जा रहा था। वे अकेले ही थे जिन्होंने दाऊद के गुर्गों की लाख धमकियों के बावजूद एक भी रुपया उगाही में देने से मना किया था। लेकिन गुलशन कुमार की हत्या के बाद नदीम UK निकल गया। उसने बतौर यूके के नागरिक वहाँ शरण मांगी, और इसमें उसे काफी सहूलियतें भी मिली। 2001 में उन पर लगे सभी मुकदमे खारिज हो गए, और वे फिर से संगीत के क्षेत्र में वापिस आ गए।

हालांकि, उनका सफर ज्यादा लंबा नहीं चला और 2005 में नदीम और श्रवण सदा के लिए अलग हो गए। 2021 में कोरोना के कारण श्रवण राठौर इस संसार से चल बसे। फिलहाल के लिए नदीम सैफी UAE में अपना इत्र एवं बैग का व्यवसाय चलाते हैं। अब प्रश्न ये उठता है कि, यदि नदीम वास्तव में निर्दोष थे, तो उन्हे यूके भागने की क्या जरूरत थी?

यूके की संसद के सामने रहम की भीख मांगने की क्या जरूरत थी? यदि वे निर्दोष थे, तो उन्हें भारत में रहकर अपनी लड़ाई लड़नी चाहिए थी, लेकिन जिस प्रकार से वे भागे, और जिस प्रकार से इन्हें सहूलियतें मिली, उससे इतना तो स्पष्ट है कि कहीं न कहीं दाल में कुछ तो काला अवश्य था। इसके अलावा जब गुलशन कुमार की हत्या हुई, तब देश में इन्द्र कुमार गुजराल की खिचड़ी सरकार थी, जिसकी प्राथमिकता देश को चलाना कम और रॉ की ताकत को कम करना अधिक था लेकिन अब देश में नरेंद्र मोदी की सशक्त सरकार है, और एस जयशंकर जैसे कुशल कूटनीतिज्ञ भी हैं, जो बिना लाग लपेट के चीन जैसे देश को भी नाकों कहने चबवाने पर विवश करते हैं।

ऐसे में अब जब गुलशन कुमार के प्रमुख हत्यारे आजीवन कारावास की सज़ा झेलने को तैयार हैं, तो समय आ चुका है कि नदीम सैफी के विरुद्ध पुनः मुकदमा शुरू किया जाए।

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