वो वृद्ध है, वो विद्यार्थी है, वो गर्भवती है, वो कवि है- नक्सलियों की तारीफ वामपंथी ऐसे करते हैं जैसे वो कोई महात्मा हो

अब एक नक्सल को “बूढ़ा” “बेचारा” बना दिया वामपंथियों ने!

स्टेन स्वामी

वो वृद्ध है, वो विद्यार्थी है, वो गर्भवती है, वो यह है, वो वह है। ऐसे संवाद और दलील आपने अक्सर कुछ लोगों के लिए जरूरत से ज्यादा ही सुने होंगे। यह दलीलें अधिकतर आतंकियों और नक्सलियों को बचाने के लिए भारत के वामपंथियों और बुद्धिजीवियों ने जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया है और आज भी कर रहे हैं। एक बार फिर यही दलील मृत नक्सली स्टेन स्वामी के लिए इस्तेमाल की जा रही है।

बता दें कि स्टेन स्वामी पेशे से ‘आदिवासी’ एक्टिविस्ट थे और इनपर भीमा कोरेगांव हिंसा को भड़काने का आरोप था। यही नहीं इनपर प्रधानमंत्री की कथित हत्या की योजना बनाने वालों का साथ देने का भी आरोप था। स्टेन स्वामी पर UAPA के अंतर्गत कार्रवाई की गई थी, और ये गौतम नवलखा सहित फिलहाल कुछ दिन से जमानत पर बाहर थे।

अब स्टेन स्वामी निर्दोष थे या नहीं, ये तय करना तो न्यायालय का काम है, लेकिन वामपंथी स्टेन स्वामी का महिमामंडन करने का एक मौका नहीं छोड़ रहे और फेक न्यूज फैला रहे हैं। उदाहरण के लिए इन स्क्रीनशॉट्स पर एक नजर डालिए।

यहाँ पर एटा के वृद्ध कैदी 90 साल के बाबूराम को जानबूझकर हुए स्टेन स्वामी के तौर पर चित्रित करने का प्रयास किया गया, जिससे यह दिखाया जा सके कि उन पर अंत समय में कितने अत्याचार हुए थे। ये वही वामपंथी हैं, जो CAA विरोधी दंगों में बर्बरता से मारे गए दिलबर सिंह नेगी की स्थिति पर उफ्फ़ तक नहीं करते, पर उन्हीं दंगों को भड़काने में कथित तौर पर अहम भूमिका निभाने वाली सफ़ूरा जरगर को एक खरोंच भी नहीं आई।

अब इसी प्रकार से इस विषय राजदीप सरदेसाई के ही ट्वीट को ही देख लीजिए। अन्य वामपंथियों की तरह जनाब ने भी भारतीय प्रशासन को स्टेन स्वामी की मौत के लिए दोषी ठहराते हुए ट्वीट किया है,

“आज स्टेन स्वामी जी की मृत्यु से भारतीय प्रशासन और भारत के क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के हाथ खून से सन चुके हैं”।

लेकिन राजदीप अकेले नहीं है। राणा अयूब से लेकर महुआ मोइत्रा जैसे न जाने कितने वामपंथी हैं, जो स्टेन स्वामी की मृत्यु पर उन्हें एक बेहद निर्दोष पादरी के तौर पर चित्रित करने का प्रयास कर रहे हैं, जिनकी वर्तमान सरकार ने जेल में ‘निर्मम हत्या’ की है। फेक न्यूज गैंग ने ऐसा एक प्रयास भी किया था [स्क्रीनशॉट्स ऊपर हैं], परंतु जागरूक सोशल मीडिया यूजर्स ने तुरंत इनकी योजना पर पानी फेर दिया था।

हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, और न ही ये अंतिम बार होगा। जब ग्रेटा थनबर्ग द्वारा भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि बदनाम करने की टूलकिट लीक हुई, तो उसे तैयार करने में एक अहम भूमिका निभाने वाली दिशा रवि को हिरासत में लिया गया। तुरंत ही वामपंथी गैंग टूट पड़ा और उसे बचाने के लिए तरह तरह की दलीलें पेश करने लगा। उनके लिए वह पशु प्रेमी है, एक छोटी सी बच्ची है, घर की इकलौती कमाने वाली है, और ना जाने क्या क्या। इस पर TFI पोस्ट ने एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट भी साझा की था।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि एक बार फिर वामपंथी स्टेन स्वामी की ध्वस्त छवि को संजोने के लिए तरह तरह की दलीलें दे रही है, कि वे आदिवासियों के रक्षक थे, वे एक निरीह पादरी थे। वास्तव में अगर आप गौर करें तो वामपंथियों में आप एक निश्चित पैटर्न देखेंगे- ये सदैव उपलब्धियों और  खूबियों के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बातें करते हैं परंतु न अपराध की चर्चा करते हैं और न ही आरोपों की। जब बात आती है इनकी गलतियों के बारे में बात करने की, तो इन्हीं वामपंथियों को या तो सांप सूंघ जाता है, या उसे उचित ठहराने के लिए ये किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं। उदाहरण के लिए जिस प्रकार से इन्होंने वरावर राव नामक कवि को जेल से छुड़वाने के लिए दलीलें दी थीं, विशेषकर उसके ‘वृद्धावस्था’ के लिए, उससे स्पष्ट हो जाता है कि ये अपराधियों को बचाने के लिए किस हद तक जा सकते हैं। वरावर राव को ऐसे चित्रित किया जा रहा था, मानों वह कोई मेजिनी जैसे क्रांतिकारी हो, न कि एक आरोपी।

Exit mobile version