जब तक फडणवीस महाराष्ट्र में हैं, तब तक भाजपा-शिवसेना का गठबंधन असंभव है

भाजपा-शिवसेना गठबंधन मतलब BJP के लिए घाटे का सौदा

भाजपा शिवसेना गठबंधन

भाजपा – शिवसेना गठबंधन की अटकले तेज

महाराष्ट्र की राजनीति में फिर से सियासी उलटफेर हो सकता है। कल तक भाजपा पर लगातार हमलावर रही शिवसेना इन दिनों भाजपा के प्रति नर्म रुख अपनाए है, जिसके बाद यह खबर चलने लगी कि शिवसेना और भाजपा दुबारा हाथ मिला (गठबंधन) सकते हैं। इस मुद्दे पर हाल में एक पत्रकार वार्ता में प्रश्न पूछे जाने पर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने कहा “बीजेपी शिवसेना दुश्मन नहीं हैं, यह 100 प्रतिशत सच है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि दोनों साथ आएंगे और सरकार बनाएंगे।” फडणवीस ने कहा कि राजनीति में कोई किन्तु परंतु नहीं होता और फैसले परिस्थितियों के अनुसार लिए जाते हैं।

फडणवीस के बयान के बाद यह बात और दृढ़ हो गई है कि यदि फडणवीस केंद्र में जाते हैं और परिस्थितियां अनुकूल होती हैं केवल तब ही भाजपा और शिवसेना पुनः साथ होंगे। लेकिन क्या यह भाजपा के लिए लाभकारी होगा?

आखिर शिवसेना – बीजेपी से दुबारा हाथ क्यों मिलाना चाहेगी?

कल तक जो शिवसेना अपने आप को महाराष्ट्र का सर्वेसर्वा बता रही थी वह आज गठबंधन के लिए तैयार कैसे हुई? ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शिवसेना इस समय डरी हुई है। शिवसेना का कांग्रेस और NCP के साथ गठबंधन करना उसके जनाधार को पसंद नहीं आया। शिवसेना के शासन में मुस्लिम तुष्टिकरण हो रहा है, जिससे शिवसैनिक स्वयं नाराज हैं।  यहाँ तक कि, शिवसेना फ्लाईओवर का नाम भी निजामुद्दीन औलिया रखने की बात करती है।

इन सब बातों से आम शिवसैनिकों में नाराजगी है और वह राज्य की दूसरी बड़ी हिन्दू पार्टी, अर्थात भाजपा का दामन थामना (गठबंधन) चाहते हैं। ऐसे में शिवसेना को आभास हो चुका है कि इससे पहले की उसका वोटबैंक पूरी तरह भाजपा में विलय हो जाए, उसे वापसी करनी होगी।

इसके अतिरिक्त एंटीलिया विस्फोटक केस में शिवसेना का नेता पकड़ा गया है, ऐसे में यह डर भी हो सकता है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों की पकड़ और मजबूत न हो जाए। इन्हीं कारणों से शिवसेना पुनः भाजपा के साथ गठबंधन चाहती है। इसके लिए बाकायदा फॉर्मूले पर विचार हो रहा है।

गठबंधन से भाजपा को लाभ होगा या हानि?

खबरों की माने तो नए फार्मूले के तहत देवेंद्र फडणवीस को केंद्रीय मंत्रिमंडल में कोई महत्वपूर्ण स्थान मिल सकता है। साथ ही राज्य में उद्धव ठाकरे ही मुख्यमंत्री रहेंगे जबकि दो अन्य उपमुख्यमंत्री भाजपा से होंगे। अगर गठबंधन हुआ तो यह भाजपा के लिए कोई अच्छा समझौता नहीं होगा। भाजपा ने हाल के उपचुनाव में अकेले अपने दम पर महाविकास अघाड़ी को पराजित किया है। राज्य में उसका जनाधार तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में भाजपा शिवसेना गठबंधन भाजपा के विस्तार को रोक देगा।

भाजपा के साथ शिवसेना का गठबंधन अधिक दिनों चलेगा भी नहीं, क्योंकि अब दोनों दल वैसा सहयोग नहीं कर सकेंगे जैसे आज से बीस वर्ष पूर्व करते थे। तब भाजपा क्षेत्रीय स्तर पर छोटी पार्टी और शिवसेना राज्य में बड़े भाई की भूमिका में थी। आज न तो बाला साहेब का करिश्मा है न भाजपा छोटी पार्टी है। भाजपा शिवसेना का गठबंधन हो भी जाता है है तो भी उसके विस्तार को शिवसेना पचा नहीं पाएगी। ऐसे में साथ रहकर भी टकराव तय है। इससे बेहतर यही होगा कि भाजपा अगले चुनाव का इंतजार करे और पूर्ण बहुमत से सरकार बनाए।

देवेंद्र फडणवीस अगर महाराष्ट्र की राजनीति से हटाए जाते हैं तो भाजपा को सबसे बड़ा नुकसान होगा। उनके जैसा तेज तर्रार नेता बतौर नेता प्रतिपक्ष सरकार के लिए मुसीबत बना रहता है। फडणवीस एक बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, उनकी लोकप्रियता भी अच्छी है, ऐसे में वह महाराष्ट्र वैसी धाक जमा सकते हैं जैसी उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की अथवा गुजरात में नरेंद्र मोदी की हुआ करती थी। महाराष्ट्र से 48 लोकसभा सीट आती है। भाजपा अगर सब्र करे तो महाराष्ट्र पर लम्बे समय के लिए भाजपा का स्ट्रांगहोल्ड हो जाएगा तथा भाजपा को एक और बड़ा जननेता मिल जाएगा।

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