कितने दुर्भाग्य की बात है! जिस महाराष्ट्र में कभी सनातन संस्कृति पर एक खरोंच आने पर तलवारें निकल आती थी, जिस महाराष्ट्र में अमरनाथ यात्रा के अनुयाइयों पर आतंकी हमलों की धमकियों के जवाब में हज यात्रा पर रोक लगाने की बाल ठाकरे जैसे नेता चेतावनी देते थे, आज उसी शिवसेना के नेतृत्व वाले महाराष्ट्र में एक बर्बर आक्रांता टीपू सुल्तान के नाम पर एक उद्यान स्थापित करने का प्रस्ताव रखा जा रहा है। मराठा भूमि पर टीपू सुल्तान की स्मृति में एक उद्यान स्थापित करने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं।
हाल ही में मुंबई में एक उद्यान का नाम टीपू सुल्तान के नाम पर रखे जाने पर काफी बवाल मच रहा है, जिसका भाजपा के नगरपालिका के सदस्यों ने पुरजोर विरोध किया है। गोवंडी में इस उद्यान का नाम टीपू सुल्तान के नाम पर रखने का प्रस्ताव स्थानीय नगरपालिका सदस्य एवं समाजवादी पार्टी की नेता रुखसाना सिद्दीकी ने किया, जिसका मुंबई की वर्तमान महापौर / मेयर किशोरी पेड़नेकर ने कथित तौर पर समर्थन भी किया।
भाजपा नेता भालचंद्र शिरसत ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा, “हम उस आक्रांता के नाम पर कैसे एक उद्यान को रख सकते हैं, जिसने हजारों हिंदुओं को फांसी पर चढ़ा दिया, लाखों माताओं और बहनों की इज्ज़त लूट ली और न जाने कितने अत्याचार किये। एक बार को मौलाना आजाद या हवलदार अब्दुल हामिद के नाम पर उद्यान भी हमें स्वीकार है पर टीपू सुल्तान के नाम पर, बिल्कुल नहीं!”
लेकिन टीपू सुल्तान के नाम पर मराठा भूमि में एक उद्यान का प्रस्ताव भी क्यों अकल्पनीय है? आखिर टीपू सुल्तान की मराठा समुदाय से ऐसी भी क्या शत्रुता थी? दरअसल, टीपू सुल्तान वैसे क्रांतिकारी नहीं थे, जैसा वामपंथी बताते हैं। टीपू औरंगज़ेब के समान एक धर्मांध आक्रांता था, जो हिंदुओं, और अन्य गैर मुसलमानों पर समान रूप से अत्याचार था। उसके कारण आज भी कोड़गु वंश के कुछ हिन्दू दीपावली का उत्सव नहीं मनाते, क्योंकि उसी दिन लाखों की संख्या में टीपू ने कई हिंदुओं का नरसंहार किया था।
टीपू सुल्तान को हिंदुओं से विशेष घृणा थी पर उनमें भी उसे सबसे अधिक घृणा मराठा समुदाय से थी। ऐसा इसलिए क्योंकि वह कभी भी उन पर किसी भी प्रकार से विजय नहीं पा सका था। वामपंथी इतिहासकार जितने चाव से बताते हैं कि ‘कैसे टीपू अंग्रेज़ों से बहादुरी से लड़े थे’, उतने ही सफाई से वे ये भी छुपाते हैं कि कैसे टीपू ने अनेकों बार मराठों पर आक्रमण किया था और हर बार कायरों की तरह मुंह छुपाकर भाग आता था।
जब मराठा साम्राज्य पेशवा माधव राव के हाथ में था, तब अपने पिता हैदर अली के सहारे और जब मराठा साम्राज्य पेशवा माधवराव के विश्वासपात्र सेनापति, श्रीमंत महड़जी शिंदे के हाथ में था, तब स्वयं टीपू सुल्तान ने अनेकों बार मराठाओं पर आक्रमण किया था। टीपू की दृष्टि में मराठा इस संसारों के सबसे निकृष्ट काफिरों में से एक थे, जिनका विनाश अवश्यंभावी था, लेकिन अंत में टीपू सुल्तान को इतनी बुरी पराजय मिली कि उन्हें गजेन्द्रगढ़ में समझौते पर विवश होना पड़ा, जहां उन्हें मराठों को युद्ध में दी गई क्षतिपूर्ति के लिए 48 लाख रुपये के साथ प्रतिवर्ष 12 लाख रुपये भी चुकाने पड़ते थे।
अब सोचिए, जिनके पूर्वजों ने इस कायर आक्रांता को अनेकों बार युद्धभूमि में धूल चाटने पर विवश किया था, वो उसी कायर टीपू सुल्तान के नाम पर मुंबई में उद्यान निर्मित करने की बात करें, तो उन मराठाओं को कैसा लगेगा? क्या उनकी आत्मा कलंकित नहीं होगी? उनके वर्षों का बलिदान व्यर्थ नहीं हो जाएगा? अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के चक्कर में उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने नीचता की पराकाष्ठा पार कर दी है, और साथ ही साथ अपने पिता की विरासत को भी कलंकित किया है। कभी जिस महाराष्ट्र में टीपू सुल्तान का गुणगान करना भी पाप माना जाता था, आज वहाँ उसी के नाम के उद्यान बनने को हैं।