इस समय यदि कोई सबसे बड़े धर्मसंकट में है, तो वे हैं कपिल सिब्बल। पेगासस प्रोजेक्ट पर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से निष्पक्ष जांच और श्वेत पत्र की मांग की है, लेकिन यही कपिल सिब्बल सरकार पर डेटा सुरक्षा के बजाए उसे इकट्ठा करने का आरोप भी लगा रहे हैं। शायद अब स्वयं कपिल सिब्बल नहीं समझ पा रहे हैं कि वे पार्टी की सुने या अपने प्रोफेशन की।
इकॉनमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार कपिल सिब्बल ने पेगासस प्रोजेक्ट विषय पर सुप्रीम कोर्ट की अध्यक्षता में निष्पक्ष जांच की मांग की है, जो संसद की देखरेख में होगी। इसके साथ ही साथ संसद में कपिल सिब्बल ने यह भी मांग की कि सरकार संसद में श्वेत पत्र प्रस्तुत करे, जिससे यह सिद्ध हो कि पेगासस मामले में वह किस हद तक सक्रिय रहा है।
यहां पर कपिल सिब्बल ने निस्संदेह कांग्रेस के प्रति अपनी वफादारी दिखाने का प्रयास किया है, परंतु एक अन्य बयान में उन्होंने अधिकतर श्रोताओं को सिर खुजाने पर विवश कर दिया है। पेगासस मामले पर ही एक ओर जहां उन्होंने सरकार पर तानाशाही होने का आरोप लगाया, तो वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ करने का आरोप लगाते हुए कहते हैं,
“सरकार पेगासस मामले में पूरी सच्चाई नहीं बता रही है। उन्हें डेटा की सुरक्षा करनी चाहिए, परंतु वे डेटा कलेक्शन पर जोर दे रहे हैं। ये राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।” इसे सुनकर हम क्या, कोई भी कहेगा, ‘अरे भाई, आखिर कहना क्या चाहते हो?’
विरोधाभास कपिल सिब्बल के लिए कोई नई बात नहीं है। जब वॉट्सएप अपनी विरोधाभासी यूजर नीति भारत में लागू करना चाहता था, तो उसके निजता के अधिकार के लिए यही कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट तक की खाक छान आए थे। यही कपिल सिब्बल 5 स्टार एक्टिविस्ट एवं अभिनेत्री जूही चावला के उस याचिका के अप्रत्यक्ष विरोध में सामने आए, जब वे 5 जी के ट्रायल के विरुद्ध दिल्ली हाईकोर्ट में मुकदमा दायर करने आए थे।
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अब यही व्यक्ति पेगासस सॉफ्टवेयर पर काँग्रेस के सफेद झूठों को बढ़ावा दे रहे हैं, ये जानते हुए भी कि उनकी खुद की नीतियाँ इसकी धुर विरोधी हैं। कांग्रेस के प्रति इसी वफादारी ने कपिल सिब्बल को कई बार हंसी का पात्र बनाया है। हम आज भी उनके विश्व प्रसिद्ध ‘जीरो लॉस थ्योरी’ को कैसे भूल सकते हैं, जिसके जरिए उन्होंने 2 जी घोटाले के नुकसान को छुपाने का असफल प्रयास किया था।
आज भी इसी वफादारी के चक्कर में वे फिर से हंसी का पात्र बनते दिखाई दे रहे हैं, जहां ये स्पष्ट सिद्ध हो रहा है कि उन्हें अपने पार्टी का सफेद झूठ मजबूरी में दोहराना पड़ रहा है। आगे चलकर अगर मजबूरी का नाम महात्मा गांधी जैसी कहावत का नाम बदलकर मजबूरी का नाम कपिल सिब्बल हो जाए, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।