‘ममता’ इस शब्द का अर्थ सर्वोच्च का आशीर्वाद, मातृत्व प्यार और स्नेह की भावना होता है, लेकिन इस नाम को धारण कर स्वांग रचने वालीं, सदैव अपने नाम के उलट कार्य करने में अग्रसर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर अपने अमानवीय होने का परिचय दे दिया है। मुद्दा है, बंगाल में कोरोना से असमय मृत्यु को प्राप्त हुए उन अभिभावकों के बच्चों की सूची का, जिनके सिर से इस कोरोना महामारी में अपने माँ—बाप का साया उठ चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्य में, 1 अप्रैल 2020 से केवल 27 बच्चों ने कोविड-19 के कारण माता-पिता दोनों को खोया हो। सुप्रीम कोर्ट ने सही आंकड़ों के लिए राज्य के बाल कल्याण विभाग के सचिव से जवाब मांगा है।
यह आंकड़ा राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा दायर एक हलफनामे में शीर्ष अदालत द्वारा उन बच्चों की पहचान और पुनर्वास के लिए सुनवाई के दौरान सामने आया, जिन्होंने कोरोना महामारी के दौरान अपने माता-पिता में से किसी एक या दोनों को खो दिया था। एनसीपीसीआर ने बताया कि 1 अप्रैल, 2020 से 23 जुलाई, 2021 तक, एनसीपीसीआर के विशेष पोर्टल ‘बालस्वराज’ ने 6,855 अनाथों, माता-पिता में से किसी एक खो देने वाले 68,218 बच्चों के बारे में विवरण प्राप्त किया था।
पश्चिम बंगाल में ने जो आंकड़ा दिखाया वो था 27 अनाथ, 1,020 बच्चे जिन्होंने माता-पिता में से एक को खो दिया। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज ने क्रमशः महाराष्ट्र (412), मध्य प्रदेश (885), गुजरात (947) और राजस्थान (781) की संख्या का हवाला देते हुए पश्चिम बंगाल द्वारा प्रस्तुत आंकड़े को अवास्तविक करार दिया।
इस वास्तविक कथन को कोई नहीं झुठला सकता है कि 10 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले प्रदेश में जहां अब तक 18,085 लोगों की मृत्यु कोरोना के चलते हुई है, वहाँ मात्र 27 बच्चे ही अनाथ हुए। इस समय उन सभी बच्चों को आवश्यक देखभाल और सुरक्षा की जरूरत है, इसके लिए उन्हें केंद्र सरकार सूचीबद्ध करने के लिए कई बार राज्य सरकारों को कह चुकी है।
अब तक ममता के कान पर जूं नहीं रेंग रही है। देश के निवर्तमान स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने 10 जून 2021 को ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली बंगाल सरकार पर COVID-19 महामारी के दौरान अनाथ बच्चों को सुरक्षा और बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में विफल रहने के लिए निशाना साधा था। हर्षवर्धन ने दावा किया था कि ‘मुख्यमंत्री ने कोरोना वायरस से अनाथ बच्चों का विवरण एकत्र करने और उन्हें राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के पोर्टल पर अपलोड करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी की।’ इन सभी निर्देशों को ताक पर रखते हुए ममता ने अपना असंवेदनशील चरित्र दर्शाते हुए उन सभी असहाय मासूम नौनिहालों के जीवन के विकास में एक बाधक के रूप में काम किया है।
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न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा, “जो जानकारी बेंच के समक्ष प्रस्तुत की गयी है वह उन्हें विश्वसनीय नहीं लगती है। हम इस आंकड़े पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं हैं कि पश्चिम बंगाल जैसे बड़े राज्य में केवल 27 बच्चे अनाथ हुए थे। पश्चिम बंगाल की ओर से पेश अधिवक्ता सयानदीप पहाड़ी ने कहा कि यह एक सतत चल रहे सर्वे में निकलकर आए आंकड़ें हैं और NCPCR को राज्य के आंकड़ों पर संदेह करने का कोई कारण नहीं था। पीठ ने कहा, ‘अगर आप यह कहने में अडिग हैं कि इतने बड़े राज्य में 27 बच्चे अनाथ हो गए तो हम किसी बाहरी एजेंसी से जांच का आदेश दे सकते है।’ बाद में सुनवाई के दौरान, अधिवक्ता सुहान मुखर्जी ने पुनः समय मांगते हुए आग्रह किया कि वे कुछ समय और चाहते हैं और जल्द नए ओर सटीक आंकड़ों को बेंच के सामने प्रस्तुत करेंगे।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोविड-19 के कारण प्रभावित अनाथों और बच्चों के लिए उपलब्ध योजनाएं अधिक से अधिक बच्चों तक पहुंचें, शीर्ष अदालत ने देश भर के जिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि वे पुलिस, जिला बाल संरक्षण, नागरिक समाज संगठन, ग्राम पंचायत, आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं की मदद से ऐसे बच्चों को खोजने के लिए बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण करें।
इस आमनवीय बर्ताव के चलते ममता की खूब किरकरी हो रही है। अब अगली बार राज्य की ओर से आंकड़ों के आधार पर कितना झूठ और कितना सच परोसा जाएगा वो समय बताएगा। ममता बनर्जी के इस व्यवहार ने उनके संकुचित दायरे को देश के समक्ष ला दिया है। जो अपने राज्य के सही आंकड़े तक सुप्रीम कोर्ट में नहीं दे पा रही हो, वो अब देश की बागडोर संभालने आने वाले समय में भारत की प्रधानमंत्री बनने जैसे मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने में जुटी हैं।