आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्ढा में क्या राजनीतिक एजेंडा हो सकता है?

आज भी देश की आम जनता आमिर खान के एजेंडे को समझने में नाकाम रही है!

लाल सिंह चड्ढा फिल्म

PC: Bollywood Bubble Hindi

फिल्म लाल सिंह चड्ढा में आमिर खान प्रोपोगेंडा थोप सकते है

इन दिनों आमिर खान दो कारणों से सुर्खियों में है। एक तो अपने पत्नी किरण राव से अलगाव के कारण और दूसरा अपनी आगामी फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ के कारण। कोरोना वायरस के कारण स्थगित यह फिल्म कई कारणों से बहुत अहम है, और कई लोगों का मानना है कि इसके जरिए भी आमिर खान अपना कुत्सित प्रोपेगेंडा दूसरों पर थोप सकते हैं।

अब लाल सिंह चड्ढा फिल्म आखिर क्या है? इसके जरिए आमिर खान क्या कसर पूरी करना चाहते हैं? दरअसल, ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ फेम अद्वैत चंदन द्वारा निर्देशित फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ प्रसिद्ध ऑस्कर पुरस्कार विजेता ‘Forrest Gump (फॉरेस्ट गंप)’ की रीमेक है, जो स्वयं Winston Groom (विन्सटन ग्रूम) की पुस्तक पर आधारित है। Forrest Gump  ऑस्कर पुरस्कार भी जीत चुकी है। फारेस्ट गम्प में एक भोला सा नायक कैसे अमेरिकी इतिहास की कई बड़ी घटनाओं को प्रभावित करता है, दिखाया गया है। कुछ इसी तरह की फिल्म आमिर खान भी बना रहे हैं तो उससे जाहिर है वो भारत के कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं पर प्रकाश डालेंगे।

जैसे फारेस्ट गम्प का नायक अपने समय के अमेरिका के बारे में पूरी दुनिया को बताता है, ठीक वैसे ही भोलूराम जैसा लाल सिंह चड्ढा अपनी आँखों के जरिए भारत के कई दशकों, विशेषकर 80 से लेकर प्रारम्भिक 21 वीं सदी के दशकों की कहानियां बताएगा। अब आप सोच रहे होंगे ये तो अच्छी कहानी है और जनता को पसंद आएगी परन्तु दिक्कत यहाँ आमिर खान की राजनीतिक टेक्टिस से है जो अक्सर वो अपनी फिल्मों और टेलीविज़न एपिसोड के जरिये प्रोपेगेंडा के रूप में आम जनता के सामने परोसते हैं।

आमिर खान अपनी कई फिल्मों में प्रोपेगेंडा थोप चुके है

ऐसे में आमिर खान यदि फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ के जरिए भी कोई प्रोपेगेंडा फैलाते हुए दिखाई दें तो किसी को कोई हैरानी नहीं होगी। 2005 में आई ‘मंगल पाण्डेय’ से लेकर उनकी जितनी भी फिल्में रिलीज हुई हैं, उन्हें अगर आप गौर से देखें और समझें, तो सभी में एक बात समान दिखेगी – प्रोपेगेंडा।

प्रख्यात तेलुगु अभिनेता नाग चैतन्य लाल सिंह चड्ढा फिल्म के कारगिल शेड्यूल में अपना योगदान देंगे, जहां आमिर खान भारतीय सेना के एक सैनिक की भूमिका निभा रहे हैं। ऐसे में हम कह सकते हैं कि ‘फॉरेस्ट गम्प’ की तरह आमिर खान फिल्म में 80 से लेकर प्रारम्भिक 2000 तक के कुछ बड़ी घटनाओं पर प्रकाश डाल सकते हैं। ये भी हो सकता है कि लाल सिंह चड्ढा फिल्म में आपातकाल से बाबरी मस्जिद के विध्वंस, हर्षद मेहता घोटाला, मोब लिंचिंग, गुजरात दंगों तक पर चर्चा दिखाई जाए, यहाँ तक कि हिन्दू-मुस्लिम के बीच चल रहे टकराव को दिखाते हुए हिन्दुओं को विलेन दिखाया जा सकता है, ।

जैसा कि आमिर खान ने हमेशा किया है, वास्तव में आमिर खान ने राष्ट्रवादी भारतीयों को आकर्षित करने के लिए सरफरोश, लगान और मंगल पांडेय जैसी देशभक्ति फिल्में बनाईं और बड़ी चालाकी से फिल्मों के जरिए अपना एजेंडा परोसा।

लाल सिंह चड्ढा फिल्म भी आमिर की बाकी फिल्मों की तरह ना निकले

‘फ़ना’ और ‘रंग दे बसंती’ में क्रांति के नाम पर अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ावा देने में आमिर खान ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इतना ही नहीं, ‘फ़ना’ के कामयाबी के बल पर वे तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने चले थे। तब नरेंद्र मोदी बहु प्रतिष्ठित सरदार सरोवर परियोजना को लागू करवाने के लिए सब कुछ करने को तैयार थे, लेकिन सोशल मीडिया के अभाव के कारण मेधा पाटकर जैसे आंदोलनकारी झूठी अफवाहें फैलाकर स्थानीय लोगों को नर्मदा बचाओ आंदोलन के नाम पर दिग्भ्रमित करने में जुटी हुई थीं।

इसी का हिस्सा बनकर आमिर ने सोचा कि अपनी लोकप्रियता के दम पर वे नरेंद्र मोदी को झुका देंगे, लेकिन हुआ ठीक उल्टा। लोग इतना भड़क गए कि ‘फ़ना’ ही गुजरात में प्रतिबंधित हो गई, और आमिर खान को मुंह की खानी पड़ी।

इतने वर्षों बाद भी ऐसा लगता है कि आमिर खान के इस हिडेन एजेंडे को समझने में हिन्दू नाकाम रहे हैं। जिस तरह से ‘फॉरेस्ट गम्प’ में टॉम हैंक्स ने जाने अनजाने में वामपंथियों की पोल खोल दी थी, वैसे ही आमिर खान करेंगे, इसकी आशा न के बराबर है। इसके कई कारण हैं।

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लाल सिंह चड्ढा फिल्म की कास्ट और यूनिट अजेंडावादियों से भरी पड़ी है

जैसे आमिर खान ने सत्यमेव जयते सीरिज के जरिए अपने हिंदू विरोधी एजेंडा चलाया। इस सीरिज के एक भी एपिसोड में इस्लाम की बुराइयों के बारे में नहीं दिखाया गया। हिन्दू धर्म और उनकी बुराइयों की जमकर निंदा तो की  गई, लेकिन बुर्का और ट्रिपल तलाक, बहुविवाह और हलाला पर एक भी एपिसोड नहीं बनाया गया। कुछ इसी तरह आमिर खान ने पीके फिल्म के जरिए भी हिन्दू आस्था पर चोट किया, परंतु फिल्म में मुस्लिम धर्म की बुराइयों को नहीं दिखाया। वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आमिर खान ने अपने एक विवादास्पद बयान में कहा कि उनकी पत्नी को भारत में डर लगता है, परंतु फिर भी वो भारत में करोड़ों कमाते हैं।

अब ‘लाल सिंह चड्ढा’ फिल्म जब आयेगी फिर से वो इसके जरिए एजेंडा नहीं परोसेंगे, ये कहना बेवकूफी होगी।आपको बता दें कि ये फिल्म अभिनेता अतुल कुलकर्णी का अंतिम प्रोजेक्ट भी है। वे इस फिल्म के पटकथा लेखक हैं। ये वही अतुल कुलकर्णी हैं, जिन्होंने दशकों पहले कमल हासन के ‘हे राम’ में एक धर्मांध और मुस्लिम विरोधी हिन्दू एक्टिविस्ट श्रीराम अभ्यंकर का किरदार निभाया था, लेकिन वह किरदार भी इतने बढ़िया तरह से उन्होंने निभाया था कि उन्हें इसके लिए राष्ट्रीय पुरस्कार तक मिला था। निजी जीवन में भी अतुल कुलकर्णी काफी सेक्युलर विचार रखते हैं, और वे CAA के विरोध तक में शामिल रहे थे।

अब सोचिए, जब ऐसे लेखक आपके प्रोजेक्ट का हिस्सा हों, तो आपकी फिल्म कैसे बिना किसी एजेंडे के मनोरंजन की गारंटी दे सकती है? ऐसे में आमिर खान की आगामी फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ में क्या नया एजेंडा देखने को मिलेगा इसकी तो बस प्रतिक्षा ही कर सकते हैं।

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