कोई भी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनना चाहता, कमलनाथ ने भी इनकार कर दिया, वजह गांधी परिवार है

कांग्रेस नेता जानते हैं अध्यक्ष बनकर भी कठपुतली ही रहना है, इसके साथ और भी कई वज़ह हैं।

बगावत सबको करनी है, लेकिन कोई भी डूबते जहाज में खेवैया नहीं बनना चाहता! जी हां, हम बात कर रहे हैं देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की, जो पिछले दो वर्षों से अंतरिम अध्यक्षा सोनिया गांधी के नेतृत्व में घिसटते हुए चल रही है। ऐसे में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का एक समूह लंबे वक्त से नेतृत्व परिवर्तन की मांग तो कर रहा है, लेकिन कोई भी अध्यक्ष बनने की बात नहीं कहता।

हाल ही में मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ जब सोनिया गांधी से मिले तो उनके अध्यक्ष बनने की ख़बरें चलने लगीं। हालांकि बाद में कमलनाथ ने कहा कि वो मध्य प्रदेश में ही ठीक हैं यानी कि कमलनाथ ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से साफ-साफ इनकार कर दिया। ये इस बात का संकेत है कि डूबती हुई कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष कोई भी नहीं बनना चाहता है।

कांग्रेस पार्टी का राजनीतिक अस्तित्व दिन-प्रतिदिन सिकुड़ता जा रहा है, इसके चलते पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश भरने के लिए नेतृत्व में बड़े बदलाव की बातें हो रही हैं। ऐसे में सोनिया गांधी को पहला झटका अपने ही भरोसेमंद नेता से मिला है।

हाल ही में कमलनाथ की मुलाकात सोनिया गांधी से हुई थी, जिसके बाद ये अटकलें लगाई जाने लगी थीं कि कमलनाथ को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है। इसकी एक वजह ये भी थी कि कमलनाथ को सोनिया गांधी का करीबी भी माना जाता है, परंतु सोनिया गांधी को गांधी परिवार का सिपहसालार होने के बावजूद कमलनाथ से झटका ही मिला है।

और पढ़ें‘आग लगा दो’, Covid Crisis के बीच कमलनाथ कर रहे है किसान आंदोलन को हवा देने की कोशिश

ख़बरों की मानें तो कमलनाथ ने सोनिया गांधी से अध्यक्ष पद स्वीकार करने से साफ मना कर दिया है। उन्होंने कहा है कि वो मध्य प्रदेश की राजनीति में ही रहना चाहते हैं और राष्ट्रीय राजनीति से दूर रहना चाहते हैं।

उन्होंने पार्टी को राष्ट्रीय राजनीति में मदद का भरोसा जरुर दिया है, जिसके चलते उन्हें महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी गठबंधन में सामंजस्य बिठाने का काम दिया गया है। कमलनाथ के ये कथन साबित करते हैं कि उन्होंने सोची-समझी रणनीति के तहत ही अध्यक्ष बनने से मना किया है, क्योंकि गांधी परिवार के करीबी होने के कारण वो इस तरह की स्थितियों का सामना कर चुके हैं।

कांग्रेस की नीति रही है कि पावर सेंटर गांधी परिवार के हाथ में ही रहता है। कांग्रेस की सरकार है तो पावर सेंटर गांधी परिवार ही होगा और यदि पार्टी सत्ता से बाहर हो, स्थिति तब भी ऐसी ही होगी। ऐसे में जो भी अध्यक्ष बनेगा उसे गांधी परिवार के आदेश और रिमोट कंट्रोल के अनुसार ही काम करना होगा।

हम सभी ने देखा है कि किस तरह से पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव से लेकर डॉ मनमोहन सिंह तक के फैसलों में गांधी परिवार की चलती थी। ठीक उसी तरह अध्यक्ष होते हुए भी सीताराम केसरी को गांधी परिवार के आदेशों का पालन करना पड़ता था और जब उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उन्हें अपमानित कर उनका पूरा राजनीतिक करियर बर्बाद कर दिया गया।

और पढ़ें करारी हार के बाद पार्टी में फूट पड़ने से रोकने के लिए सोनिया कर रही हैं कड़ी मशक्कत

अगर हम कांग्रेस के बगावती 23 नेताओं का रवैया देखे तो वो भी कुछ अजीबो-गरीब है। गुलाम नबी आजाद से लेकर शशि थरूर, कपिल सिब्बल, विवेक तनख़ा जैसे नेता पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की मांग तो करते हैं लेकिन कोई भी अध्यक्ष बनने की बात नहीं करता। इसकी वजह गांधी परिवार का पावर सेंटर होना ही है।

यदि इनमें से कोई भी कांग्रेस अध्यक्ष बनता है तो उसे गांधी परिवार के इशारों पर चलना होगा। ऐसे में अगर चुनावों में कांग्रेस की हार हुई तो इसका सारा ठीकरा अध्यक्ष पर ही फूटेगा, वहीं अगर मान लो कांग्रेस किसी चुनाव में जीत गई तो इसका पूरा श्रेय गांधी परिवार को दिया जाएगा। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं का ये भी सोचना है कि अगर अध्यक्ष बन गए तो एक तरह से उनका पूरा राजनीतिक करियर खत्म हो जाएगा।

अध्यक्ष बनने से उन्हें मिलने वाला तो कुछ है नहीं वहीं अगर अध्यक्ष नहीं बनते हैं तो कम से कम सांसद, मुख्यमंत्री, मंत्री या कोई दूसरा पद मिलने की संभावनाएं तो बनी रहती हैं। इसके साथ ये भी है कि यदि‌ कांग्रेस अध्यक्ष बन गए तो वो किसी दूसरी पार्टी में भी छवि बर्बाद होने के कारण नहीं जा सकेंगे, इसका मुख्य कारण उनके नाम के आगे लगा पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष का तमगा होगा।

इन्हीं सब कारणों को ध्यान में रखते हुए कमलनाथ ने सोनिया गांधी को अध्यक्ष पद लेने से मुंह पर मना कर दिया है। बग़ावती जी-23 भी बदलाव मांग रहा है लेकिन अध्यक्ष कोई नहीं बनना चाहता, जिसकी मुख्य वजह गांधी परिवार का कांग्रेस का सर्वेसर्वा होना है।

Exit mobile version