अफगान तालिबान से तब तक आजादी नहीं प्राप्त कर सकते, जब तक वे खुद को आजाद नहीं कर लेते

तालिबान सिर्फ संगठन नहीं सोच है, शुद्ध रूप से कट्टरपंथी सोच....

दुनिया दंग है, सत्ताधीश स्तब्धI आवाम आवाक है और राष्ट्र युद्धग्रस्त I देखते ही देखते 3.8 करोड़ अफगानी बिखर गए 75000 भेड़ियों के आगे I 21वीं सदी के इतिहास मे ना तो शासन की ऐसी अराजकता देखने को मिलेगी न ही जनता की इस ऐसी भीरुता I शहर में अन्याय और अत्याचार के नग्न नृत्य हो रहे हैं और मौत का इंतज़ार करती मासूम जनता खौफ में भाग रही हैं I कोई छिपकर सीमाओं के बाड़े में कूद रहा है तो कोई हवाई जहाज़ के टायर पर बैठ कर सीमा पार करने की कोशिश I आखिर सारे संसाधन, सामर्थ्य, कौशल और दुनियाभर के देशो का सहारा होते हुए भी अफगानिस्तान तालिबन से हार क्यों गया? शांति और अहिंसा से दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्यवादी ताकत को युद्ध मे हरानेवाले भारत के मन में हमेशा ये कौतूहल कौंधता रहेगा कि आखिर अफगान लड़े क्यों नहीं?

इसके पीछे बहुत मजबूत और तार्किक कारण है I क्या आप जानते हैं कि महाभारत की लड़ाई मे अर्जुन गाँडीव क्यों रख देते हैं? अगर इसके पीछे का कारण आपको पता है तो यही उत्तर है आपके इस प्रश्न का कि अफगान क्यों नहीं लड़ें? अफगानी तालिबान को स्वीकार करते है, अपना मानते हैं I तालिबान के शासन प्रणाली को ही वें उत्कृष्ट शासन की पद्द्ति और सिद्धान्त मानते है I तालिबानी नैतिकता ही उनका सिद्धान्त है और तालिबानी आचरण ही उनकी शिक्षा और सभ्यता की आधारशिलाI

तालिबान दर्पण है, अफगानी समाज और उनकी सबसे महत्वाकांक्षी चाह का I ज़रा सोचिए, आप युद्ध के लिए उद्दत कब होंगे? तब होंगे जब आप धर्म के पाले मे खड़े होंगे और सामनेवाला अधर्म के पाले में I लेकिन, यहाँ पूरा का पूरा अफगानिस्तान ही तालिबान के पालें मे खड़ा है, उन्हे अपना मानता है I उनसे स्वीकार्यता और सहमति रखता है I जब आपको इस तरह का शासन स्वीकार है और आप इससे आनंदित होते हैं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं अगर तालिबान जीतता है तो क्योंकि आप किसी देश की सेना को पराजित कर सकते है परंतु आम जनता की इच्छा को पराजित करना असंभव है I

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अफगान, अमेरिका, रूस या नाटो से तालिबान क्यों और कैसे जीता इसका जवाब तो 8 साल बच्चा भी दे सकता है I कोई इंसान ये समझ सकता है कि निश्चित रूप से ही तालिबानी कट्टरता को आम जन का समर्थन प्राप्त होगा I वैसे आपके संतुष्टि के लिए बताते चलें की सर्वे एजेंसी pew भी इसी मत के तरफ इशारा करती है ककि तालिबान को किस तरह आम जनता का वैचारिक और नैतिक समर्थन प्राप्त था I

असली सवाल ये है कि आखिर क्या कारण है कि एक पूरा का पूरा मुल्क इस तरह की धर्मांध संगठन के पक्ष मे इतने मजबूती से खड़ा था? कारण है कट्टरता I कट्टरपंथियों को डर है लोग कहीं सवाल न पूछने लगे क्योंकि तार्किक सवाल पूछने की परंपरा शुरू होते ही परिवर्तन की आँधी चलेगी I तालिबान इसी डर को कायम रखना चाहता है I इस भय के श्रोत से तालिबान अपनी शक्ति प्राप्त करता हैI

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पश्तुन भाषा मे तालिबान का अर्थ ‘छात्र’ होता है I यह शिक्षा से संबन्धित शब्द है I अगर इस शब्द के अर्थ को जान कर, तालिबानियों के कृत्य को देखकर, उनके शासन पद्द्ति और सिद्धांतों को देखकर अगर आप तालिबान के उदय और जीत के पीछे कोई भू-राजनीतिक या अंतर्राष्ट्रीय कारण देखते है तो आपकी स्थिति उस शुतुरमुर्ग समान है जो संकट को समझकर ज़मीन में मुंह गाड़ लेता है I अफगानिस्तान के हालत, आतंक, अन्याय, अत्याचार और अराजकता के पीछे सिर्फ कट्टरता हैI

 

तालिबान का वैचारिक उद्गम देओबन्द है, जो यूपी में स्थित है I यह तथ्य विभात्स है लेकिन वो तो भला हो भारत का कि दिल्ली के काबुल बनने के बीच में भारत का लोकतंत्र खड़ा है और हमें इसे खड़ा रखना है इंसानियत के लिए I सनातन के लिए I अफगानियों के लिए जंग थोड़ी मुश्किल है क्योंकि उन्हे खुद से ही लड़कर कट्टरपंथ की जकड़ को सबसे पहले तोड़ना होगा वरना अमेरिका तो क्या पूरा विश्व आ जाए तो भी तालिबान रहेगाI तालिबान सिर्फ संगठन नहीं सोच है, शुद्ध रूप से कट्टरपंथी सोच …..

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