मोदी सरकार ने बाबुल सुप्रियो को उनकी अकर्मण्यता के लिए दंडित किया, अब सुप्रियो ने राजनीति ही छोड़ दी

देर आये दुरुस्त आये

PC: TV9 Bharatvarsh

कहते हैं, भूल को क्षमा किया जाता है, किन्तु अकर्मण्यता को नहीं। शायद यही बात एक व्यक्ति भूल गए थे। इसलिए कभी मोदी सरकार में अहम पद रखने वाले बाबुल सुप्रियो को सिर झुकाकर राजनीति से विदा लेना पड़ रहा है। उन्होंने इसकी घोषणा फ़ेसबुक पर अपने एक पोस्ट में भी की, लेकिन इस पोस्ट से कोई दुखी नहीं हुआ, उलटे अधिकतर तो ऐसे प्रसन्न हुए, मानो ममता बनर्जी स्वयं बंगाल का राजपाट छोड़कर संन्यास ले चुकी हो।

हाल ही में भाजपा नेता बाबुल सुप्रियो ने कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया के जरिए राजनीति छोड़ने का इशारा किया था। उनके फेसबुक पोस्ट की मानें तो वे राजनीति से संन्यास ले चुके हैं। बाबुल सुप्रियो ने फेसबुक के जरिए लिखा ‘अलविदा’। इस दौरान उन्होंने आश्वासन दिया कि वो किसी और पार्टी में नहीं जा रहे।

उदाहरण के रूप में गिनाते हुए उन्होंने कहा कि फुटबॉल में वो सिर्फ क्लब ‘मोहन बागान’ का समर्थन करते हैं और राजनीति में सिर्फ भाजपा का। उन्होंने कहा कि अगर सामाजिक कार्य करना है तो बिना राजनीति के भी कर सकते हैं। साथ ही पहले खुद को थोड़ा संगठित करने की भी बात की। उन्होंने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का आभार जताते हुए कहा कि वो उनके प्यार को कभी नहीं भूलेंगे।

बाबुल सुप्रियो पेशे से गायक हैं, जो बंगाली और हिन्दुस्तानी फिल्म उद्योग [जो बॉलीवुड के नाम से प्रसिद्ध है] में समान रूप से लोकप्रिय थे। इसी लोकप्रियता के दम पर बाबुल ने 2013-14 के दौरान भाजपा में कदम रखा, और 2014 में भाजपा बंगाल के प्रथम दो लोकसभा सांसदों में भी शामिल हुए।

इसी कारण से इन्हें मोदी सरकार के प्रथम कैबिनेट में भी जगह मिली, और 2019 में जब भाजपा लोकसभा चुनाव में 18 सीटें बंगाल से जीतकर प्रमुख बंगाल में प्रमुख विपक्ष के रूप में उभरी, तो भी बाबुल सुप्रियो ने एक बार फिर आसनसोल से चुनाव में विजय प्राप्त करने में सफलता पाई।

तो फिर ऐसा क्या हुआ कि बाबुल को राजनीति से सन्यास लेने को बाध्य होना पड़ा? ऐसा क्या हुआ कि लोग उनके इस निर्णय से दुखी न होकर उल्टा बेहद प्रसन्न है? इसके पीछे कई कारण है, जिन पर विस्तार से चर्चा करना बेहद आवश्यक है।

आखिरकार छिन गया बाबुल सुप्रियो का मंत्री पद, इन कारणों को देखें तो ये बहुत पहले हो जाना चाहिए था

एक राजनीतिज्ञ कभी भी दूध का धुला नहीं होता, लेकिन वह इतना भी स्वार्थी नहीं होता कि केवल अपने ऊपर ही ध्यान देता रहे। कम से कम दिखावे के लिए सही, अपने कार्यकर्ताओं के साथ तो कुछ देर खड़ा रहता है।

लेकिन बाबुल सुप्रियो में ऐसा कोई गुण नहीं था। जब ये दोबारा सांसद बने, तो 2021 में बंगाल विधानसभा चुनाव जितवाने का प्रभार इनके जैसे नेताओं को सौंपा गया, लेकिन ये पार्टी के प्रचार से अधिक अपने प्रचार में जुट गए। इन्होंने तो समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन के साथ न सिर्फ मंच साझा किया, बल्कि जब एक बार इनके काफिले पर हमला हुआ, तो अपने कार्यकर्ताओं को संभालने के बजाए ये अपनी गाड़ी को बचाने में जुट गए।

ऐसे में जब बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा को अपेक्षित परिणाम नहीं मिले, तो बाबुल पर गाज गिरनी ही थी। रही सही कसर इस बात ने पूरी कर दी कि वे स्वयं टॉलीगंज से विधानसभा चुनाव हार गए। ऐसे में मोदी सरकार ने हाल ही में उन्हे कैबिनेट से त्यागपत्र देने पर विवश किया था, और अब उन्होंने राजनीति से ही सन्यास ले लिया है।

लेकिन सोशल मीडिया पर किसी को कोई दुख नहीं है, उलटे लोग ऐसे प्रसन्न है मानो बंगाल भाजपा पर से एक बड़ा बोझ हट गया हो। एक यूजर ने लिखा, “ऐसे लोगो के भरोसे बंगाल जीतने चले थे….और वर्षो से त्याग भावना के साथ काम कर रहे कार्यकर्ताओं को उपेक्षित किया था…..भुगतो अब…. ये लोग सिर्फ सत्ता की लालसा के कारण पार्टी में थे….कोई विचारधारा नहीं होती इन लोगो की”।

एक यूजर ने लिखा, “बेचारे बाबुल सुप्रियो को अपनी कार की इतनी चिंता है कि राजनीति से ही संन्यास ले लिया। देखते जाइए साल भर के भीतर ये TMC में होगा” –

https://twitter.com/gappbaaj/status/1421457425840807936

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि बाबुल ने इस दशा को कहीं न कहीं स्वयं ही निमंत्रण दिया था। यदि वे थोड़ा भी पार्टी के प्रति निष्ठावान रहते और कार्यकर्ताओं से अधिक जुडते, तो आज उन्हे छोरी छुपे राजनीति से सन्यास नहीं लेना पड़ता।

 

Exit mobile version