व्यक्ति अपने काम और मेहनत के बल पर सम्मान और प्रतिष्ठा पाता है, यह मान उसको यूँ ही नहीं बल्कि उसके व्यवहार अनुकूल प्राप्त होता है। भारतीय राजनीति में रूचि लेने वाले तमाम लोगों के लिए यह खबर बहुत बड़ी थी कि कांग्रेस नेता और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर दिए जाने वाले खेल रत्न पुरस्कार का नाम परिवर्तित कर मेजर ध्यानचंद के नाम पर कर दिया गया है। अब नाम बदलने की श्रृंखला में देश के विभिन्न राज्यों से मांगें उठनी तेज़ हो चुकी हैं। हाल ही में एक मांग कर्नाटक से उठी कि अब राजीव गांधी के नाम से राष्ट्रीय उद्यान (National Park) का नाम बदल दिया जाए।
दरअसल, कर्नाटक के कोडागु के निवासियों द्वारा नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान का नाम बदलने के लिए एक ऑनलाइन याचिका शुरू की गई है जिसे राजीव गांधी राष्ट्रीय उद्यान भी कहा जाता है।
इस Online Petition को कर्नाटका के रहवासी नवीन मडप्पा चेकेरा और विनय कायपंडा ने शुरू किया था जिसको अब तक 7,500 के लक्ष्य में से 6,638 से अधिक हस्ताक्षर प्राप्त हो चुके हैं। इस याचिका के साथ-साथ इनके द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, वन मंत्री भूपेंद्र यादव और कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को लिखे पत्र में अपनी मांग व्यक्त करते हुए अपना पक्ष भी रख दिया है।
निवासियों ने कहा है कि इस राष्ट्रीय उद्यान का नाम “एक विशेष परिवार और एक पार्टी” को खुश करने के लिए बदल दिया गया था। वहीं इसके बदले सुझाव देते हुए उन्होंने आगे कहा है कि, इस उद्यान का नाम ‘फील्ड मार्शल करियप्पा’ के नाम पर रखा जा सकता है।’ उन्होंने तर्क दिया कि कोडगु के फील्ड मार्शल केएम करियप्पा या जनरल कोडेंदर सुबैय्या थिमय्या का नाता कर्नाटक के उसी क्षेत्र से है जहाँ यह उद्यान स्थित है।
बता दें कि, कोडंडेरा मडप्पा करियप्पा (Kodandera Madappa Cariappa) भारतीय सेना में पहले कमांडर-इन-चीफ थे। कोडागु के मूल निवासी करियप्पा का जन्म 28 जनवरी 1899 को मदिकेरी, कोडागु में हुआ था और उन्होंने तीन दशकों तक देश के लिए सैन्य सेवा में भागदारी निभाते हुए अपने कर्तव्यों का पालन किया था। यही कारण है कि वहाँ के निवासियों ने उनका नाम प्रस्तावित किया है।
कांग्रेस और उसके परिवारवादी नेताओं को सदा से अपना नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित करवाने का लोभ रहा है। बता दें कि कर्नाटक के कोडागु स्थित राजीव गांधी राष्ट्रीय उद्यान का नाम नागरहोल नेशनल पार्क था। वर्ष 1988 में राजीव गांधी के शासन के दौरान इस उद्यान का नाम बदल दिया गया था। इसका एक ही अर्थ निकलता था कि, कांग्रेस और उसके नेताओं की रीति नीति “काम कम और नाम ज़्यादा” के ही सिद्धांत पर चलती आई है।
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भूतकाल में कई सरकारों ने ऐसी बंदरबांट मचाई थी कि घर में काम कर रहे सेवादार के नाम पर भी न जाने कितने पार्क और स्टेडियम खुलवा दिए तथा ऐसे ही लोग अब तक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में पूजे जा रहे थ। यह नाम द्वेष या हीन भावना नहीं बल्कि देशप्रेम की भावना को प्रदर्शित करते हुए योग्य व्यक्तित्व के योगदान को भुनाने और विश्व को बताने की एक पहल मात्र है। अब देखना है कि मोदी सरकार कब इस मामले पर एक्शन लेती है।