अफ़ग़ानिस्तान में हुए बड़े बदलाव को सभी ने देख लिया है। काबुल में तालिबान द्वारा कब्जे के बाद हर दिन बर्बरता की खबरे ही सामने आ रही हैं। दोष अमेरिका के ऊपर भी लगा कि अफ़ग़ानिस्तान को आतंक के दलदल में छोड़ अमेरिका भाग गया। सही मायने में देखा जाए तो अफ़ग़ानिस्तान की लड़ाई खुद अफ़ग़ानिस्तान के लोगों की लड़ाई थी। लेकिन खुद वहां के राष्ट्रपति अशरफ गनी कायरता का परिचय देते हुए देश छोड़कर भाग गए। अच्छाई की उम्मीद पर हर तरफ से पानी फिर गया था लेकिन फिर भी TFI ने बताया था कि लड़ाई तब तक खत्म नहीं होगी जब तक पंजशीर का शेर अमरुल्लाह सालेह वहां मौजूद हैं। अब खबर आ रही है कि विद्रोही गुटों द्वारा अफ़ग़ानिस्तान के 3 जिलों पर कब्जा कर लिया गया है और वहां तालिबानी लड़ाके मारे गए। यानी अब भी उम्मीद कायम है और सलह के नेतृत्व में तालिबान को उखाड़ फेंकने की तैयारी शुरू हो चुकी है।
दरअसल, रिपोर्ट के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान के पंजशीर प्रांत के बगल वाले जिले पोल-ए-हिसार, डेह सालाह और बानू पर विद्रोही गुटों ने एक बार फिर से अधिकार कर लिया है। खैर मुहम्मद अंदाराबी के नेतृत्व में विद्रोही गुटों का दावा है कि उन्होंने तालिबान के नियंत्रण से तीन जिलों पोल-ए-हेसर, देह सलाह और बानो को पुनः कब्जा कर लिया। अब वे दूसरे जिलों की ओर बढ़ रहे हैं। अफगान समाचार एजेंसी असवाका की माने तो इस संघर्ष में कई तालिबान आतंकी मारे गए और घायल हुए।
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समाचार एजेंसी द्वारा जारी किए गए वीडियो में लोगों को छत से अफगान झंडा लहराते देखा जा सकता है। बता दें कि पोल-ए-हिसार जिला, काबुल के उत्तर में स्थित है और पंजशीर घाटी के करीब है। तालिबान के पहले शासन को भी इसी तरह के विद्रोही गुटों के समूह, नॉर्थरन अलायन्स ने हराया था। तथा एक बार फिर से तालिबन के खिलाफ संघर्ष की शुरुआत उसी क्षेत्र से हुई है। अमरुल्लाह सालेह ने धीरे-धीरे अपनी योजनाओं पर काम करना शुरू कर दिया है और जल्द ही वहां परिस्थिति बदलने की संभावना है।
कौन है अमरुल्लाह सालेह, जिनके रहने से उम्मीद जिंदा है।
अमरुल्लाह सालेह अफ़ग़ानिस्तान के नेता है, जो वर्तमान में अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति है। उनका जन्म 1972 में, अफ़ग़ानिस्तान के पंजशीर प्रान्त में हुआ था। 1990 के समय मे जब सोवियत संघ के समर्थन से अफगानी फौज राज कर रही थी तब अमरुल्लाह ने पाकिस्तान जाकर ट्रेनिंग ली और बाद में मुजाहिदीन कमांडर अहमद शाह मसूद के मार्गदर्शन में युद्ध भी लड़ा। 1990 में ही सालेह, नॉर्दन अलायंस के सदस्य बने। नॉर्दर्न अलायंस या फिर यूनाइटेड फ्रंट कई सारे क्षेत्रीय लड़ाकों का समूह था जो तालिबान के नियंत्रण के खिलाफ लड़ते थे। इन समूहों को अमरीका, भारत समेत तमाम देशों से मदद प्राप्त थी।
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पाकिस्तान और तालिबान, दोनों को अमरुल्लाह से डर लगता है। दोनों के डरने की वजह सालेह की इच्छाशक्ति और तेज दिमाग है। अमरुल्लाह सालेह की इच्छाशक्ति का अंदाजा उनके ही बयान से लगाया जा सकता है, “अमेरिका अगर कल अफ़ग़ानिस्तान को छोड़कर जाने का फैसला कर ले तो हम कुछ नहीं कर सकते हैं। हम ज्यादा से ज्यादा यह कर सकते है कि हम उन्हें यह बताए की हमारा लक्ष्य क्या था। फिर भी अगर वो जाना चाहते है तो यह उनका निर्णय होगा। हम गरीब थर्ड वर्ल्ड देश है, हमको अपनी क्षमताएं मालूम है। महाशक्ति होने के मौलिक कर्तव्यों के बाद भी वो जाने का फैसला करते है तो यह उनका निर्णय है लेकिन हमारी लड़ाई हमेशा जारी रहेगी। ये पहाड़ हमेशा यहां रहेंगे, यह नदियां हमेशा यहाँ बहेंगी। तालिबान के मौजूदगी से हमारा अस्तित्व खत्म नही होगा।”
सालेह किसी के मदद बिना ही लड़ाई लड़ने का जज्बा रखते है।
तालिबान जानता है कि बिना यूनाइटेड फ्रंट के, उसको हराना नामुमकिन था। उसे इस बात का डर रहा है कि भविष्य में ऐसी फिर कोई घटना घटित हो सकती है। सालेह की एक तस्वीर बाहर आई जिसमें अमरुल्लाह सालेह, अहमद मसूद के साथ देखे गए। उन दोनों के साथ पूर्व रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह खान मोहमद्दी भी थे। अहमद मसूद, मशहूर नायक अहमद शाह मसूद का बेटा है। ये मीटिंग पंजशीर में हुई जो नॉर्थरन अलायन्स का गढ़ माना जाता है।
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सम्भावना है कि राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह छोटे-छोटे कबीलों को लेकर तालिबान के खिलाफ लड़ाई की तैयारी कर रहे हो। अगर ऐसा सच है तो भारत समेत विश्व के नेताओं को उनको पीछे से ही सही, समर्थन देना चाहिए क्योंकि अमरुल्लाह अगर तालिबान के खिलाफ है तो वह सही साइड खड़े है। अब जिस तरह से विद्रोही गुट तालिबन के खिलाफ एक जुट हो कर अपने देश को आतंकियों के चंगुल से निकालने की कार्रवाई शुरू कर चुके हैं, उससे अब यह उम्मीद बंध गयी है कि तालिबन का अंत निकट है।