हाल ही में वुहान वायरस को लेकर कुछ सकारात्मक खबरें सामने आई हैं। उदाहरण के लिए जाइडस कैडिला ने प्रथम डीएनए आधारित वैक्सीन विकसित की है, जो जल्द ही बच्चों को भी लगाई जा सकेगी। इसके अलावा भारत ने टीकाकरण के अभियान में भी काफी सफलता प्राप्त की है, और लगभग देश की एक तिहाई आबादी को कम से कम एक डोज़ वैक्सीन लगाई जा चुकी है। भारत के अभियान का लोहा स्वयं WHO को भी मानना पड़ रहा है, लेकिन ऐसा लगता है कि केरल फिर भारत की सफलता में ‘कबाब में हड्डी’ सिद्ध हो सकता है। वो कैसे? असल में WHO की रिपोर्ट सामने आई है। जिसमें ये संकेत दिए गए हैं कि अब भारत उन चंद देशों की श्रेणी में शामिल होने जा रहा है, जो कोरोना के परिप्रेक्ष्य में पैन्डेमिक से एन्डेमिक श्रेणी में जा रहा है।
इसका अर्थ क्या है, और इससे भारत को क्या लाभ होगा? न्यूज 18 की रिपोर्ट के अंश अनुसार, “WHO की प्रमुख वैज्ञानिक डॉक्टर सौम्या स्वामीनाथन के अनुसार भारत अब उस स्तर की ओर बढ़ रहा है, जहां पर कम या मध्यम स्तर का ट्रांसमिशन होगा परंतु जैसे कुछ महीनों पहले एकदम से मामले बढ़ रहे थे, वैसे बढ़ने के आसार कम हैं। दूसरे शब्दों में भारत कोरोना पैन्डेमिक के गंभीर दौर से उबरकर अब एन्डेमिक के मध्यम दौर में प्रवेश कर रहा है”।
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केरल का यह ‘अनूठा मॉडेल’ किसी परिचय के योग्य नहीं। जब वुहान वायरस नया-नया आया था, तब उस पर ‘नियंत्रण’ पाकर केरल प्रशासन अपनी पीठ थपथपाते नहीं थक रहा था। 2021 में दूसरी लहर ने केरल प्रशासन की पोल खोल कर रख दी थी। जब से दूसरी लहर आई है और जब से उसका घातक असर कम हुआ है, तब से भारत के दूसरे शहर और राज्य रिकवरी की राह पर हैं, परंतु केरल में स्थिति ढाक के तीन पात वाली है। यदि पूरे देश में औसतन 30 से 40 हजार मामले प्रतिदिन मिलते हैं, तो निश्चित ही आधे से अधिक केवल और केवल केरल की ही देन हैं।
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शायद इसीलिए नीति आयोग ने भी एहतियातन 2 लाख अतिरिक्त बेड तैयार रखने को कहा है, क्योंकि यदि केरल में स्थिति जस की तस रही, तो देश में सितंबर से 4 लाख से 5 लाख मामले पुनः प्रतिदिन आ सकते हैं।
एक तरफ जहां डबल्यूएचओ की वर्तमान कोरोना एन्डेमिक रिपोर्ट इस बात को सिद्ध करती है कि भारत सरकार के प्रयास व्यर्थ नहीं जा रहे हैं, तो वहीं केरल की लापरवाही और उसके वर्तमान प्रशासन की लचर नीतियां सारे किए कराए पर फिर से पानी फेरने वाली प्रतीत हो रही हैं।