सुमा शिरूर की कहानी : अवनी लेखारा भारत की शान है। टोक्यो पैरालंपिक में गोल्ड लेकर उन्होंने देश का नाम ऊंचा किया है और साथ में ही रिकार्ड भी बनाया है। 19 साल की उम्र में वो भारत की पहली महिला है जिन्होंने ओलंपिक में कभी गोल्ड मेडल जीता है। अवनी जब ओलंपिक में चयनित हुई थी तब वो जैसे-तैसे जगह बना पाई थी लेकिन उन्होंने सबको आश्चर्य में ला दिया, उन्होंने ना सिर्फ मेडल जीता बल्कि विश्व रिकार्ड की बराबरी भी की है।
दुनिया में पांचवे स्थान पर काबिज अवनी ने लाखों भारतीय युवतियों को प्रेरणा दी है और अब उनकी खुशी में सब शामिल हो रहे है। हाल ही में आनंद महिंद्रा ने उन्हें एक स्पेशल एसयूवी देने का एलान किया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनकी प्रशंसा की है। पूरा देश पैराओलंपिक में बढ़िया भारतीय प्रदर्शन से खुश है। अब जब देश में इतने सारे लोग खुश है तो आइए आपको पर्दे के पीछे से अवनी को मेडल लायक बनाने वाली सुमा शिरूर से मिलवाते है।
हर खिलाड़ी के पीछे एक बढ़िया कोच का होता है। अगर बढ़िया कोच ना हो तो मेहनत दिशाहीन होती है। अवनी के कोच की भी यही कहानी है। भले ही उनकी शिष्या ने आज भारत को पदक लाकर दिया है लेकिन एक वक्त उनके हाथ में भी बंदूक थी और वह ओलंपिक में देश का नाम रोशन कर रही थी।
सुमा शिरूर भारतीय जूनियर राइफल शूटिंग टीम की कोच है। 10 मई 1974 को जन्मी सुमा शिरूर पूर्व 10 मीटर एयर राइफल शूटिंग की खिलाड़ी रह चुकी है। 2003 में उन्हें भारतीय सरकार द्वारा अर्जुन पुरस्कार भी दिया जा चुका है। उनके उपलब्धियों में कॉमनवेल्थ और एशियाई खेलों के मेडल शामिल है। 2002 मैनचेस्टर कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने 10 मीटर एयर राइफल पेयर में गोल्ड मेडल जीता था। उसी कॉमनवेल्थ में 10 मीटर एयर राइफल में वे सिल्वर मेडल जीत चुकी है और 2010 दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में वो ब्रॉन्ज मेडल जीत चुकी है।
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एशियाई खेलों की बात करे तो 2002 बुसान खेलों में वह 10 मीटर एयर राइफल टीम में रजत पदक जीत चुकी है और 2006 दोहा खेलों में वह कांस्य पदक जीत चुकी है।
मौका था 2004 एथेंस ओलम्पिक का, उस साल भारत के राज्यवर्धन सिंह राठौड़ डबल ट्रैप शूटिंग में रजत पदक जीत चुके थे। सुमा शिरूर से बहुत उम्मीदें थी लेकिन बढ़िया प्रदर्शन के बाद भी वह देश के लिए पदक नही ला पाई। बाद में उन्होंने फिर से कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो पाई।
अब वह भारतीय टीम को सिखाती है। नेशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने टोक्यो ओलंपिक के लिए सुमा शिरूर और दीपाली देशपांडे को जिम्मेदारी दी थी जिसमें वह काफी सफल दिख रही है। जो काम गोपीचंद ने बैडमिंटन खिलाड़ियों के लिए किया, वही काम अब सुमा शिरूर शूटिंग के लिए कर रही है। उनके मेहनत और मार्गदर्शन के बदौलत अवनी लखेरा स्वर्ण पदक लाई है। इस देश की विडंबना यह है कि यहां खिलाड़ियों को कोच से पहले रखा जाता है, कुछ ना होने पर उन्हें छोड़ दिया जाता है, देश उन्हें भूल देता है पर सच्चाई यह है कि अगर कोच बढ़िया न हो तो खिलाड़ी भी कुछ नही कर सकते है। हर व्यक्ति को गुरु चाहिए होता है जो आपके भीतर के प्रकाश को आपसे मिलाए। यही समय है कि सुमा शिरूर को द्रोणाचार्य पुरस्कार दिया जाए।