बाइडन और उनके समर्थक तालिबान के गुणगान में और अफगानी सरकार को दोषी ठहराने में क्यों जुटे हैं ?

अफगान प्रशासन को बलि का बकरा बनाया जा रहा है।

तालिबान बाइडन

हाल ही में तालिबान ने दो दशक के बाद अफगानिस्तान के शासन पर पुनः आधिपत्य जमाया है और उसके व्यवहार को देखते हुए ऐसा बिल्कुल नहीं लगता है कि पहले के तालिबान और अब के तालिबान में कोई विशेष अंतर है। इसके बाद भी अमेरिका का बाइडन प्रशासन न केवल वामपंथियों की भांति तालिबान को ‘देवतुल्य’ सिद्ध करने पर तुला हुआ है, बल्कि अफगानी प्रशासन को हर हालत में कायर सिद्ध करना चाहता है।

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जैसे एनडीटीवी पूरी निर्लज्जता से तालिबान के पक्ष में प्रोपेगैंडा चला रहा है, ठीक उसी प्रकार से अब बाइडन प्रशासन भी तालिबान का बचाव करने में लगा हुआ है। इसी ओर अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने भी इशारा करते हुए ट्वीट किया कि वे देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति हैं।
इस मामले पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से बहस करना बेकार है। अफगानिस्तानियों को खुद ही अपनी लड़ाई लड़नी होगी। उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका और नाटो ने भले ही अपना हौसला खो दिया हो लेकिन हमारी उम्मीद अभी बाकी है।

इसके बाद भी बाइडन प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है, जो तालिबानियों की ‘छवि सुधारने’ में लगे हुए हैं। उदाहरण के लिए बीबीसी के वरिष्ठ पत्रकार जॉन सिम्पसन ट्विटर पर लिखते हैं, “मैं काबुल की प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने वाले तालिबानी प्रवक्ता ज़बीनुल्लाह मुजाहिद को कई वर्षों से जानता हूँ। वे बड़े ही सौम्य और शालीन पुरुष हैं। वे दुनिया के भय को कम करना चाहते हैं”।

बीबीसी के पत्रकार जॉन सिम्पसन का ट्विट।

वहीं, दूसरी ओर न्यू यॉर्क टाइम्स के लिए काम करने वाले और पूर्व में वाशिंगटन पोस्ट के लिए काम कर चुके शरीफ हसन के अनुसार ज़बीनुल्लाह की टीम अशरफ गनी से भी बेहतर काम करती है।

शरीफ हसन का ट्वीट।

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ऐसे में सवाल खड़े होते हैं कि तालिबान के लिए इतना प्रेम आखिर किस खुशी में? दरअसल, राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में जो बाइडन ने सारा ठीकरा अफगानी नेतृत्व पर फोड़ने का प्रयास किया है। असल में बाइडन प्रशासन चाहता था कि अफगान सरकार तालिबान के साथ एक राजनीतिक समझौता कर ले, लेकिन इससे अशरफ गनी और अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह ने स्पष्ट मना कर दिया।

ऐसे में बाइडन ने स्पष्ट दिखाने का प्रयास किया कि कैसे ‘कायर अफगानी प्रशासन’ निरीह अफगानी जनता को उनके भाग्य के भरोसे छोड़कर भाग खड़े हुए, जबकि सच्चाई तो यह कि अमरुल्लाह सालेह अभी भी अफ़गानिस्तान में तालिबानी लड़ाकों से लड़ने के लिए उपस्थित हैं।

असल में बाइडन अपनी प्रशासनिक अकर्मण्यता को स्वीकारना ही नहीं चाहते। वह अपनी कायरता और अपनी अकर्मण्यता के लिए अफ़गान प्रशासन को दोषी ठहराना चाहते हैं, क्योंकि उनके नेतृत्व की असफलता के कारण ही अफगान तालिबान को बिना किसी समस्या के अफगानिस्तान पर पुनः आधिपत्य स्थापित करने में कोई समस्या नहीं आई।

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जैसे विकिलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे ने 2011 में अफ़गान युद्ध के बारे में कहा था, “अफगानिस्तान को इस्तेमाल करने के पीछे का ध्येय एक सफल युद्ध नहीं, एक अंतहीन युद्ध है, जिससे पैसा एक Transnational security elite के हाथ में जाता रहे।” इसी बात को जनता से छुपाने के लिए बाइडन प्रशासन तरह तरह के स्वांग रचता आ रहा है और अब तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने के बाद अफ़गान प्रशासन को ही बलि का बकरा बनाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा है।

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