जातिवाद की जहरीली राजनीति का प्रयोग किए बिना ही दलित वोट हासिल करने के लिए BJP की रणनीति है तैयार

ये रणनीति हिंदुओं को जाति में बांटेगी भी नहीं और BJP को दलित वोट भी मिल जाएंगे

दलित वोट बैंक

राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण होता है कि राजनीतिक दल प्रतिद्वंदी के आक्रमणों का प्रतिउत्तर  अपनी रणनीति के तुडीर में रखे, कब किस तीर को निकाल कर देना है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उसकी सूझ-बूझ रखते हैं। अगले वर्ष राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के संबंध में अनेकों राजनीतिक दलों ने उतरने की बात कही है, इसमें बिहार में एनडीए के साथी जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हम’ एवं महाराष्ट्र में दलित वोट बैंक की राजनीति करने वाले रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के नेता एवं केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले भी शामिल हैं। इसके विपरीत सीएम योगी ने इनके सामने अपनी नई चाल चलते हुए इन्हें भाजपा के लिए समर्थन जुटाने का प्रस्ताव दे दिया है, सीएम योगी ने इस प्रस्ताव के जरिए एक साथ दो चालें खेली हैं जो कि दलित वोटबैंक की राजनीति करने वालों के लिए बड़ा झटका हैं।

बिहार में एनडीए गठबंधन के सहयोगी दल हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के नेता एवं बिहार सरकार के मंत्री संतोष मांझी उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के रण में उतरने का वक्तव्य दे रहे थे। कुछ ऐसा ही रवैया विकासशील इंसाफ पार्टी (वीआईपी) के नेता मुकेश साहनी और महाराष्ट्र से आने वाले केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले का था। इसके विपरीत अब सारा मामला ठंडा पड़ता दिख रहा है, एवं इस परिवर्तन का मुख्य कारण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रणनीति है। योगी ने इन सभी के समक्ष ऐसी शर्त रख दी है कि उनका अगला कदम ही मायावती एवं ओपी राजभर की पार्टियों के लिए झटका होगा।

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण वोटबैंक दलितों का माना जाता है क्योंकि राज्य में दलितों की जनसंख्या अधिक है। दलितों की राजनीति करने वाले अठावले से लेकर मांझी तक के नेता इस वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाना चाहते थे, किन्तु योगी ने शर्त रख दी है कि वो सभी, राज्य में भाजपा के लिए दलितों के  बीच प्रचार-प्रसार करें, एवं जब चुनाव के लिए सीट बंटवारा होगा, तो उनका भी विशेष ध्यान रखा जाएगा। इस मामले में संतोष मांझी ने कहा, “मैंने योगी जी को अपनी पार्टी, उसकी गतिविधियों और बिहार में हम क्याक्या कर रहे हैं, इस सब के बारे में जानकारी दी है। हमने अभी यह तय नहीं किया है कि हम यहां कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। लखनऊ में अपने नेताओं की बैठक के दौरान हमने अपनी ताकत का आंकलन किया। अगले स्तर की बातचीत हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष करेंगे, लेकिन हम यह चुनाव लड़ना चाहते हैं क्योंकि दोनों राज्यों में दलितों के मुद्दे एक समान ही हैं।

महत्वपूर्ण बात ये है कि जीतन राम मांझी के पुत्र सतोष मांझी इस बात को नजरंदाज कर गए कि वो बीजेपी के साथ चुनाव लड़ेंगे या नहीं, किन्तु उन्होंने  जोर देते हुए ये कहा है कि योगी उनके इस नए काम से प्रसन्न है। संतोष मांझी के वक्तव्य से कोई भी व्यक्ति सहजता के साथ अंदाजा लगा सकता है कि मांझी की पार्टी को कुछ दो चार सीटें देकर योगी दलितों के वोट बैंक में मायावती को बुरी चपत लगा सकते हैं। कुछ इसी तरह केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले भी यूपी में कुछ सीटों पर चुनाव लड़ कर बीजेपी के लिए पूरे राज्य में दलित वोट बैंक जुटाने का प्रयास कर सकते हैं।

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द प्रिंट की रिपोर्ट बताती है कि बीजेपी राज्य में दलित वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए उन NDA के साथियों का सहारा ले सकती है जो कि राज्य में विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा रखते हैं। इसके बदले भाजपा उन्हें कुछ सीटें भी देंगी, किन्तु कुछ सीटों  के बदले पार्टी राज्य में दलित वोट बैंक पर अपनी पकड़ पहले से अधिक मजबूत कर सकती है। राज्य की 85 विधानसभा सीटें  दलितों के लिए ही आरक्षित हैं। ऐसे मे यदि इन सीटों का एक बड़ा आंकड़ा भाजपा की तरफ आता है तो ये भाजपा के लिए एक सकारात्मक बात होगी।

ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए पहले ही भाजपा मोदी सरकार में 27 ओबीसी मंत्रियों को शामिल कर चुकी है। वहीं अब दलित वोट बैंक के लिए ये कहा जा सकता है कि भाजपा मांझी और अठावले जैसी पार्टियों का भी सटीक उपयोग कर सकती है, जो कि मायावती और सपा दोनों के लिए ही झटका है।

 

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