नारायण राणे को गिरफ्तार कर उद्धव ठाकरे ने मराठा वोट को गुड बाय कह दिया है

मराठा वोट बैंक

शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे ने अपनी राष्ट्रवादी छवि के दम पर महाराष्ट्र में जो प्रतिष्ठा पाई थी, निश्चित ही उनके पुत्र उद्धव ठाकरे ने उस प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिलाने की शपथ ले ली है। आए दिन अपने निर्णयों के लिए चर्चा का विषय बने रहने वाले महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने बालासाहेब की विरासत का अंत कर दिया है। उद्धव की स्थिति ये है कि वो अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के काम करते रहते हैं, एवं केन्द्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी कर उन्होंने कुछ ऐसा ही किया है। बीजेपी संभवतः इस स्थिति को पहले ही भांप चुकी थी, ऐसे में बीजेपी अब नारायण राणे की गिरफ्तारी को मराठा अस्मिता का मुद्दा बना सकती है। नारायण राणे को मराठी अस्मिता का एक बड़ा नेता माना जाता है, ऐसे मे़ वो इस मुद्दे को मराठा अस्मिता से जोड़कर उद्धव के वोट बैंक को तगड़ी चोट पहुंचा सकतें हैं।

उद्धव ठाकरे समेत शिवसेना ने हमेशा मराठा अस्मिता का मुद्दा उठाया है, एवं इस समाज के लिए किसी से भिड़ जाने के तेवर भी दिखाये हैं। इसके विपरीत बीजेपी अब शिवसेना के इस मराठा वोट बैंक को उद्धव की गलतियों के कारण ही छीन सकती है। नारायण राणे को एक साधारण सी बात के लिए गिरफ्तार करने के बाद से जिस तरह से बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर नारायण राणे एवं उनके बेटे नितेश राणे आक्रामक हैं, वो इस बात का पर्याय है कि महाराष्ट्र में शिवसेना की मुश्किलें अब  बढ़ने वाली है, क्योंकि नारायण राणे की जन आशीर्वाद यात्रा इसके संकेत दे रही है।

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नारायण राणे एक वक्त तक शिवसेना के ही नेता थे, एवं उनकी बगावत की शुरुआत तब हुई थी, जब उद्धव ठाकरे को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था।  ऐसे में पहले तो वो कांग्रेस में गए वहां भी उन्हें वो महत्व नहीं मिला जिसके वो हकदार हैं,  किन्तु बीजेपी में आने के बाद उन्हें बीजेपी मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बना दिया है। पीएम मोदी एवं अमित शाह महाराष्ट्र की राजनीति में नारायण राणे के महत्व को भलीभांति समझते हैं। अब ये माना जा रहा है कि बूढ़े हो चुके नारायण राणे को पुनः सक्रिय राजनीति में लाकर बीजेपी शिवसेना के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकती है। राणे लगभग 50 वर्षों से सक्रिय राजनीति में हैं, जिनके पास अपना एक बड़ा जनाधार है। इतना ही नहीं वो बीजेपी के लिए महाराष्ट्र में मराठा नेता की कमी को भी आसानी से पूरा कर सकते हैं।

वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि नारायण राणे एक आक्रामक राजनेता हैं, जो कि शिवसेना को उसी की भाषा में आसानी से जवाब देते रहे हैं। इतना ही नहीं राणे राज ठाकरे, स्मिता ठाकरे जैसे नेताओं के साथ भी काम कर चुके हैं। वो बाला साहब ठाकरे के प्रिय थे, लेकिन कभी उद्धव ठाकरे की चौकड़ी वाले मुख्य नेताओं में नहीं रहे, क्योंकि उनकी उद्धव से बिल्कुल नहीं बनती थी। शिवसेना से निकलने के बावजूद उनका जनाधार कम नहीं हुआ, वो कोंकण इलाके से आते हैं, जहां मराठा वोट बैंक की अधिकता है। महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों में करीब 30 प्रतिशत मराठा वोटर हैं, और नारायण राणे के माध्यम से बीजेपी इस वोट बैंक को साध सकती है।

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बीजेपी पहले ही राणे के जरिए मराठा वोट बैंक को लुभाने की प्लानिंग कर चुकी है, संभवतः इसी उद्देश्य से उन्हें मंत्री भी बनाया गया। इसके पीछे बीजेपी के चाणक्य अमित शाह का विशेष प्लान भी माना जा रहा है। बीजेपी की प्लानिंग के तहत ही हो रही राणे की जन आशीर्वाद यात्रा को प्रभावित कर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने जो चाल चली है, वो बचकानी साबित हो सकती है, क्योंकि ये माना जा रहा है कि नारायण राणे शिवसेना को उसी की भाषा में जवाब दे सकते हैं।

नारायण राणे एवं नितेश राणे मराठा अस्मिता का मुद्दा उठाकर शिवसेना के लिए चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं, जो न केवल बीएमसी चुनावों अपितु 2024 के विधानसभा चुनावों में शिवसेना के लिए ख़तरे की घंटी साबित हो सकते है। इसकी मुख्य वजह उद्धव ठाकरे एवं महाराष्ट्र सरकार की नादानी ही होगी, क्योंकि वे बीजेपी के चाणक्य अमित शाह के ही बिछाए जाल में फंस गए हैं।

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