केंद्र ने जगन को चेताया, धर्म बदल चुके SC/ST के लोगों को न दिया जाये केंद्र की योजनाओं का लाभ

बढ़िया!

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की छवि एक ऐसे नेता की है, जो कि ईसाई और मुस्लिम समाज के तुष्टीकरण के जरिए अपनी राजनीतिक दुकान चलाते हैं। संभवतः यही कारण है कि राज्य में पर्दे के पीछे से ईसाई मिशनरीज अपना धर्म परिवर्तन का एजेंडा चला रही हैं। इसके विपरीत महत्वपूर्ण बात ये भी है कि जो लोग अपना धर्म परिवर्तन करवाकर ईसाई बन गए हैं, उन्हें भी राज्य में एससी-एसटी समुदाय के लोगों को मिलने वाला लाभ मिल रहा है, साथ ही ये लोग आरक्षण का भी लाभ उठाते रहे हैं। अब जगन सरकार केन्द्र द्वारा दी जाने वाले एससी-एसटी के लाभ भी इन लोगों को देने की प्लानिंग कर रही थी, जिसको लेकर केन्द्र ने अब जगन सरकार को झटका देते हुए साफ कहा है कि जिन लोगों का धर्म बदल गया है, उन्हें अनुसूचित जातियों को मिलने वाले न कोई लाभ मिलेंगे,  न ही आरक्षण।

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दरअसल, केंद्रीय प्रायोजित योजनाएं (CSS) अनुसूचित जनजातियों के विकास लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रदान की जाती है जिसमें, छात्रों के लिए छात्रवृत्ति के साथ ही उनका आर्थिक और सामाजिक विकास भी शामिल है। जगन सरकार की प्लानिंग थी, कि राज्य के बाद अब केन्द्र द्वारा दी जाने वाली एससी-एसटी वर्ग के लोगों की सुविधाओं को भी ईसाई धर्म अपनाने वाले एससी-एसटी के लोगों को भी दिया जाए, किन्तु अब इस मुद्दे पर केन्द्र सरकार ने जगन सरकार को झटका दे दिया है। केन्द्र द्वारा साफ कहा गया है कि ईसाई मुस्लिम, जैन, सिख या किसी भी धर्म के व्यक्ति को अनुसूचित जाति से नहीं जोड़ा जा सकता है। अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए centrally sponsored scheme (css) के अंतर्गत जो लाभ या आरक्षण अनुसूचित जाति के लोगों को मिलता है, उसका ईसाईयों तक किसी भी कीमत पर विस्तार नहीं दिया जा सकता है। केन्द्र ने कहा कि आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के धर्म बदलने वाले पिछड़े वर्ग के लोगों को अनुसूचित जनजाति के लोगों को केन्द्र की तरफ से दिया जाने वाला लाभ देने के लिए पत्र भेजा गया था, जो कि पूर्णतः अवैध है। स्पष्ट है कि केन्द्र की मोदी सरकार ने इस मुद्दे पर जगन सरकार को लताड़ लगा दी है।

वहीं, इस मामले में हैदराबाद के एक गैर सरकारी एनजीओ ने पहले भी बताया है कि आंध्र सरकार अवैधानिक तौर पर प्रदेश में ईसाई धर्म अपना चुके लोगों को अनुसूचित जाति को मिलने वाले लाभ दे रही है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लगाई याचिका में बताया गया था कि राज्य सरकार प्रदेश में मनमाने ढंग से ईसाईयों को शिक्षण संस्थानों में एडमिशन से लेकर नौकरियां तक दे रही है। लीगल प्रोटेक्शन राइट नामक इस संस्था ने बताया है कि बौद्ध धर्म के लोगों को वैधानिक तौर पर एससी-एसटी के तहत लाभ दिए जाते हैं। इसके अलावा अन्य सभी को दिया जाने वाला लाभ अवैधानिक हैं किन्तु जगन की सरकार ये अवैधानिक काम धड़ल्ले से कर रही है।

इस मामले में एनजीओ ने कहा तब कहा था, आंध्र प्रदेश सरकार के पास संवैधानिक रूप से सुरक्षित आरक्षण या भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 के प्रावधानों को बदलने की कोई शक्ति नहीं है। आंध्र प्रदेश का आदेश संवैधानिक प्रावधानों और 1950 के राष्ट्रपति के आदेश का उल्लंघन है।”

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एनजीओ ने बताया अपनी याचिका में बताया था कि कैसे 1977 से लेकर अब तक राज्य मे शिक्षा, नौकरी, बिजली, राशन सभी का लाभ ईसाईयों को दिया जा रहा है और कैसे राष्ट्रीय नियमों के विरुद्ध जाकर आज भी काम किया जा रहा है, जिसे रोकने की आवश्यकता है। रिपोर्टस के अनुसार करीब 43 प्रतिशत ईसाई पादरियों एसस-एसटी लोगों को लाभ देने वाली योजनाओं का लाभ को भी मिल रहा है, जो इस बात का संकेत है कि राज्य में नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। एनजीओ ने बताया कि 2019-20 के वित्तीय वर्ष के लिए, आंध्र प्रदेश सरकार ने विभिन्न अनुसूचित जाति घटकों के लिए 15,000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, जिसका एक बड़ा हिस्सा प्रदेश में ईसाई धर्म अपना चुके लोगों को भी गया है।  एनजीओ ने बताया है कि  राज्य के करीब 58 प्रतिशत पादरियों के पास अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र भी है, और ये लोग सरकार द्वारा दिए जा रहे लाभ का फायदा उठा रहे हैं जो कि कानूनी रूप से अपराध की श्रेणी में आता है।

जगन सरकार का ये कदम गैरकानूनी तो है ही साथ ही वो धर्मांतरण करवाने वाले लोगों को भी बढावा दे रहे हैं। एससी-एसटी के गरीब तबके के लोगों को मुख्य तौर पर ईसाई मिशनरी द्वारा निशाना बनाया जाता है। ऐसे में सरकार द्वारा उन्हें दो तरफा फायदा मिल रहा है। एक तरफ जहां ईसाईयों को मिलने वाले अनुदान का लालच है, तो दूसरी ओर अनुसूचित जाति के अंतर्गत मिलने वाले उनके अधिकार भी ईसाई धर्म अपनाने के बावजूद बरकरार रहते हैं, जो कहीं न कहीं धर्मांतरण को बढ़ावा देने वाला भी है। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा जगन सरकार के निर्णय पर रोक लगाना एक बड़ा संदेश भी है।

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